भारत में पांच साल से कम उम्र के 10 में से एक बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। इससे वे व्यवस्था के लिए अदृश्य हो जाते हैं, और सरकारी प्रावधानों का लाभ उठाने में असमर्थ हो जाते हैं। लेकिन ‘डेवलपमेंट फेलो’ सोहिनी ठाकुरता और स्मृति गुप्ता ने पाया है कि मध्य प्रदेश का एक जिला इस रुझान को कम करने की कोशिश कर रहा है।
छतरपुर, मध्यप्रदेश की एक आंगनवाड़ी में हमारी मुलाकात एक 19 वर्षीय महिला से हुई, जो अपने एक साल के बच्चे के साथ आई थी और अपने दूसरे बच्चे के साथ गर्भवती थी।
उसके पास अपनी पहचान साबित करने के लिए, जन्म प्रमाण पत्र या कोई अन्य दस्तावेज नहीं था।
वह हमारी व्यवस्था के लिए अदृश्य थी, क्योंकि उसका कोई रिकॉर्ड नहीं था।
डिजिटल दुनिया में हमारे प्रवेश के बावजूद, भारत के 10% नवजात शिशुओं के मामले में ऐसा ही है।
एक बच्चा, जिसका जन्म के समय पंजीकरण नहीं हुआ है, उसे एक आधिकारिक पहचान, एक मान्यता प्राप्त नाम और राष्ट्रीयता के अधिकार से वंचित होने का खतरा है। यह अपनी पहचान साबित करने के लिए आजीवन संघर्ष और माँ एवं बच्चे, दोनों के जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से चलने वाली कई योजनाओं का लाभ उठाने में असमर्थता की ओर ले जाता है।
लेकिन क्या इसका सभी बच्चों पर एक जैसा प्रभाव पड़ता है? समाज के सबसे गरीब वर्गों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों और अशिक्षित परिवारों के बच्चे हर तरह वंचित रहने के कगार पर हैं। उनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं होने की संभावना अधिक होती है, जिससे वे जन्म के समय से ही पिछड़ जाते हैं।
जन्म प्रमाण पत्र न होने के क्या नुकसान हैं?
यूनिसेफ की पूर्व कार्यकारी निदेशक, हेनरिएटा फोर कहती हैं – “एक बच्चा, जिसका जन्म के समय पंजीकरण नहीं हुआ है, वह अदृश्य है, सरकार या कानून की नजर में गैर-मौजूद। पहचान के प्रमाण के बिना, बच्चे अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं से बाहर रह जाते हैं, और उनके शोषण और दुर्व्यवहार की सम्भावना अधिक होती है।”
एक जन्म प्रमाण-पत्र पंजीकरण, एक बच्चे को अस्तित्व के लिए कानूनी मान्यता प्रदान करता है, जो बच्चे के लिए अक्सर कानूनी पहचान का पहला और एकमात्र सबूत होता है।
18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के पास मतदाता पहचान पत्र नहीं होता है। और यदि उन्होंने कक्षा 10 या 12 की बोर्ड परीक्षा नहीं दी है, तो उनके पास वे प्रमाण पत्र भी नहीं होते हैं, जिससे जन्म प्रमाण पत्र उनके जन्म स्थान और कानूनी अस्तित्व का एकमात्र प्रमाण रह जाता है।
जन्म के एक वर्ष बाद, जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया बेहद जटिल हो जाती है, जिससे यह गरीबों की पहुँच के बाहर हो जाता है।
जिस देश में, ग्रामीण साक्षरता दर 68.91% है (2011 की जनगणना के अनुसार), वहां समाज के सबसे कमजोर वर्गों से आने वाले बच्चों को बेहतर जीवन प्रदान करने के उद्देश्य से सार्वजनिक योजनाओं का लाभ उठाने के लिए, जन्म प्रमाण पत्र होना जरूरी हो जाता है।
जन्म साबित करने के लिए दस्तावेज़ीकरण के अभाव में, सबसे कमजोर वर्ग, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोग और महिलाएं और बच्चे, सबसे ज्यादा पीड़ित हैं।
10% भारतीयों के पास जन्म प्रमाण पत्र क्यों नहीं है?
भारत सार्वजनिक सुविधाओं में डॉक्टरों, नर्सों और डेटा ऑपरेटरों की भारी कमी का सामना कर रहा है। इसके साथ-साथ, पंजीकरण कर्मचारियों में प्रक्रिया-सम्बन्धी ज्ञान की कमी है, जिससे पंजीकरण स्तर कम हो जाता है।
‘नागरिक पंजीकरण प्रणाली’ के अनुसार, 21 दिनों के भीतर संबंधित जन्मों के लिए रजिस्ट्रार द्वारा जन्म प्रमाण पत्र नि:शुल्क जारी किए जाते हैं।
लेकिन क्या 21 दिन का समय काफी है?
अधिकांश कमजोर बच्चे दूर-दराज के इलाकों में रहते हैं, जहां प्रसव सुविधाओं की इकाइयां नहीं होती हैं, और परिवारों को संस्थागत प्रसव के लिए, 80-100 किमी तक का सफर करना पड़ता है।
प्रसव के समय, सरकार प्रसव केंद्रों पर परिवार को लाने और छोड़ने के लिए, निःशुल्क एंबुलेंस प्रदान करती है। यदि परिवार अस्पताल से छुट्टी के समय (जो सामान्य प्रसव के लिए जन्म तिथि से तीन दिन है) जन्म प्रमाण पत्र नहीं लेता है, तो उन्हें फिर से प्रसव केंद्र जाना पड़ता है, जिसका खर्च 1500-2000 रुपये होता है, जो एक परिवार के लिए बाधक है।
साथ ही, किसी भी सरकारी कल्याणकारी योजना के लिए जन्म प्रमाण पत्र की तत्काल जरूरत नहीं होती है। अभिभावकों में पंजीकरण के महत्व के बारे में जागरूकता भी कम है।
‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज’, मुंबई के प्रोफेसर, चंद्र शेखर कहते हैं – “जन्म प्रमाण पत्र का स्वामित्व कम हो सकता है, क्योंकि भारत में माता-पिता प्रमाण पत्र बाद में तब लेना चाहते हैं, जब विभिन्न उद्देश्यों के लिए इसकी जरूरत पड़ती है।”
लेकिन मध्य प्रदेश का एक जिला इस लहर का रुख मोड़ने की कोशिश कर रहा है।
छतरपुर जिला कैसे सुनिश्चित कर रहा है कि अधिकांश बच्चों को जन्म प्रमाण पत्र मिले?
छतरपुर देश के 112 “आकांक्षी जिलों” (सबसे अविकसित) में से एक है। जिला अस्पताल में छुट्टी के समय लाभार्थियों को जन्म प्रमाण पत्र देने की इसकी दर बहुत कम थी, जहां एक साल में लगभग 7,500 प्रसव होते हैं और जो 17 लाख की आबादी को सेवाएं प्रदान करता है।
अस्पताल में लगभग 30% प्रसव आसपास के जिलों सागर, पन्ना, महोबा और टीकमगढ़ से होते हैं। इससे लाभार्थियों को जेब से खर्च करके और अपनी दिहाड़ी मजदूरी का नुकसान उठा कर, जिला अस्पताल के कई चक्कर लगाने पड़ते थे।
इस पहल को अपनाने में कर्मचारियों के सामने एक बड़ी चुनौती यह थी कि माता-पिता अपने बच्चों के नाम समय पर तय नहीं करते थे। कुछ माता-पिता नाम रखने से पहले पंडितों से सलाह लेना या कुंडली देखना चाहते थे। प्रभारी नर्स और डेटा ऑपरेटरों ने, ‘ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता’ और ‘पोषण दिवस’ को एक आवश्यक मंच के रूप में उपयोग करते हुए, ‘आशा’ और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से, प्रसव से पहले जांच के समय माता-पिता को परामर्श देने और जागरूकता फैलाने का सुझाव दिया ।
सफलता के कारक
जिला प्रशासन का मानना है कि लोगों को असुविधा नहीं होनी चाहिए और सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने चाहिए।
जिला मजिस्ट्रेट, संदीप जी.आर. कहते हैं – “हम बिचौलियों को खत्म करना चाहते हैं। हम नहीं चाहते कि इस पर निर्भर दूसरे प्रावधान बंद हों। इस प्रक्रिया से लोगों का समय, पैसा और भागदौड़ बचती है।”
साथ ही, प्रसव विभाग, डिस्चार्ज सेक्शन और जन्म प्रमाण पत्र पंजीकरण सेक्शन के बीच संचार के फासले से बचने के लिए, नियमित बैठकें आयोजित की गई, ताकि सेवाएं तुरंत प्रदान की जा सकें।
अंत में, अलग अलग सेक्शन द्वारा जानकारियों को प्रतिदिन ट्रैक करने के लिए, एक मोबाइल प्लेटफॉर्म पर एक टीम बनाई गई। कार्यों में कठिनाइयों की पहचान करने और उनसे निपटने के लिए, जानकारी का साप्ताहिक विश्लेषण किया गया।
क्योंकि यह पहल इतनी सफल साबित हुई है, इसलिए इसका विस्तार किया जा रहा है और इसे विभिन्न सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लागू किया जा रहा है, जिनसे हर साल लगभग 61,000 लोग लाभान्वित हो रहे हैं।
स्मृति गुप्ता और सोहिनी ठाकुरता मध्य प्रदेश के छतरपुर में ‘एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट फेलो’ हैं।
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