इन पारम्परिक व्यंजनों के बिना दक्षिणी तमिलनाडु में क्रिसमस का क्या मतलब?
तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में, दूसरों को अजीब लग सकने वाली दो पारम्परिक मिठाइयों, ‘मुंधिरी कोथु’ और ‘विविक्कम’ के बिना क्रिसमस का जश्न अधूरा है।
तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में, दूसरों को अजीब लग सकने वाली दो पारम्परिक मिठाइयों, ‘मुंधिरी कोथु’ और ‘विविक्कम’ के बिना क्रिसमस का जश्न अधूरा है।
गुड़ की चाशनी और इलायची के साथ पिसे और भुने चने की सुगंध, दक्षिणी तमिलनाडु के बहुत से लोगों के लिए क्रिसमस के उत्साह को बढ़ा देती है।
क्योंकि इसका निश्चित रूप से मतलब है कि लोग मुंधिरी कोथु तैयार कर रहे हैं, जो तिरुनेलवेली और कन्याकुमारी के दक्षिणी जिलों में परिवारों के लिए एक आदर्श क्रिसमस उपहार है। राज्य के बाकी हिस्सों में ज़्यादातर लोगों को यह नाम अजीब लगता है।
कॉलेज के एक छात्र केविन सैमुअल ने जब पहली बार यह नाम सुना, तो उन्होंने पूछा – “मुंधिरी कोथु? मैं जानता हूँ कि ‘मुंधिरी का मतलब काजू होता है। क्या यह काजू के फलों का गुच्छा है?”
हालांकि बहुत से लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी है, लेकिन दक्षिणी जिलों में रहने वालों के लिए क्रिसमस इस मिठाई के बिना अधूरा है।
तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों के लोग क्रिसमस को अधिक उत्साह से मनाते हैं, क्योंकि ब्रिटिश शासन के समय इस क्षेत्र में कई ईसाई मिशनरी थे। लेकिन उत्सव की जड़ें परम्परा में हैं, खासकर जब बात उस क्षेत्र के विशिष्ट भोजन की हो।
एक कॉलेज में कार्यरत जी. बेनिता याद करती हैं कि जब वह स्कूल में पढ़ती थी, तो भुने हुए हरे चने को ओखली और मूसल से पीसने की लयबद्ध आवाज सुनाई देती थी।
बेनिता कहती हैं – “किसी भी दुर्घटना से बचने के लिए हम बच्चों को रसोई से बाहर निकाल दिया जाता था, क्योंकि हरे चने के पाउडर पर गुड़ की गर्म चाशनी डालकर उसे गोल आकार दिया जाता था।”
पारम्परिक रूप से तीन गोलियों को एक पतले घोल में डुबोया जाता है और तेल में तला जाता है। लेकिन आजकल एक-गोली की मुंधिरी कोथु भी आम है।
अस्सी वर्षीय सेवानिवृत शिक्षक फ्रेडरिक देवदास ने भी अपने बचपन के दिनों को याद किया, जब उनकी माँ हाथ से चने पीसती थी। हालांकि अब यह काम हाथ से नहीं किया जाता, लेकिन क्रिसमस के समय हल्का मीठा नाश्ता लगभग सभी पसंद करते हैं।
‘अचू मुरुक्कु’, ‘अचप्पम’, ‘गुलाब कुकीज़’, ‘कोकीज़’, ‘कोक्कस’ और ‘कोक्कुसम’ जैसे कई नामों से पुकारा जाने वाला यह कुरकुरा नाश्ता, शीला वर्गीज के परिवार में क्रिसमस पर नियमित रूप से बनता है।
यह अब तमिलनाडु के अन्य भागों में भी उपलब्ध हो सकता है, लेकिन दक्षिणी जिलों में यह ज्यादा लोकप्रिय है और विशेष रूप से क्रिसमस पर बनाया जाता है।
यह नाश्ता एक थाली-सांचे को अंडे, नारियल के दूध, चीनी के पाउडर और चावल के आटे के पतले घोल में डुबोकर और फिर कुछ मिनट के लिए गर्म तेल में डुबोकर बनाया जाता है।
बेनिथा ने अपनी चचेरे भाई-बहनों के साथ अचू मुरुक्कु खाने के मुकाबले के बारे में याद करती हैं।
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हम अचू मुरुक्कु की पंखडियाँ तोड़ देते थे, एक-एक को उंगली में पहन लेते थे और देखते थे कि कौन उन्हें पहले खा कर ख़त्म करता है।”
इसे जानने के बाद, कॉलेज की छात्रा एस्थर शेरिल जूलियाना जैसी अगली पीढ़ी भी इसका आनंद लेना जारी रखना चाहती है।
बच्चों के लिए, क्रिसमस नाश्ते का मतलब तैयारी में हाथ बंटाना भी है।
देवदास याद करते हैं कि कैसे उनके भाई ओखली और मूसल से मुंधिरी कोथु मावु पीसने में उनकी माँ की मदद करते थे।
लगभग हमेशा, सब लोग गेंद पर चाशनी चढ़ाने और तलने से पहले ही खा लेते हैं।
यही बात ‘काला काला’ के लिए भी सच है। अंडे या बिना अंडे के साथ, गेहूं के आटे और चीनी से बना एक साधारण नाश्ता, काला काला, जिसे कोनेदार आकार में हीरा-कट के रूप में भी जाना जाता है, सी पेपिटी का बचपन से ही क्रिसमस का पसंदीदा व्यंजन है। वह अब इसे अपने बच्चों के लिए बनाती हैं।
वह कहती हैं – “मैं और मेरी बहनें अपनी माँ के चारों ओर बैठ जाते थे और उनकी मदद करने के बहाने हम आटे का कम से कम एक चौथाई हिस्सा खा लेते थे।”
महिलाओं ने संकोच के साथ स्वीकार किया कि आज भी जब वे अपने बच्चों के लिए काला काला बनाती हैं, तो मीठा कच्चा आटा खाती हैं।
यहां भी, बच्चे हों या बड़े, सब लोगों में नाश्ता बनाते समय कच्चा काला काला अपने मुंह में डालने की प्रवृत्ति रहती है।
सैमुअल, जो इसे तैयार करने में ‘मदद’ करते हैं, कहते हैं – “ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह आटा अपने आप में स्वादिष्ट है और इसमें मजा आता है।”
एक धार्मिक संस्थान से सेवानिवृत्त राजीव हेनरी के लिए बचपन में क्रिसमस का मतलब नाश्ते में सुसियम खाना था।
कुछ कुछ मुंधिरी कोथु जैसा, लेकिन बंगाली चने की दाल से बना, सुसियम नाश्ते या स्नैक के रूप में भी खाया जा सकता है।
इसी तरह का एक टू-इन-वन व्यंजन ‘विविक्कम’ है। इसे इडली के सांचे में भाप में पकाया जाता है, लेकिन इसमें कच्चे चावल, चीनी, काजू और किशमिश से बना घोल थोड़ा अलग होता है। लेकिन यदि कोई इसे मीठी इडली कहे, तो इस क्षेत्र के लोग बुरा मान जाएंगे।
वे कहते हैं – “यह अलग है। जब आप इसका स्वाद चखेंगे तो आपको पता चल जाएगा।”
आटे को खमीर उठने के लिए रात भर छोड़ दिया जाता है और इसके साथ किसी अन्य तैयारी या चटनी की ज़रूरत नहीं होती। पारम्परिक विधि से, कुछ लोग अब भी खमीर प्रक्रिया में मदद के लिए ताड़ी मिलाते हैं।
सैमुअल के लिए विविक्कम क्रिसमस का पसंदीदा व्यंजन है। जो लोग सुबह-सुबह चर्च में क्रिसमस की सेवा से लौटते हैं, उनके लिए यह आसानी से बनने वाला नाश्ता है।
सैमुअल कहते हैं – “आप बस एक नरम और मुलायम विविक्कम लें और उसे चबाकर खा सकते हैं। यह किसी भी समय, किसी भी जगह पर खाया जाने वाला क्रिसमस व्यंजन है।”
राजीव हेनरी के लिए, मुंधिरी कोथु और काला काला क्रिसमस की बचपन की यादें हैं।
जो लोग शहरों में चले गए हैं, उन्हें समय की कमी के कारण घर पर ये पारम्परिक व्यंजन बनाना मुश्किल लगता है। फिर भी क्रिसमस इन मिठाइयों के बिना अधूरा लगता है।
ऐसे प्रवासी लोगों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए, कुछ दुकानें ऑनलाइन ऑर्डर लेती हैं और क्रिसमस की वस्तुएं भेजती हैं।
कन्याकुमारी जिले के कोलाचेल निवासी जे. फ्रैंकलिन ‘कन्याकुमारी कडाई’ चलाते हैं और पूरे तमिलनाडु और बेंगलुरु जैसे कुछ अन्य शहरों में पारम्परिक मिठाइयाँ भेजते हैं।
फ्रैंकलिन कहते हैं – “क्रिसमस के दौरान मुंधिरी कोथु, अचू मुरुक्कु और काई मुरुक्कु की मांग सबसे ज्यादा होती है।”
मिट्टाई कडाई की सुब्बुलक्ष्मी चिदंबरम ने उनकी बात की तस्दीक की।
वह कहती हैं – “दक्षिणी जिलों से दूसरे स्थानों पर बसे लोग हमसे खरीदारी करते हैं। हाल ही में हमने असम और यहां तक कि लद्दाख में भी क्रिसमस की पारम्परिक मिठाइयां भेजी हैं।”
ऐसी लोकप्रियता के साथ, मुंधिरी कोथु, विविक्कम वगैरह अब न केवल तमिलनाडु के बाकी हिस्सों में, बल्कि शेष भारत के लोगों के लिए भी अजीब नाम नहीं रहेंगे।
मुख्य फोटो में विविक्कम की एक प्लेट दिखाई गई है, जो क्रिसमस का एक व्यंजन है, जिसे नाश्ते या स्नैक के रूप में खाया जा सकता है (छायाकार – केविन सैमुअल)
जेन्सी सैमुअल चेन्नई स्थित पत्रकार और सिविल इंजीनियर हैं।
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