ताइक्वांडो मास्टर की आत्मविश्वास-किक
विकास प्रबंधन की छात्रा शाशवी ठाकुर एक भावुक और प्रगतिशील ताइक्वांडो ब्लैकबेल्ट से प्रेरित हैं, जो मध्य प्रदेश में हाशिए पर पड़े बेदिया समुदाय के युवा लड़कियों और लड़कों को प्रशिक्षित करती हैं।
विकास प्रबंधन की छात्रा शाशवी ठाकुर एक भावुक और प्रगतिशील ताइक्वांडो ब्लैकबेल्ट से प्रेरित हैं, जो मध्य प्रदेश में हाशिए पर पड़े बेदिया समुदाय के युवा लड़कियों और लड़कों को प्रशिक्षित करती हैं।
विकास प्रबंधन की छात्रा शाश्वी ठाकुर, एक जुनूनी और प्रगतिशील ताइक्वांडो ब्लैक-बेल्ट से प्रेरित हैं, जो मध्य प्रदेश में वंचित बेदिया समुदाय के युवा लड़कियों और लड़कों को प्रशिक्षित करती हैं।
एक कक्षा के दौरान ताइक्वांडो अकादमी में प्रवेश करने पर, दो छोटी लड़कियों को इतनी कम उम्र में अविश्वसनीय स्तर तक बेहतरीन अभ्यास करते हुए देख मुझे हैरानी हुई।
इसने मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की इस मार्शल आर्ट अकादमी के पीछे उनके गुरु, 48 वर्षीय मनोज शिवहरे के बारे में मेरी जिज्ञासा जगा दी।
जब उन्होंने मुझे अपनी कहानी सुनाई, तो मैंने पाया कि वे काफी असाधारण व्यक्ति हैं।
मनोज एक स्कूल में न्यूनतम वेतन पर पढ़ाते हैं, क्योंकि वह अपनी कक्षाओं के लिए बहुत कम पैसे लेते हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि यह उनके परिवार के लिए संतोषजनक है, हालांकि मुझे ऐसा नहीं लगता।
एक ताइक्वांडो ब्लैक-बेल्ट धारक के रूप में, मुकाबलों में हिस्सा लेते हुए उन्होंने दुनिया भर में यात्रा की है, जो पदकों और प्रमाणपत्रों से सजी उनकी कार्यालय की दीवारों से स्पष्ट होता है।
उनका अपनी पत्नी, अपने बच्चों और अपने छात्रों के प्रति प्रगतिशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। वह पारम्परिक तरीकों की बजाए नए तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, इस विश्वास के साथ कि सामग्री को समझने और सीखने की पूरी जिम्मेदारी अकेले बच्चे पर नहीं, बल्कि खुद उन पर भी रहे।
बच्चों से मिलने वाले फीडबैक के आधार पर मनोज सिखाने के अपने तरीकों को छोड़ने, फिर से सीखने और दोबारा डिजाइन करने के लिए काफी सक्रिय लग रहे थे।
मनोज द्वारा उपयोग की जाने वाली पठन-पाठन विधि ज्यादा प्रमुख संगठनों द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीतियों जैसी है। यह उनके प्रयासों को और भी आश्चर्यजनक बनाता है, क्योंकि उन्होंने कोई औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया, और जबकि वह एक रूढ़िवादी समुदाय से सम्बंध रखते हैं।
उन्होंने जो कुछ भी सीखा है, वह सिर्फ अनुभव से सीखा है।
अकादमी ग्रामीणों के लिए एक वरदान है, खासकर बेदिया समुदाय की लड़कियों के लिए, जो अन्यथा पितृसत्ता के अधीन रह जातीं।
उन्हें शादी या वेश्यावृत्ति या कभी कभी दोनों के दुष्चक्र में जीने के लिए छोड़ दिया जाएगा।
मनोज के शिक्षण ने न सिर्फ इन युवा लड़कियों को एकाग्रता,अनुशासन और आत्म-रक्षा पर आधारित एक नया कौशल सीखने के लिए, बल्कि उनके विकल्पों को खोलने में भी मार्गदर्शन किया है।
उन्होंने अपनी पत्नी को भी इस ‘जीवन रक्षक’ मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित किया।
मैंने देखा कि जिन नैतिकताओं और मूल्यों के लिए वह खड़े थे, वह उनके बच्चों के आचरण में परिलक्षित हो रहे थे।
मनोज और उनके परिवार को बार बार समुदाय के अन्य लोगों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है, जो उनके काम को अपनी संस्कृति के लिए खतरे के रूप में देखते हैं।
लेकिन भले ही उनके परिवार को अपनी सामाजिक सुरक्षा के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा, मनोज ने समुदाय में ही रहने का विकल्प चुना – भीतर से बदलाव लाने के लिए। यहां तक कि मुरैना के बाहर काम करने का मौका मिलने पर, जहां उन्हें अपने कौशल के लिए ज्यादा वेतन मिलता, मनोज ने यहीं रहना चुना।
वह अपने साथ खड़े रहने के लिए अपनी पत्नी को अपनी ताकत का श्रेय देते हैं। यह विशेष रूप से महामारी के दौरान सामने आया, जब उन्हें कई दिनों तक राशन न आने के कारण घर चलाना पड़ता था।
ऐसे कई मौके आए हैं, जब समुदाय ने उन्हें निराश किया या उनका सहयोग नहीं किया, लेकिन उन्होंने कभी भी इसे अपने बच्चों पर नहीं निकाला और अपना निस्वार्थ काम करते रहे।
दुर्भाग्य से, समुदाय अपने छात्रों को सिखाने और उनके लिए उपलब्ध रहने के लिए, उनके प्रयास को नहीं समझता।
ऐसा लगता है जैसे मनोज के छात्र ही एकमात्र ऐसे लोग हैं, जो जानते हैं कि उनके प्रयास उनके जीवन में क्या बदलाव लाते हैं और उन अकल्पनीय संभावनाओं को जानते हैं, जिन्हें खोलने में उन्होंने मदद की है।
शाश्वी ठाकुर ‘इंडियन स्कूल ऑफ डेवलपमेंट मैनेजमेंट’ की पोस्टग्रेजुएट छात्रा हैं। उन्होंने यह लेख ‘रियलाइज़िंग इंडिया’ नामक कार्यक्रम के ‘रूरल इमर्शन’ भाग के दौरान लिखा था, जब वे मध्य प्रदेश के मुरैना जिले का दौरा कर रही थीं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?
यह पूर्वोत्तर राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां कई ऐसे स्थान हैं, जिन्हें जरूर देखना चाहिए।