ऐसे समय में, जब कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव साफ दिखाई दे रहे हैं, एक नया कार्बन-वित्त मंच झारखंड में जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा दे रहा है और किसानों को जलवायु-वित्त तक पहुंच में मदद कर रहा है।
जलवायु परिवर्तन भारतीय कृषि को उत्पादकता के साथ-साथ उपज की गुणवत्ता के मामले में गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। अनुकूल और प्रभाव कम करने संबंधी गतिविधियों के बिना, मौजूदा खेत अपनी उत्पादन क्षमता खो सकते हैं।
झारखंड भी जलवायु संकट से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कई अध्ययनों ने राज्य की जलवायु संवेदनशीलता और नाजुक स्थिति के कारण इसके खतरनाक हालात को उजागर किया है।
अपनी कम अनुकूलन क्षमता, सीमित संसाधन और जलवायु जोखिमों के प्रति बेहद कमजोर होने के कारण छोटे किसान विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
जलवायु कार्रवाई मंच का शुभारंभ
एक परामर्श सेवा कंपनी, ‘Intellecap’ और ‘ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) ने कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों के लिए जलवायु मंच तैयार किया है। इससे किसानों को जलवायु-वित्त प्राप्त करने में मदद मिलेगी और एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से किसानों के तकनीकी कौशल का विकास भी होगा।
इस प्लेटफॉर्म का शुभारंभ 13 दिसंबर को रांची में एक कार्यशाला के दौरान, झारखंड सरकार के उद्योग विभाग के निदेशक जितेंद्र कुमार सिंह और ग्रामीण विकास विभाग की ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ (MGNREGS) आयुक्त, बी राजेश्वरी द्वारा किया गया।
इस उद्घाटन कार्यक्रम में सरकार, किसान संगठनों, शैक्षणिक और अनुसंधान संगठनों, गैर सरकारी संगठनों और कृषि प्रौद्योगिकी सहित कई हितधारकों ने भाग लिया।
TRIF के प्रबंध निदेशक, अनीश कुमार कहते हैं – “इस मंच का शुभारंभ हमारी यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। अब हम वैज्ञानिक चेतावनी की दुनिया से वास्तविक दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं, जहां जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सभी पर पड़ रहा है।”
उद्घाटन कार्यशाला में प्रतिभागियों ने जलवायु अनुकूल कृषि और Intellecap-TRIF मंच की भूमिका के बारे में चर्चा की। उन्होंने इस बात पर विचार-विमर्श किया कि जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों की क्षमता को वास्तव में कैसे साकार किया जा सकता है।
राजेश्वरी कहते हैं – “झारखंड में इस मंच का शुभारंभ एक ऐतिहासिक घटना है और हमारे प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी को कम करने के सर्वोत्तम तरीकों को खोजने के लिए आदिवासी समुदायों से कई सबक सीखे जा सकते हैं।”
कार्बन-वित्त क्या है?
कृषि और वानिकी की कई पद्धतियाँ वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) का उत्सर्जन करती हैं। हालांकि कृषि कई मायनों में जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है, लेकिन इसमें जलवायु परिवर्तन को रोकने की क्षमता भी है।
कार्बन एक कीमती वस्तु है। जबकि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए बहुत से प्रयास चल रहे हैं, कार्बन व्यापार मॉडल में कार्बन क्रेडिट के खरीदार और विक्रेता के बीच एक समझौता किया जाता है। जो लोग अपने उत्सर्जन को कम करते हैं या कार्बन को अलग करते हैं, उन्हें भुगतान मिलता है, जबकि उत्सर्जन कम करने वाले अपने उत्सर्जन की भरपाई के लिए कार्बन क्रेडिट खरीद सकते हैं।
कार्बन-वित्त से तात्पर्य उस तरीके से है, जिसके माध्यम से कार्बन क्रेडिट का उपयोग करके कार्बन बाज़ारों में पैसा कमाया जा सकता है।
छोटे किसानों का सशक्तिकरण
इस पहल का उद्देश्य भारत के छोटे किसानों को टिकाऊ कृषि-वानिकी, जलवायु स्मार्ट कृषि और कार्बन अलग करने के उपायों के लिए कार्बन-वित्त का उपयोग करने में सहायता करना है।
यह पहल सरकार, कॉर्पोरेट कंपनियों और नागरिक समाज संस्थाओं को उनके कार्यों के लिए कार्बन-वित्त का लाभ उठाने का एक तरीका प्रदान करके उन्हें सहायता प्रदान करेगी।
Intellecap के पार्टनर और प्रबंध निदेशक, संतोष सिंह कहते हैं – “किसान जलवायु परिवर्तन के शिकार हैं और समाधान भी हैं।”
यह मंच निम्नलिखित तरीकों से किसानों का सशक्तिकरण करेगा:
कृषि वानिकी, स्वच्छ खाना पकाने और कचरा प्रबंधन जैसी विभिन्न प्रकार की कार्बन परियोजनाओं तथा उनके फायदों के बारे में जागरूकता पैदा करना
उच्च गुणवत्ता वाली कार्बन परियोजनाओं को डिजाइन और कार्यान्वित करने के लिए, तकनीकी क्षमता बढ़ाना
कार्बन परिसंपत्तियों और पूर्व-वित्त परियोजनाओं का मुद्रीकरण करने में उनकी सहायता करना
कार्बन लाभ को बाँटने के लिए सही पद्धतियों पर नियम बनाना और
बेहतर जलग्रहण क्षेत्र, ठंडी सूक्ष्म जलवायु, मिट्टी कटाव की रोकथाम और जैव विविधता संवर्धन के माध्यम से, जलवायु-संवेदनशील समुदायों की सहनशीलता में सुधार करना।
कार्बन क्रेडिट से लाभ
यह मंच छोटे किसानों को स्वैच्छिक कार्बन बाजार में एक स्वतंत्र कार्बन क्रेडिटिंग व्यवस्था के माध्यम से कार्बन क्रेडिट बेचकर पैसा कमाने में मदद करेगा।
वर्ष 2050 तक, स्वैच्छिक कार्बन उत्सर्जन का बाजार 200 अरब डॉलर होने की उम्मीद है।
सिंह कहते हैं – “इस मंच का उद्देश्य किसानों को टिकाऊ कृषि-वानिकी के लिए जलवायु और कार्बन-वित्त का उपयोग करने में मदद करना है। यह छोटे किसानों, कॉरपोरेट्स और नागरिक समाज संस्थानों को उनके कार्यों के लिए कार्बन-वित्त का लाभ उठाने का एक तरीका प्रदान करके उनका सहयोग भी करेगा।”
निजी क्षेत्र की भागीदारी महत्वपूर्ण
उद्घाटन कार्यशाला में ‘आविष्कार कैपिटल’ और ‘शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन’ जैसे निजी क्षेत्र के वित्तपोषकों की उपस्थिति देखी गई, जो विभिन्न जलवायु अनुकूल गतिविधियों का सहयोग करते हैं।
आविष्कार कैपिटल के पार्टनर, एम संचयन चक्रवर्ती कहते हैं – “पूंजी उपलब्ध कराने वालों, विशेष रूप से उन कॉरपोरेट्स की भूमिका महत्वपूर्ण है, जो कार्बन क्रेडिट खरीदते हैं या पूर्व-वित्त प्रदान करते हैं।”
यह पहल स्वैच्छिक कार्बन बाजार सहित विभिन्न प्रकार के जलवायु वित्त व्यवस्थाओं का लाभ उठाती है, ताकि संसाधन जुटाए जा सकें और किसानों को जलवायु अनुकूल पद्धतियों को लागू करने में सहायता मिल सके।
शुरू के वर्षों में उन्हें वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करके, यह पहल उन्हें जलवायु सुधार और अनुकूल बनने की पद्धतियों को पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर बनाएगी।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?