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पॉलिथीन को राख में बदलने वाली पहली भारतीय महिला

कोई तकनीकी शिक्षा न होने और अपने ‘वैज्ञानिक प्रयास’ का मजाक उड़ाए जाने के बावजूद, दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के कनिपोरा गांव की 48-वर्षीय नासिरा अख्तर, पॉलीथीन को राख में बदलने वाली जादुई जड़ी-बूटी के अपने जमीनी आविष्कार के लिए पेटेंट प्राप्त करने वाली हैं।

कुलगाम, जम्मू और कश्मीर

दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के कनिपोरा गाँव की नासिरा अख्तर बताती हैं कि कैसे उन्होंने प्लास्टिक कचरे के निपटान के लिए एक जादुई जड़ी-बूटी की खोज की। उनके अपने शब्दों में यह उनकी कहानी है – “उपहास, शर्मिंदगी, मज़ाक – मैं इन सब से गुज़री।”

मैंने सुना है कि शब्द लोगों और उनके विचारों को बदल सकते हैं। जब तक यह मेरे साथ यह नहीं हुआ, मैंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा।

दो दशक पहले, मेरे गांव में माता-पिता अपनी बेटियों की शादी कम उम्र में ही करना पसंद करते थे। मेरे माता-पिता की मानसिकता भी यही थी। इसलिए जब मैंने अपनी मैट्रिक परीक्षा पूरी की, तो 19 साल की उम्र में मेरी भी शादी कर दी गई थी।

एक अच्छी शांत शाम को, मेरे पति क्षेत्रीय रेडियो सुन रहे थे।

रेडियो शो पर एक पर्यावरण विशेषज्ञ कह रहा था – “इस दुनिया में भगवान और पॉलीथीन को छोड़कर बाकी सब नष्ट हो जाएगा।” जब मैंने ये शब्द सुने तो मैं बेचैन हो गई।

मेरा विचार था – “यह आदमी मानव-निर्मित निर्जीव वस्तु की तुलना हमारे जीवित सृष्टिकर्ता से कैसे कर सकता है!”

इस तरह पर्यावरण-अनुकूल तरीके से पॉलीथीन को नष्ट करने का तरीका खोजने की मेरी यात्रा शुरू हुई।

इस ब्रह्मांड में सब कुछ प्रकृति के नियम का पालन करता है। यदि पॉलीथीन बनाया जा सकता है, तो उसे नष्ट भी होना चाहिए। इसलिए मैंने अपनी खोज शुरू की।

लोग मेरा मजाक उड़ाते थे और मुझे डांटते थे। लेकिन मैंने अपने कमरे को एक प्रयोगशाला जैसे स्थान में बदल दिया।

जब मेरे पति किराने की दुकान में काम कर रहे होते थे, तब मैं प्लास्टिक की समस्या का समाधान ढूंढने के लिए गुप्त रूप से विभिन्न तरीकों पर काम करती थी।

सात वर्षों के कठोर शोध के बाद, मुझे एक जादुई जड़ी-बूटी मिल गई।

उस पूरे हफ्ते मैं कई बार अपने घर से बाहर गई, पॉलिथीन के लिफाफ़े और कूड़ा-कचरा रसोई में  इकट्ठे किए। और जब भी मैंने जड़ी-बूटी का घोल लगाया, पॉलिथीन कागज की तरह जल गई।

मैं समझ गई थी कि मुझे प्रदूषण फैलाने वाले प्लास्टिक के निपटान का समाधान मिल गया है।

लेकिन दुनिया को अपने आविष्कार का विश्वास दिलाना, खोज से कहीं ज्यादा मुश्किल साबित हुआ।

मेरी साधारण शैक्षिक पृष्ठभूमि एक बड़ी बाधा साबित हुई।

दर-दर भटकते हुए मैंने शिक्षकों, प्राध्यापकों और छात्रों से अपने नवाचार के बारे में बात की। लेकिन वे मुझ पर हंसे।

उपहास, शर्मिंदगी, मज़ाक – मैं इन सब से गुज़री हूँ।

जहाँ कुछ लोगों ने मेरी शैक्षिक योग्यता पर सवाल उठाया, कुछ ने कहा कि ऐसे विषयों पर चर्चा करने के लिए एक शोध विद्वान की जरूरत होती है।

मुझे वैज्ञानिक शब्दों का कोई ज्ञान नहीं था। और इससे कोई मदद नहीं मिली कि मुझमें संवाद कौशल की कमी थी।

लेकिन मैंने कभी उम्मीद और धैर्य नहीं खोया।

अपने दिल की गहराई में, मुझे पता था कि मैं सफल हो गई हूँ। मुझे बस यह समझाने का सही तरीका ढूँढना था कि जादुई जड़ी-बूटी कैसे काम करती है।

तो मैं अपने गाँव से लगभग 80 किलोमीटर दूर, कश्मीर विश्वविद्यालय गई। वहां एक प्रदर्शन के बाद, प्रोफेसर मोहम्मद यूसुफ ने मुझे USIC (दिल्ली विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी साइंस इंस्ट्रूमेंटेशन सेंटर) जाने की सलाह दी।

वहाँ भी मैंने विशेषज्ञों की एक टीम के सामने लाइव प्रदर्शन किया। मैंने जड़ी-बूटी को पानी में मिलाकर प्लास्टिक के कचरे पर छिड़का। प्लास्टिक जलकर राख हो गया और उसमें से न के बराबर गंध और धुआँ निकला।

मेरी खोज से आश्वस्त होकर विशेषज्ञों ने मुझे पेटेंट के लिए आवेदन करने को कहा।

हाँ, आख़िरकार मुझे मेरे प्रयासों के लिए मान्यता मिल गई। मुझे कहना होगा कि दुनिया उदार रही है और मैं अभिभूत महसूस करती हूँ।

मेरे नवाचार को ‘अनसंग इनोवेटर्स ऑफ कश्मीर’ पुस्तक में जगह मिली है।

‘इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में मेरा नाम “पॉलीथिन को राख में बदलने वाली पहली भारतीय महिला” के रूप में दर्ज किया गया है। यह और ‘एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ और ‘कलाम’स बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में उल्लेख पाना मेरे काम का पुरस्कार है।

नारी शक्ति पुरस्कार, जो मुझे हाल ही में भारत के राष्ट्रपति से प्राप्त हुआ, मुझे मिले पुरस्कारों में से एक है।

दरअसल, इस खोज ने नए रास्ते खोल दिए हैं।

मैंने उत्पाद का व्यवसायीकरण करने के लिए, एक राष्ट्रीय कंपनी के साथ समझौता किया है। मैं यह भी कहना चाहूँगी कि यह एक जानकारी सार्वजानिक ने करने का समझौता है और इसलिए मैं उस जड़ी-बूटी के बारे में बात नहीं कर सकती या उसे दिखा नहीं सकती, जिसका मैं उपयोग करती हूँ।

लेकिन यह उत्पाद दुनिया को पॉलीथीन राक्षस से मुक्ति दिलाएगा।

श्रीनगर स्थित पत्रकार नासिर यूसुफी की रिपोर्ट।

फोटो नासिर यूसुफी द्वारा और नासिरा अख्तर के सौजन्य से।