जहां कचरा गांवों को रोशन करता है
जब कचरे को मोहल्लों से उठाकर कूड़ा भंडारों तक पहुँचाना एक बड़ी समस्या है, तमिलनाडु के गाँव अपने गीले कचरे को बायोगैस में बदल कर बिजली पैदा कर रहे हैं।
जब कचरे को मोहल्लों से उठाकर कूड़ा भंडारों तक पहुँचाना एक बड़ी समस्या है, तमिलनाडु के गाँव अपने गीले कचरे को बायोगैस में बदल कर बिजली पैदा कर रहे हैं।
आँखों से ओझल वस्तु भुला दी जाती है। हम में से ज्यादातर लोगों का हमारे द्वारा उत्पन्न कचरे के प्रति NIMBY यानि “मेरे पिछवाड़े में नहीं” का दृष्टिकोण होता है।
लेकिन कुछ गाँव न केवल अपने कचरे का बेहतर प्रबंधन करने और इस प्रक्रिया में सडकों को स्वच्छ रखने, बल्कि इसके लिए बहुआयामी उपयोग खोजने का सचेत निर्णय ले रहे हैं।
इसका एक उदाहरण स्ट्रीट लाइट को बिजली देना है।
तमिलनाडु के तिरुवल्लुर जिले के वरदराजपुरम गाँव के डेयरी किसान, एस बालाकृष्णन कहते हैं – “गाय के गोबर से हमारे गाँव की 140 से अधिक स्ट्रीट लाइटें जलती हैं।”
शिवगंगा जिले के सुदूरवर्ती कंजिरांगल गांव में, भोजनालयों, बाजारों और घरों से निकलने वाले गीले कचरे से स्ट्रीट लाइटें जलाई जाती हैं।
जैव-कचरे से गैस बनाना तो आम बात है। लेकिन बिजली?
शिवगंगा के जिला कलेक्टर मधुसूदन रेड्डी ने बताया – “गीले कचरे को खाद में बदल कर इस्तेमाल किया जा सकता है या फिर बायोगैस बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बायोगैस का इस्तेमाल खाना पकाने या बिजली बनाने के लिए किया जा सकता है।”
इन संयंत्रों में खाना पकाने लायक दबाव नहीं होता और गैस को बोतलों में इकठ्ठा करना महंगा पड़ता है। रेड्डी कहते हैं – “इसलिए हमने बिजली का विकल्प चुना।”
कंजिरांगल स्थित संयंत्र आवासीय क्षेत्र से दूर है।
कंजिरांगल संयंत्र को स्थापित और संचालित करने वाली कंपनी ‘कार्बन लूप्स प्राइवेट लिमिटेड’ के ऑपरेशन मैनेजर एम. एल्विन ने ‘विलेज स्क्वेयर’ को बताया – “तो संयंत्र से मिलने वाली बिजली कुछ सामान्य सुविधाओं और पास के राजमार्ग के एक हिस्से को बिजली प्रदान करती है।”
लेकिन बायोगैस संयंत्र का विचार कैसे आया?
वरदराजपुरम में काफी संख्या में डेयरी किसान हैं।
क्योंकि गाँव के आसपास की अधिकांश कृषि भूमि रियल एस्टेट परियोजनाओं में तब्दील हो चुकी है, इसलिए मवेशियों के गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। निपटान का कोई अन्य तरीका भी नहीं था।
ग्रामीणों को याद है कि सड़कों पर गोबर फैला रहता था, जिससे उनका चलना मुश्किल हो जाता था।
कुछ मवेशी सड़कों पर गंदगी फैलाते हुए घूमते रहे, जबकि दुधारू गायों को गोशालाओं में या घरों के पास बांधकर रखा गया।
वरदराजपुरम पंचायत के अध्यक्ष, वी. कलैयारासु ने कहा – “दशकों से लोग गोशाला से पशुओं का मलमूत्र नालियों में बहाते आ रहे थे, जो बहकर पास के मन्नानकुट्टई तालाब में चला जाता था।”
इसका इतना रिसाव हो चुका था कि तालाब के पास के कुछ घरों के नल से निकलने वाला भूजल रंगहीन हो जाता था।
कलैयारासु कहते हैं – “जब बारिश के समय तालाब का यह गंदा पानी पास के सरकारी स्कूल में भर गया, जिससे स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो गया, तो तत्कालीन जिला कलेक्टर मगेश्वरी रविकुमार ने विकल्प के तौर पर बायोगैस संयंत्र का सुझाव दिया।”
बायोगैस उत्पादन
जहां तक कंजिरांगल का सवाल है, चेन्नई में इसी तरह का बायोगैस संयंत्र लगा चुके मधुसूदन रेड्डी ने इसे दोहराने का निर्णय लिया।
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “आज हमारे गाँवों, कस्बों और शहरों में सबसे बड़ी चुनौती ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन है। लगभग 50% कचरा खाद बनाने योग्य है। लेकिन आम तौर पर सब कुछ कूड़ा भंडार में डाल दिया जाता है। इसकी बजाय इसका इस्तेमाल उपयोगी ऊर्जा बनाने के लिए किया जा सकता है।”
वरदराजपुरम और कंजिरांगल में बायोगैस संयंत्रों की क्षमता 2 टन है, जो क्रमशः गाय के गोबर और गीले कचरे से संचालित होते हैं।
कंजिरांगल पंचायत के अध्यक्ष, केएसएम मणिमुथु ने कहा – “एक ई-कार घरों और भोजनालयों से रसोई और खाद्य-कचरा और पास की पंचायतों और शिवगंगा के साप्ताहिक सब्जी बाजारों से अन्य जैविक कचरा इकठ्ठा करती है।”
इकठ्ठा किया गया जैव-कचरा पानी के साथ मिला कर ‘डाइजेस्टर’ में डालने से ऑक्सीजन न मिलने से बायोगैस उत्पन्न होती है। इस बायोगैस का उपयोग बिजली बनाने के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है।
बिजली का उपयोग स्ट्रीट लाइट और ई-कार को चलाने के अलावा संयंत्र को चलाने के लिए भी किया जाता है।
लेकिन कचरे से ऊर्जा पैदा करना एक मात्र लाभ नहीं है। वरदराजपुरम की सड़कें अब साफ हैं।
बालाकृष्णन कहते हैं – “हम गोबर को ड्रमों में इकट्ठा करते हैं। हर सुबह कर्मचारी ड्रम लेकर जाते हैं।”
अब क्योंकि गाँव वाले नहर में कचरा नहीं बहाते, इसलिए पंचायत ने गंदगी साफ कर दी और तालाब को साफ कर दिया है।
कुल मिलाकर गांव साफ हो गया है और बारिश होने पर स्कूल में पानी जमा नहीं होता।
हालांकि गांव के कुछ लोग आशंकित हैं, क्योंकि जनरेटर फिलहाल काम नहीं कर रहा है। लेकिन पंचायत अध्यक्ष के अनुसार, वे जल्द ही जनरेटर की मरम्मत करवा देंगे और सड़कें साफ रहेंगी।
कंजिरांगल में मणिमुथु खुश हैं कि बाजार और गाँव साफ-सुथरे हैं। और ग्रामीण भी खुश हैं।
लेकिन इसमें और भी कुछ है।
रेड्डी कहते हैं – “संयंत्र से मिलने वाला घोल पोषक तत्वों से भरपूर होता है और उसे किसानों को खाद के रूप में मुफ़्त बाँट दिया जाता है। उसमें ठोस खाद भी होगी, लेकिन बहुत कम मात्रा में। इसलिए इसका उपयोग परिसर के किचन गार्डन में किया जाता है।”
किसान घोल को पतला करके तरल खाद के रूप में उपयोग करते हैं, जिसे सिंचाई के पानी में मिलाकर आसानी से प्रयोग किया जा सकता है।
एक किसान एलुमलाई के अनुसार, ऐसे शुद्ध तरल उर्वरक का प्रयोग सीधे खाद डालने से ज्यादा प्रभावी है, क्योंकि इससे शायद ही कोई खरपतवार उगती है।
जैविक कचरा प्रबंधन समाधान प्रदान करने वाली एक कंपनी, ‘BRITT Envirotech’ कंपनी के मैनेजिंग पार्टनर, एम विंस्टन कहते हैं – “यह घोल छह महीने में बंजर मिट्टी को उपजाऊ, सामान्य मिट्टी में बदल सकता है।”
रु. 66 लाख कीमत वाले कंजिरांगल संयंत्र के लिए धन ‘राष्ट्रीय रूर्बन मिशन’ (NRuM) द्वारा प्रदान किया गया था।
वरदराजपुरम में, संयंत्र चलाने का लगभग 50,000 रुपये महीना खर्च का वहन पंचायत द्वारा करने से, उनके बिजली बिल में शुद्ध बचत 40,000 रुपये से अधिक रही है।
रेड्डी कहते हैं – “ठोस कचरे को प्रोसेस करने का यह एक स्वच्छ तरीका है। क्योंकि इसमें कोई गंध नहीं होती, इसलिए लोगों को अपने पड़ोस में इसके होने पर कम आपत्ति होती है।”
सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे बड़ी मात्रा में कचरा कूड़ा भंडारों तक पहुंचने से बच जाता है।
जून 2021 से इस साल दिसंबर के पहले सप्ताह तक, 358 टन ठोस कचरे की प्रोसेसिंग कंजिरांगल में की गई है। कूड़ा भंडारों की गैस का लगभग 50% मीथेन गैस होने के कारण, 4,000 क्यूबिक मीटर से ज्यादा ग्रीनहाउस गैस को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोका गया है।
और जैसा कि मणिमुथु ने गर्व से कहा – “हम बिना किसी लागत वाले कच्चे माल से अत्यंत आवश्यक बिजली का उत्पादन करते हैं।”
यह कहानी ‘अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क’ के ‘अक्षय ऊर्जा कहानी अनुदान 2022’ के हिस्से के रूप में तैयार की गई है।
शीर्ष फोटो में दिखाया गया है कि बायोगैस संयंत्रों में उत्पादित बिजली किस प्रकार आम सुविधाओं को ऊर्जा प्रदान कर सकती है (फोटो – ‘लैकलन रॉस’, ‘पिक्सेल्स’ के सौजन्य से)
जेन्सी सैमुअल चेन्नई स्थित एक सिविल इंजीनियर और स्वतंत्र पत्रकार हैं।
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