नुकसान के कारण मीठे आम के उत्पादकों का मन हुआ कड़वा
पेड़ों पर कम फूल आने और उत्पादन सामान्य का एक छोटा प्रतिशत होने की उम्मीद के साथ, ओडिशा भर के आम किसान जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को महसूस कर रहे हैं।
पेड़ों पर कम फूल आने और उत्पादन सामान्य का एक छोटा प्रतिशत होने की उम्मीद के साथ, ओडिशा भर के आम किसान जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को महसूस कर रहे हैं।
गर्मी स्वाद आमों का मौसम होता है। सभी आकार, माप और नाम के आमों की भारत भर के बाजारों में बाढ़ है।
लेकिन इन आमों को उगाने वाले ओडिशा के किसानों के साथ सब ठीक नहीं है।
नीलकंठ सीसा चार दशक से ज्यादा समय से आम की किसान हैं।कोरापुट जिले के बंगुडीपाड़ा गांव में अपने खेत में काम करते हुए, 58 वर्षीय सीसा ने कहा कि यह आम का मौसम अब तक का सबसे खराब मौसम था।
वह कहते हैं – “पेड़ों पर शायद ही कोई फल हो। इस मौसम में फूल बिलकुल नहीं आने के कारण, हमें भारी नुकसान होने जा रहा है।”
उनके गांव के 25 आम किसान और पड़ोसी जिलों के अन्य किसान भी यही कहानी दोहराते हैं। वे इस गर्मी में संभावित नुकसान की बात करते हैं, क्योंकि उनके पेड़ों पर मुश्किल से ही कोई फूल और फल लगा है।
और हालाँकि यह पहली बार नहीं है, जब उनकी आम की फसल ख़राब हुई है, लेकिन किसान फिर भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ऐसा क्यों है?
2019 में आए ‘फानी चक्रवात’ ने आम के हजारों पेड़ों को उखाड़ दिया था, तब से ओडिशा के आम किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
बहुत से किसानों ने कहा कि महामारी के साथ साथ इस साल के खराब उत्पादन ने उन्हें लगभग बर्बाद कर दिया है।
एक आम उत्पादक किसान, राशबिहारी बेहड़ा कहते हैं – “लॉकडाउन के कारण बाजार बंद थे। परिवहन सुविधाओं के बिना हम बंपर उत्पादन के बावजूद फलों को दूसरे राज्यों में नहीं भेज सकते थे।”
(यह भी पढ़ें: संस्थाओं को आपूर्ति से एफपीओ को लॉकडाउन के दौरान आम बेचने में मदद मिली)
उन्होंने कहा – “लेकिन इस साल हालात और भी खराब हैं, क्योंकि 99 फीसदी पेड़ों पर फल नहीं लगे हैं।”
किसानों ने यह भी कहा कि वे पिछले चार साल से नुकसान झेल रहे हैं और सरकार ने कोई मदद नहीं की है।
यह मानते हुए कि किसानों को घाटा हो रहा है, सरकारी अधिकारियों का कहना है कि आम किसानों के लिए फसल बीमा की कोई व्यवस्था नहीं है।
हम जो आम उगाते हैं, वे देश भर के हजारों आम प्रेमियों की जीभ का स्वाद मीठा करते हैं। लेकिन इससे हमें कड़वा स्वाद मिल रहा है।
दुरुगुडा गांव के एक किसान, अशोक घोडाई ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हम जो आम उगाते हैं, वह देश भर के हजारों आम प्रेमियों की जीभ का स्वाद मीठा करते हैं। लेकिन इससे हमें कड़वा स्वाद मिल रहा है।”
ओडिशा में मुख्य रूप से बंगनपल्ली, दशहरी, आम्रपाली, चौसा, लंगड़ा, मल्लिका और तोतापुरी किस्मों के आम का उत्पादन होता है। इनकी राज्य के भीतर बहुत मांग हैं और दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य क्षेत्रों में भी आपूर्ति की जाती हैं।
राज्य के बागवानी निदेशालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, ओडिशा देश के प्रमुख आम उत्पादकों में से एक है। वर्ष 2020-21 में ओडिशा का आम उत्पादन 8,47,705 टन था। राज्य में आम की खेती का कुल क्षेत्रफल 2,18,444 हेक्टेयर है और सभी 30 जिलों में 5 लाख से ज्यादा किसान आम की खेती करते हैं।
एक किसान सुनील बरीक के अनुसार, पौधा रोपने के बाद व्यावसायिक बिक्री के लिए फल मिलने में कम से कम पांच साल लगते हैं।
वह कहते हैं – “पेड़ पर फरवरी में फूल आना शुरू होता है और मार्च में फल लगते हैं, जो मई या जून तक पक जाते हैं।”
बेहड़ा के 500 पेड़ों से पिछले दो वर्षों में लगभग 70 टन का बंपर उत्पादन हुआ है। उन्हें आशंका है कि इस साल उत्पादन उसका एक छोटा हिस्सा ही होगा।
सीसा के 15 पेड़ों से 9 टन (9,000 किलो) की पैदावार हुई थी।
सीसा ने कहा – “लेकिन इस साल यह मुश्किल से 200 किलो होगी। मुझे नहीं पता कि कुदरत हमें इस तरह क्यों सजा दे रही है।”
सरकारी अधिकारी इस बात से सहमत हैं कि यह एक फलदायी साल नहीं रहा है।
कोरापुट जिले के बागवानी के सहायक निदेशक, रंजन कुमार पांडा कहते हैं – “इस साल का उत्पादन पिछले साल का आधा भी नहीं होगा। हम हालात पर नजर रख रहे हैं। हमें संदेह है कि इसके पीछे जलवायु परिवर्तन का कारण है।”
लेकिन उन्होंने यह कहते हुए किसानों को भी दोषी ठहराया कि उनकी देखभाल की कमी कम पैदावार का कारण थी।
पांडा ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “वे ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पेड़ों को पर्याप्त पानी नहीं देते हैं। वे कीटनाशकों और उर्वरकों का कम उपयोग करते हैं, जो उत्पादन को प्रभावित करते हैं।”
लेकिन किसानों का कहना था कि उन्होंने सिफारिश के अनुसार ही पानी दिया और खाद डाला।
हालाँकि वैज्ञानिक किसानों पर पूरी तरह से दोष मढ़ने से इनकार करते हैं और कम उत्पादन के लिए कठोर जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराते हैं।
राउरकेला के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक (बागवानी), संजय कुमार प्रधान ने इंगित किया – “राज्य के लगभग 80% किसानों के पास ड्रिप सिंचाई सुविधा नहीं है। वे खाद का पर्याप्त उपयोग नहीं करते। फिर भी पिछले कुछ वर्षों में इसका बंपर उत्पादन हुआ है।”
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में बदलाव से उत्पादन में भारी गिरावट आ रही है। बाजार में शायद ही कोई आम उपलब्ध हैं और कीमतें बहुत ज्यादा हैं। पिछले कुछ वर्षों में ज्यादा उत्पादन भी इस साल खराब उत्पादन का कारण हो सकता है, लेकिन अभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।”
जहां विशेषज्ञ अभी तक इसका कारण नहीं ढूंढ पाए हैं, किसान कम उपज से जूझ रहे हैं।
किसान त्रिनाथ बडनायक अफ़सोस करते हैं – “मैं आय के लिए अपने 50 आम के पेड़ों पर बहुत ज्यादा निर्भर हूँ। हम बाजरा और धान सिर्फ अपने उपभोग के लिए उगाते हैं। इस साल हम आम को बाजार तक ले जाने के बारे में सोच भी नहीं सकते, क्योंकि हमारी फसल से ढुलाई की लागत भी नहीं निकल पाएगी।”
इस लेख के शीर्ष पर फोटो में कटाई के लिए तैयार आमों को दर्शाया गया है (फोटो – मोहन नन्नापाणेनी, ‘पिक्साबे’ के सौजन्य से)
गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित एक पत्रकार हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?
यह पूर्वोत्तर राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां कई ऐसे स्थान हैं, जिन्हें जरूर देखना चाहिए।