हेल्प डेस्क और परामर्श से जेंडर-आधारित हिंसा कम होती है

मयूरभंज और क्योंझर , ओडिशा

ओडिशा के दूरदराज के गांवों में, जेंडर-आधारित हिंसा (GBV) को कम करने के लिए, "GBV योद्धाओं" ने हेल्प डेस्क की स्थापना की, परामर्श सेवाएं प्रदान की और पीड़ितों को चिकित्सा और कानूनी सहायता प्रदान करने वाले, ‘सखी’ केंद्रों में भेजा।

यह 2020 का साल था, जब दुनिया COVID-19 महामारी के प्रकोप से जूझ रही थी।

भारत के विभिन्न हिस्सों से मिली रिपोर्ट और जानकारी से पता चला कि महिलाएं, घरेलू हिंसा के रूप में एक छाया-महामारी का सामना कर रही हैं।

जानकारी कोई संख्या भर नहीं थी। ओडिशा के मयूरभंज जिले के एक सुदूर गांव में रहने वाली सुशीला* जैसी अनगिनत महिलाओं की यही कहानियां थीं ।

सुशीला का पति, जो दूसरे शहर में काम करता था, लॉकडाउन में घर लौट आया था। उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि जब वह दूर था, तब उसे शराब पीने की आदत पड़ गई थी। लेकिन जब वह पैसे मांगने और मारपीट करने लगा, तो उसे एहसास हुआ कि उसके साथ कोई समस्या है।

वह पहले से ही अपने बच्चों को खिलाने के लिए संघर्ष कर रही थी, तो समझ नहीं पाई कि क्या करे।

जेंडर-आधारित हिंसा (GBV) एक ऐसी चीज है, जिस पर विशेष रूप से ग्रामीण भारत में खुले तौर पर चर्चा नहीं की जाती। इससे सुशीला जैसी अनेक पीड़ितों को समझ में नहीं आता कि सहायता कैसे प्राप्त की जाए।

लेकिन ओडिशा में एक कार्यक्रम यह साबित कर रहा है कि चुपचाप पीड़ा सहने वाले लोगों के सहयोग के लिए, समुदाय-आधारित हस्तक्षेप का उपयोग कैसे किया जा सकता है।

घरेलू हिंसा – एक छाया महामारी

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) को मार्च से दिसंबर 2020 के बीच, महिलाओं के खिलाफ अपराधों की 20,836 शिकायतें मिली थीं। इनमें से 4,724 घरेलू हिंसा की थीं।

हालांकि अप्रैल में गिरावट आई थी, लेकिन जून के बाद, पहले कड़े लॉकडाउन के समय से GBV मामलों की संख्या में वृद्धि हुई।

राज्य पुलिस के अनुसार, ओडिशा में जनवरी और जून 2020 के बीच, यौन हिंसा के आरोपों के 1,212 मामले दर्ज किए गए। लेकिन यह संख्या आमतौर पर दुर्व्यवहार के असली मामलों के मुकाबले बहुत कम है, क्योंकि बहुत से लोग केस दर्ज करने से हिचकते हैं।

हिंसा की रिपोर्ट करने की हिचक

ओडिशा में हाशिये पर जीवन जीने वाले लोगों के कल्याण के लिए काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन, ‘सेंटर फॉर यूथ एंड सोशल डेवलपमेंट’ (CYSD) की कार्यक्रम प्रबंधक, उप्पाली मोहंती कहती हैं – “सुदूर गांवों में ऐसे बहुत से मामले, सांस्कृतिक रिवाजों के कारण दर्ज नहीं होते हैं।”

अक्सर महिलाओं को लगता है कि उनके लिए सहन करते हुए जीवन बिताने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

मोहंती ने कहा – “दोषी व्यक्ति द्वारा प्रतिक्रिया और ज्यादा हिंसा का डर, लांछन और किसी से मदद न मिलने का विश्वास, कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से महिलाएं हिंसा की रिपोर्ट नहीं करती हैं।”

घर में सुरक्षा का अभाव

दूरदराज के गाँवों में, GBV में बढ़ोत्तरी को समझने के लिए, CYSD ने कोरापुट, मयूरभंज और क्योंझर जिलों के 90 गाँवों में एक अध्ययन किया ।

GBV योद्धा, महिलाओं के साथ जेंडर-आधारित हिंसा पर चर्चा करते हुए (फोटो – CYSD के सौजन्य से)

लगभग 72% हिंसा झेल चुकी महिलाओं ने महसूस किया कि महामारी के दौरान हिंसा में वृद्धि हुई, जबकि लगभग 77% का कहना था कि वे लॉकडाउन के दौरान घर में सुरक्षित महसूस नहीं करती थी।

मोहंती ने कहा – “उनमें ज्यादातर रिपोर्ट करने में संकोच कर रही थी, क्योंकि आमतौर पर महिला को ही दोषी ठहराया जाता है।”

अध्ययन से पता चला कि हिंसा झेल चुकी 97.8% महिलाओं को समुदाय से कोई सहयोग नहीं मिला।

GBV मामलों में शारीरिक, भावनात्मक और यौन हिंसा के अलावा, उत्पीड़न और भेदभाव शामिल था।

घरेलू हिंसा को कम करने की दिशा में

अपने अध्ययन के आधार पर, CYSD ने अध्ययन किए गए उन्हीं 90 गाँवों में सामुदायिक भागीदारी से यौन हिंसा और GBV कम करने के लिए काम करने का फैसला किया।

CYSD ने 360 लोगों को अपने-अपने गाँवों में काम करने के लिए “GBV योद्धा” बनने के लिए चुना, जिनमें से आधे महिलाओं के साथ सीधे संवाद करने वाले अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता हैं।

संगठन ने योद्धाओं को घरेलू हिंसा झेल चुके लोगों के लिए कानूनी प्रावधानों और घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के बारे में प्रशिक्षित किया। उन्होंने गोपनीयता बनाए रखते हुए महिलाओं को परामर्श देना और मामलों को रिकॉर्ड करना सीखा। उन्होंने जरूरतमंद महिलाओं के लिए उपलब्ध फोन हेल्पलाइन नंबरों (112, 181 और 1091) को भी बढ़ावा देना शुरू किया।

महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जानें

अपना प्रशिक्षण पूरा करने पर, योद्धाओं ने महिलाओं से मुलाकात करके GBV और उनके लिए उपलब्ध समाधानों के बारे में बात की।

GBV योद्धा हिंसा झेल चुकी महिलाओं से उनके सहयोग के लिए बने विभिन्न कानूनों और सरकारी व्यवस्थाओं के बारे में चर्चा करते हुए (फोटो – CYSD के सौजन्य से)

सिआलीजादा गांव की GBV योद्धा, खिरोदिनी महंता कहती हैं – “शुरु में हम उन महिलाओं के समूह से मिले, जिन्होंने घर में सही हिंसा के बारे में बात की।”

फिर भी, कुछ बात करने से हिचक रही थी।

पितृसत्तात्मक मानसिकता, लड़के के लिए प्राथमिकता और विवाहेतर संबंधों पर बहस करना हिंसा के मुख्य कारण थे। लेकिन महामारी के दौरान, नौकरी छूटना, आय में कमी के कारण निराशा और शराब की लत जैसे कारणों से घरेलू हिंसा में वृद्धि हुई।

गांवों में यह एक स्वीकार्य रिवाज है कि पति को आपको पीटने का अधिकार है। हमने उन्हें अपनी गरिमा और सम्मान के लिए आवाज उठाने के लिए राजी किया।

महंता कहती हैं – ‘गरीबी, पलायन के कारण घर में लड़के का न होना, कम उम्र में शादी और सहमति के बिना शादी भी हिंसा का कारण बनती है। गाँवों में यह एक स्वीकार्य रिवाज है कि पति को आपको पीटने का अधिकार है। हमने उन्हें उनकी गरिमा और सम्मान के लिए आवाज उठाने के लिए राजी किया।

हेल्प डेस्क – तत्काल सहायता के लिए एक केंद्र

अगले कदम के रूप में, 90 गांवों में आंगनवाड़ियों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित हेल्प डेस्क स्थापित किए गए। इनमें GBV योद्धा संपर्क-व्यक्ति थे। दिन के किसी भी समय, समस्या होने पर हिंसा की शिकार सबसे पहले GBV योद्धा से संपर्क करती है। इसके बाद GBV योद्धा हेल्प डेस्क पर मामला दर्ज कराने में मदद करती हैं।

हेल्प डेस्क महिलाओं को दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने का विश्वास प्रदान करते हैं।

एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सिद्धेश्वरी टुडू कहती हैं – “पहले हिंसा झेल चुके लोगों को यह पता नहीं था कि मदद के लिए किससे संपर्क किया जाए। हेल्प डेस्क ने उस खाई को पाट दिया। इसने घरेलू हिंसा पर चुप्पी साधने की संस्कृति को तोड़ने में मदद की।”

इसने प्रभाती महंता जैसी GBV योद्धाओं की भी मदद की, जो स्वयं घरेलू हिंसा झेल चुकी हैं। उनके पति ने शराब छोड़ दी और अब वे एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। उसके अपने अनुभव ने उसे सहानुभूति रखने और बेहतर सलाह देने में मदद की।

(यह भी पढ़ें: महिलाओं द्वारा संचालित मंच ग्रामीण महिलाओं के लिए जेंडर-आधारित न्याय सुनिश्चित करता है)

सामुदायिक सहयोग से समाधान

CYSD में परियोजना समन्वयक, सिद्धेश्वरी साहू ने विलेज स्क्वायर को बताया – “जब बहुत सारे मामले सामने आए, तो हमने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं, पंचायत सदस्यों, सरपंच और GBV योद्धाओं की एक समिति बनाई।”

लॉकडाउन के दौरान अग्रिम पंक्ति के ज्यादातर कार्यकर्ता, GBV योद्धाओं के रूप में भी काम करते थे (फोटो – CYSD के सौजन्य से)

किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी को पीटने या शराब के लिए घर का सामान बेचने की पहली घटना पर समिति उसका विरोध करती थी। वे उसे चेतावनी देते थे कि उनकी पत्नी पुलिस शिकायत दर्ज कर सकती है या मामले को ‘सखी’ तक ले जा सकती है, जो हिंसा झेल चुके लोगों को चिकित्सा और कानूनी सहायता प्रदान करने का एकल-स्थल है।

जहां चेतावनियां काम नहीं आईं, वहां समिति ने 10,000 रुपये का जुर्माना लगा दिया, जो ग्रामीणों के लिए एक बड़ी रकम है। 30 गांवों में काम कर रही 30 समितियों के इन कदमों से, गांवों में GBV को न्यूनतम करने में मदद मिली।

यह जुर्माना ही था, जिससे सुशीला के पति ने शारीरिक शोषण बंद किया था। बाद में उन्होंने शराब पीना भी बंद कर दिया।

महंता ने घरेलू हिंसा का एक और उदाहरण दिया, जिसमें हिंसा का कारण एक व्यक्ति के विवाहेतर संबंध थे।

वह कहती हैं – “जब सभी संबंधित लोगों की काउंसलिंग से काम नहीं चला, तो हमने उसकी पत्नी को ‘सखी’ में शिकायत दर्ज कराने में मदद की।” जब उसे एक नोटिस मिल गया और पुलिस उसके दरवाजे पर आ गई, तभी वह आदमी सीधा हुआ। 

केवल महिलाएं ही GBV योद्धा नहीं हैं

जेंडर-सम्बन्धी रिवाजों को तोड़ने की जरूरत को समझते हुए, CYSD ने 90 पुरुषों को भी GBV योद्धाओं के रूप में शामिल किया।

पुरुष GBV योद्धा, सुभाष चंद्र कंडीला कहते हैं – “पुरुषों को सलाह देना भी महत्वपूर्ण है, ताकि उन्हें महिलाओं की जरूरतों को समझने और उनका सम्मान करने में मदद मिले।”

वे मामलों की पहचान करने, जागरूकता पैदा करने, परामर्श देने और समुदाय के अनेक लोगों के साथ जुड़कर, महिलाओं और लड़कियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने में मदद करते थे।

एक पुरुष GBV योद्धा, महेश टुडू ने कहा – “किसी मामले में, यह स्पष्ट था कि व्यक्ति ने पितृसत्तात्मक रीतियों के चलते अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार किया। लेकिन नियमित परामर्श के बाद, वह बदल गया और अब दंपति खुश हैं।”

यहां भी, परामर्श तब ज्यादा प्रभावी होता है, यदि पुरुष योद्धा कमल लोचन बारिक की तरह, पितृसत्तात्मक मानसिकता का शिकार रह चुका हो।

परिवर्तन लाना

क्योंकि ये मुद्दे जटिल पारिवारिक मामले होते हैं, कुछ को हल करने में महीनों लग सकते हैं। कुछ मामले लंबित और अनसुलझे रह जाते हैं।

तीन जिलों में कुल 273 मामलों की पहचान की गई, जिनमें से 72 मामलों की सूचना हेल्प डेस्क पर दी गई और 11 मामलों को ‘सखी’ को भेज दिया गया। इसमें से 92% घरेलू हिंसा, 5% बाल विवाह और 3% यौन हिंसा के मामले थे।

केवल 8 महीने में इतनी प्रभावशाली संख्या को देखते हुए, आयोजक ज्यादा बदलाव लाने के लिए कार्यक्रम को और व्यापक बनाने के बारे में सोच रहे हैं।

इस लेख के शीर्ष की मुख्य तस्वीर एक GBV योद्धा की है, जो हिंसा झेल चुके लोगों के लिए संपर्क और परामर्श का पहला बिंदु है (फोटो – CYSD के सौजन्य से)

राखी घोष भुवनेश्वर स्थित पत्रकार हैं।