लिंग परिवर्तन सर्जरी – दूर का सपना
सरकारी अस्पतालों में ट्रांसजेंडरों के लिए जरूरी हार्मोनल थेरेपी और परामर्श सुविधाओं की कमी और निजी अस्पतालों के बेहद खर्चीला होने के कारण, लिंग परिवर्तन सर्जरी ट्रांसजेंडरों की पहुंच से बाहर है।
सरकारी अस्पतालों में ट्रांसजेंडरों के लिए जरूरी हार्मोनल थेरेपी और परामर्श सुविधाओं की कमी और निजी अस्पतालों के बेहद खर्चीला होने के कारण, लिंग परिवर्तन सर्जरी ट्रांसजेंडरों की पहुंच से बाहर है।
एक कैफे में बैठकर कॉफ़ी पीते हुए, शीतल चौहान कहती हैं – “मैं दो साल से पैसे बचा रही हूँ। लेकिन जब मेरी सर्जरी हो सकती है, वो दिन बहुत दूर है।”
हरे रंग की सलवार- कमीज पहने और लाल लिपस्टिक लगाए, पटियाला जिले के सनौर गांव की 32 वर्षीय ट्रांसवुमन, अपनी लिंग-परिवर्तन सर्जरी (SRS) के बारे में बात कर रही थी।
उनका सवाल था – “हर सरकार दावा करती है कि उनकी स्वास्थ्य सेवाएं उत्कृष्ट हैं। लेकिन क्या यह समावेशी हैं? हम ट्रांसजेंडर उन्हें दिखाई क्यों नहीं देते?”
चौहान उन हजारों ट्रांसजेंडर लोगों में से एक हैं, जिन्हें अपनी लिंग-परिवर्तन सर्जरी होना मुश्किल लगता है, क्योंकि ऐसी सुविधाएं देना जरूरी होने के बावजूद, सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं और निजी अस्पताल बहुत ज्यादा पैसा वसूलते हैं।
जब उन्हें समझ में आया, चौहान 13 साल की थी।
घर में स्वीकार किया जाना इतनी बड़ी बात नहीं थी, लेकिन व्यापक समाज में यह एक चुनौती रही है।
मेरे दोस्त को सर्जरी के दो दिन बाद छुट्टी मिल गई और वह पंजाब लौट आया। तीसरे दिन उसे तेज दर्द हुआ। और चौथे दिन वह मर गई। – रानू सिंह
वह कहती हैं – “मुझे बचपन से ही अपनी माँ की तरह कपड़े पहनना पसंद था। एक बच्चे के रूप में, मैं अपने माता-पिता के जाने का इंतजार करती थी और फिर अपनी माँ की साड़ी पहनती, बिंदी लगाती और औरत जैसा महसूस करने के लिए मेक-ओवर करती थी।”
जब चौहान ने अपनी मां से कहा कि वह एक औरत की तरह जीना चाहती है, तो उनकी मां को सदमा लगा।
उन्होंने कहा – “लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने मुझे स्वीकार कर लिया। और ऐसा ही मेरे पूरे परिवार ने किया। लेकिन जब दूसरे लोग हमसे अलग तरह का व्यवहार करते हैं, तो दुख होता है।’
यही कारण है कि चौहान और उनके जैसे कई लोग लिंग-परिवर्तन सर्जरी करवाने के लिए बेताब हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह उनकी बदलाव प्रक्रिया को पूरा कर देगा।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 के अनुसार, सरकार को ट्रांसजेंडर लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए कदम उठाने होंगे, जिसमें लिंग परिवर्तन सर्जरी भी शामिल है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 2020 में केंद्र सरकार ने प्रत्येक राज्य में कम से कम एक अस्पताल को, हार्मोनल थेरेपी के साथ लिंग परिवर्तन सर्जरी के दिशानिर्देश जारी किए थे।
ट्रांसजेंडर अधिनियम की धारा-15 भी सरकार को SRS से पहले और बाद में हार्मोनल थेरेपी और परामर्श प्रदान करने के लिए बाध्य करती है।
लेकिन ऐसी कोई रिपोर्ट या ऑडिट नहीं है, जिससे पता चले कि क्या कोई राज्य सरकार इन आदेशों को लागू करती है।
पंजाब के सामाजिक सुरक्षा, महिला एवं बाल विकास निदेशक, अरविन्द पाल सिंह संधू ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “अभी तक किसी भी ट्रांस-कम्युनिटी ने ऐसी सुविधाओं के लिए हमसे संपर्क नहीं किया है। जब भी वे ऐसी मांग करेंगे, हम सरकार से इस मुद्दे पर गौर करने का आग्रह करेंगे।”
चौहान ने कहा – “मैं ऐसे कई लोगों को जानती हूँ, जिन्होंने निजी अस्पतालों में SRS करवाई। लेकिन मेरे विपरीत, उनके पास अच्छा बैंक बैलेंस है।”
इतने सालों और जीवन के हर कदम पर भेदभाव झेलने के बाद, अब मुझे सरकार से मदद की कोई उम्मीद नहीं रह गई है। – रानू सिंह
चौहान को अपने SRS के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा, जिसमें स्तन पुनर्निर्माण या सिलिकॉन प्रत्यारोपण शामिल हैं। लेकिन उनकी ट्रांसवुमन दोस्त रानू सिंह को सर्जरी से पारगमन की उम्मीद नहीं है।
सिंह कहती हैं – “मैं अब 38 साल की हूँ। जब मैं छोटी थी, तो उस शरीर में जीने के सपने देखती थी, जिसमें मेरा मन रहता है। लेकिन इतने सालों और जीवन के हर कदम पर भेदभाव झेलने के बाद, अब मुझे सरकार से मदद की कोई उम्मीद नहीं रह गई है। लेकिन मैं जैसी और जो हूँ, मुझे मंजूर है।”
निजी अस्पतालों में पुरुष से महिला में बदलने के लिए, SRS का खर्च 2 से 5 लाख रुपये के बीच हो सकता है, जबकि महिला से पुरुष पारगमन के लिए यह खर्च 4 से 8 लाख रुपये के बीच होगा।
हालाँकि महंगी सर्जरी बदलाव प्रक्रिया का आखिरी चरण है, लेकिन सर्जरी के बाद की दवा और थेरेपी के खर्च अलग हैं।
शारीरिक बदलाव से गुजरने से पहले, एक साल तक एक मनो-चिकित्सक द्वारा थेरेपी जरूरी है। इसमें एक महीने में दो से चार सत्र शामिल हैं, जिस पर 1,000 से 1,500 रुपये प्रति सत्र खर्च हो सकता है। इसका कुल खर्च 48,000 से 72,000 रुपये हो सकता है।
पटियाला की एक और ट्रांसवुमन, 34 वर्षीय सुक्खी SRS सर्जरी के लिए तीन दोस्तों से पैसे उधार लेने की सोच रही हैं।
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “दो साल पहले मैंने उन तीनों को लगभग 60-60 हजार रुपये उधार देने के लिए राजी किया था, जिसे मैं ब्याज के साथ किस्तों में लौटा देती। लेकिन लॉकडाउन ने इस सब पर विराम लगा दिया। मैंने चंडीगढ़ में अपनी सर्जरी करवाने की योजना बनाई थी। मैं इस साल के अंत में ऋण की उम्मीद कर रही हूँ।”
कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्य हैं, जहां सरकारी अस्पतालों में मुफ्त SRS का प्रावधान है। लेकिन कुछ खराब इलाज होने के कारण, ट्रांसजेंडर समुदाय में एक अविश्वास पैदा हो गया है।
और हालाँकि कुछ निजी क्लीनिक बहुत कम फीस लेते हैं, वहां सर्जरी विफल हो सकती हैं। उत्तर प्रदेश के एक निजी क्लिनिक में SRS कराने के बाद रानू सिंह के एक दोस्त की मौत हो गई थी।
वह कहती हैं – “वह सिर्फ 24 साल की थी। उसने नोएडा के एक क्लिनिक में सर्जरी कराने का फैसला किया, क्योंकि उसका खर्च सिर्फ 70,000 रुपये था।”
सिंह ने कहा – “सर्जरी के दो दिन बाद, मेरी दोस्त को छुट्टी दे दी गई और वह पंजाब लौट आई। तीसरे दिन उन्हें तेज दर्द हुआ और चौथे दिन मृत्यु हो गई।”
एक सेक्स वर्कर रह चुकी, चौहान के लिए, पैसा ही एकमात्र चुनौती नहीं है।
वह एचआईवी से संक्रमित भी हो गई।
चौहान अब एक गैर-लाभकारी संगठन के साथ काम करती हैं, जो ट्रांस-लोगों को सुरक्षित यौन संबंध और एचआईवी के बारे में परामर्श देती है।
वह कहती हैं – “यह नौकरी मिलने से पहले, मैं एक व्यावसायिक सेक्स वर्कर हुआ करती थी। मैं काफी समय तक एक शख्स के साथ रिलेशनशिप में भी रही। मुझे नहीं पता कि किससे, लेकिन मुझे एचआईवी हो गया।”
‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019’ के अनुसार, अलग सरकारी एचआईवी निगरानी केंद्र होने चाहिए। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि कितनी सुविधाएं मौजूद हैं।
लखनऊ स्थित स्त्री रोग विशेषज्ञ और एक गैर-लाभकारी संगठन, ‘वात्सल्य’ की निदेशक, नीलम सिंह कहती हैं – “SRS अपने आप में एक जटिल सर्जरी है। एक एचआईवी संक्रमित व्यक्ति की सर्जरी करने के लिए बहुत सी सावधानियां बरतनी पड़ती हैं।
ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति कानूनी वायदों और उन्हें लागू करने के बीच का भारी अंतर, उन्हें और हाशिए की ओर धकेलता है।
चौहान ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मेरे पास निजी अस्पतालों में जाने के लिए पैसे नहीं हैं। इसलिए दवा लेने मैं सरकारी अस्पताल जाती हूँ। हर बार वहां लोग मुझे ऐसे देखते हैं, जैसे मैं कोई दूसरे ग्रह की प्राणी हूँ।”
इस लेख के शीर्ष पर फोटो एक पंजाबी ट्रांसवुमन की है, जो अपनी लिंग परिवर्तन सर्जरी के लिए पैसे उधार लेने की उम्मीद करती है (छायाकार – जिज्ञासा मिश्रा)
जिज्ञासा मिश्रा एक पत्रकार हैं, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत की महिलाओं के मुद्दों और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बारे में लिखती हैं।
वाराणसी में रहने वाली एक ट्रांसवुमन अशफ़ा के बारे में भी पढ़ें, जो ट्रांसजेंडरों के लिए रोजगार के अवसरों की कमी और ज्यादातर अपमान और शोषण की ओर ले जाने वाले व्यावसायिक सेक्स कार्य तक सीमित होने के बावजूद, अपने दोस्तों के साथ भरपूर जीवन जीती है।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?
यह पूर्वोत्तर राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां कई ऐसे स्थान हैं, जिन्हें जरूर देखना चाहिए।