इस सर्दी में कश्मीरी नूण चाय के साथ स्वस्थ रहें
कश्मीर की संस्कृति का प्रतीक - नमकीन, गाढ़ी नमक की चाय - वाष्पित दूध में बनाई जाती है और चाय की दुकानों और घरों में गर्मागर्म परोसी जाती है।
कश्मीर की संस्कृति का प्रतीक - नमकीन, गाढ़ी नमक की चाय - वाष्पित दूध में बनाई जाती है और चाय की दुकानों और घरों में गर्मागर्म परोसी जाती है।
इन सर्दियों में यदि आप ठण्ड महसूस कर रहे हैं, प्यासे हैं या कॉफ़ी पीने के थोड़ी सी भी इच्छा हो रही है, तो गुलाबी-बैंगनी “पार-टी” पीना शुरू कर दीजिए।
आप इन वाक्यों को चुटकी भर समुद्री नमक के साथ ले सकते हैं, लेकिन यदि आपका नियमित पेय पदार्थ कश्मीरी संस्कृति का प्रतीक नून चाय है, तो आप सोडियम के बिना नहीं रह सकते।
जिन्हें इसकी जानकारी नहीं है, उन्हें बता दें कि नूण स्थानीय भाषा में नमक को कहा जाता है और चाय का अर्थ तो आप जानते ही हैं।
बेकिंग सोडा और उबलते दूध से घने वायु संचार के कारण यह नमकीन चाय गुलाबी रंग की दिखती है, जिससे इसे गाढ़ी बनावट मिलती है। इसे ‘शीर चाय’ भी कहा जाता है, लेकिन इसका दूसरा नाम ज्यादा परिचित है।
सबसे पहले पानी उबालें और हरी चाय की पत्तियों को झाग बनने तक उबालें। बेकिंग सोडा डालकर अच्छी तरह फेंटें और इलायची पाउडर और थोड़ा और पानी डालें। कुछ लोग इसमें पिसे हुए बादाम, पिस्ता और दालचीनी भी मिलाते हैं।
चाय को चटक लाल होने तक उबलने दें। अब दूध डालें और हल्का झाग आने तक फिर से फेंटें। रंग प्यारा गहरा गुलाबी हो जाएगा। दूध को गाढ़ा होने तक भाप उड़ने दें।
सही रंग आने तक इंतजार करें और फिर नमक डालें और गरमागरम परोसें।
यह मिश्रण स्थानीय लोगों और यात्रियों को उस समय “स्वस्थ” रखने के लिए जाना जाता है, जब पहाड़ों की ठंडी हवा हड्डियों को चीरती है।
कल्पना कीजिए। दक्षिण कश्मीर के सेबों के शहर शोपियां में दिसंबर की एक तेज़ हवा वाली सुबह में, लोग अपने पसंदीदा चायवाले की सड़क किनारे चाय की दुकान खुलने से पहले ही उसके बाहर एक-एक दो-दो की संख्या में इकट्ठा होते हैं। जब तक पीर पंजाल की चोटी से सूरज की सुन्दर किरणें निकलती हैं और मोहम्मद अमीन वागे की पुरानी चाय की केतली को चमकीले सुनहरे रंग में रंग देती हैं, तब तक यह संख्या बढ़ती हुई भीड़ में बदल जाती है।
52-वर्षीय चाय के माहिर अमीन के ग्राहकों में ज़्यादातर ट्रक चालक हैं, जो घाटी के सबसे बड़े फल बाज़ारों में से एक से सबसे स्वादिष्ट और मीठे कश्मीरी सेबों को भूखे मैदानों तक ले जाते हैं। यह 1,000 मील की यात्रा एक ही बार में शुरू होती है और दोपहर की चाय उन्हें जगाए रखती है। और गर्म भी।
वागे की दुकान उन अनेक दुकानों में से एक है, जो एकांत, घुमावदार पहाड़ी सड़कों के किनारे स्थित हैं, जहां नूण चाय आमतौर पर गिलास में परोसी जाती है।
जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बनिहाल दर्रे के रास्ते में, काजीगुंड बाजार में श्रीनगर से आया एक ट्रक चालक गर्म चाय के गिलास के चारों ओर अपनी उंगलियाँ लपेटे हुए है और धीरे-धीरे चुस्कियाँ ले रहा है।
चुस्कियाँ प्रोत्साहित की जाती हैं, जो चाय बनाने वाले के प्रति संतोषपूर्ण सम्मान का एक प्रतीक है।
मुज़म्मिल अहमद कहते हैं – “गाड़ी रोकने के लिए यह मेरी पसंदीदा जगह है। रात भर यात्रा के बाद, सुबह की एक गिलास चाय से ज़्यादा ताज़गी देने वाली कोई चीज़ नहीं है। यहाँ नूण चाय ज़रूर पीनी चाहिए।”
कश्मीरियों के लिए कोई भी समय चाय का समय हो सकता है, विशेष रूप से सुस्त, बर्फीली सर्दियों में, जब हर कोई अपने आपको गर्म और तरोताजा रखने के लिए इस प्रिय पेय की ओर रुख करता है।
सुबह मेरी पसंदीदा होती है। परिवार के सभी सदस्य चाय के लिए इकट्ठे होते हैं। हमारे पास आधुनिक केतली हैं, लेकिन हम अपनी चाय समोवर से डालना पसंद करते हैं
लेकिन चाय की दुकानों पर आपको जो मिलता है, वह तो बस सतही होता है।
कश्मीरी घरों में अलाव के पास बैठकर नूण चाय पीने का गहरा अर्थ होता है।
परिवार के सदस्य मोटे कालीनों पर एक दूसरे के करीब एक घेरे में बैठकर, हर सुबह और शाम चाय पर मेल मिलाप करते हैं, “समोवर” से भाप की लपटें उठती हैं और कमरे में ताज़ी पकी हुई “त्शोट” या “गिरदा” की खुशबू फैलती है। एक सुखद दृश्य।
यह गाढ़ी चाय किसी भी चॉकलेट शेक से ज्यादा स्वादिष्ट और सुखदायक है
चाय और ठहाके स्वर्ग में बनी सच्ची ‘माचा’ है।
एक स्वयंभू चाय की दीवानी, शाहीना बानो कहती हैं – “सुबह मेरी पसंदीदा है। परिवार के सभी सदस्य चाय के लिए इकट्ठे होते हैं। हमारे पास आधुनिक केतली हैं, लेकिन हम समोवर से चाय परोसना पसंद करते हैं।”
हर सुबह वह समोवर जलाती है, जिसकी उत्पत्ति प्राचीन रूस से हुई है, लेकिन अब इसका सम्बंध कश्मीर और उसकी प्रसिद्ध चाय से जुड़ गया है। यह एक बड़ा बर्तन होता है, जो अक्सर तांबे या पीतल से बना होता है, जिसके एक तरफ नलकी और दूसरी तरफ हैंडल होता है।
नमकीन चाय को ‘कंडेर त्शोट’ (चपटी रोटियाँ) के साथ परोसा जाता है। कंडेर का मतलब बेकर होता है, इसलिए स्थानीय बेकरी की भट्टी में बने त्शोट को कंडेर त्शोट कहा जाता है। यहाँ मक्के से बना मकई त्शोट भी है और खमीर उठे हुए आटे से बना गिरदा। इसके साथ सूखे मेवे और बिस्कुट भी अच्छे लगते हैं।
पट्टन गाँव के एक किशोर, अयान अली कहते हैं – “यह गाढ़ी चाय किसी भी चॉकलेट शेक से ज्यादा स्वादिष्ट और सुखदायक है।”
वे कहते हैं कि नूण चाय कश्मीरी लोगों के साथ पालने से लेकर कब्र तक और बच्चे के जन्म की रस्मों, जन्मदिन, शादी और सभी तरह के पुनर्मिलन जैसी बीच के हर मौके पर साथ रहती है। जब शोक मनाने के लिए लोग किसी परिवार के पास जाते हैं और मृतक को श्रद्धांजलि देते हैं, तो गर्म चाय वाली समोवर एक आम दृश्य होता है।
नूण चाय का इतिहास विशाल पीर पंजाल रेंज के दर्रे जितना ही समृद्ध है। इसी तरह की नमकीन चाय मध्य एशिया और तिब्बत में बहुत पसंद की जाती है। यह संभवतः कश्मीर में लगभग एक हज़ार साल पहले आई थी, जब ‘सिल्क रूट’ घाटी से होकर गुज़रता था और व्यापारियों के बड़े-बड़े कारवां इस पर चलते थे।
इसलिए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि एक “ऊलोंग” समय पहले, चीनी यात्री हरी चाय की पत्तियाँ लेकर आए थे और कश्मीरियों ने इसमें दूध और सेंधा नमक मिलाया था। अब, यह मत पूछिए कि किस रसायनविद की “रचनात्मक चाय” ने इस कालातीत नुस्खे को गढ़ा।
बस अपनी उंगलियों को गर्माहट के चारों ओर लपेटें, पियें और आनंद लें।
शीर्ष पर मुख्य फोटो में कंडेर त्शोट के साथ गुलाबी गर्म नमक चाय का एक कप दिखाया गया है, जिसे “नूण चाय” के रूप में भी जाना जाता है (छायाकार – नासिर यूसुफ़ी)
नासिर यूसुफ़ी श्रीनगर स्थित पत्रकार हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?
यह पूर्वोत्तर राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां कई ऐसे स्थान हैं, जिन्हें जरूर देखना चाहिए।