असम में आई बाढ़ ने मानव जीवन को बुरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। विलेज स्क्वेयर ने ट्रांसफॉर्मिंग रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) के ज्योतिष्मय डेका और राजदीप सरकार से बातचीत की, जो बोडोलैंड ट्राइबल रीजन (BTR) में बाढ़ राहत कार्य से जुड़े हैं।
विलेज स्क्वेयर: असम के बीटीआर क्षेत्र में बाढ़ से क्या असर पड़ा है?
ज्योतिष्मय और राजदीप: बोडो ट्राइबल रीजन (बीटीआर) पांच जिलों से बना है और भूटान एवं अरुणाचल प्रदेश की तलहटी में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। विभिन्न भोगौलिक क्षेत्रों में अंतर के कारण, बाढ़ का स्वरूप और प्रभाव अलग होता है। अधिक ढाल वाले उत्तरी भाग में अक्सर अचानक बाढ़ आती है और पानी का वेग बहुत ज्यादा होता है।
ऐतिहासिक रूप से असम में बाढ़ जुलाई में शुरू होती है और अक्टूबर तक चलती है। लेकिन इस साल यह 14 मई के आसपास ही शुरू हो गई। मई में लोग और संसाधन अच्छी तरह से नहीं जुटाए गए थे, लेकिन जून में शहरी इलाकों में भी पूरी तरह से बाढ़ आ गई थी।
लेकिन यदि आप और दक्षिण की ओर ब्रह्मपुत्र नदी के नजदीक जाएं, वहां बाढ़ एक बड़ी समस्या बन जाती है, क्योंकि सारा पानी वहाँ इकठ्ठा हो जाता है। कभी-कभी पानी 15-20 दिनों तक रहता है और सब कुछ डूब जाता है।
यह बाढ़ पिछले 30-40 वर्षों की सबसे भीषण बाढ़ है। असम के 35 में से 34 जिले इस साल किसी न किसी तरह से बाढ़ प्रभावित हैं।
विलेज स्क्वेयर: इसने मानव जीवन को कैसे प्रभावित किया है? लोगों के सामने अभी मुख्य मुद्दे क्या हैं?
ज्योतिष्मय और राजदीप: बीटीआर में हाशिए पर जीने वाले कई समुदाय, भूमिहीन परिवार और चाय बागान मजदूर शामिल हैं।
फसल का भारी नुकसान हुआ है। लोग भोजन के लिए बोरो धान पर निर्भर हैं। बोरो धान का पुआल पशुओं का मुख्य चारा है। बाढ़ में यह पूरी तरह से तबाह हो गया है और लोगों के साथ-साथ पशुओं का भोजन भी प्रभावित हुआ है। हर तरफ पानी है तो चारा भी नहीं है।
बाढ़ के कारण इस साल कृषि गतिविधि लगभग शून्य है। पशुओं पर भी प्रभाव स्पष्ट है; वे बहुत बीमार पड़ रहे हैं। लोगों की आजीविका पर भारी प्रभाव पड़ा है, क्योंकि यहां लगभग 80% लोग कृषि पर निर्भर हैं।
इसका असर स्कूलों पर भी पड़ा है। बहुत से स्कूलों को राहत शिविरों में बदल दिया गया, हालाँकि कई स्कूलों की इमारतों में ही पानी भर गया। छात्रों की पढ़ाई के कई हफ्ते खराब हो गए।
छात्रों का कहना है कि वे राहत शिविरों में शरण लिए हैं, जहां का माहौल पढ़ाई के अनुकूल नहीं है। जो घर पर थे, उनकी किताबें बाढ़ में बह गईं।
विलेज स्क्वेयर: लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर क्या प्रभाव हुआ?
ज्योतिष्मय और राजदीप: बीटीआर में सुरक्षित पेयजल एक प्रमुख मुद्दा है। यह एक भूगर्भ से जुड़ी समस्या है। पीने के पानी में लोहा और दूसरी ठोस धातुएँ पाई गई हैं। यहां पेयजल का मुख्य स्रोत हैंडपंप हैं। कई क्षेत्रों में हैंडपंप की जगह बाढ़ आ गई है, इसलिए वे इस समय इस्तेमाल नहीं हो सकते।
राहत शिविरों में पैकेज्ड पेयजल उपलब्ध है, लेकिन वहां भी लोगों को पाचन संबंधी समस्याएं, दस्त और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो रही हैं।
विलेज स्क्वेयर: क्या सभी जरूरतमंदों के लिए राहत शिविर सुलभ हैं?
ज्योतिष्मय और राजदीप: राहत शिविर आमतौर पर गांवों से दूर होते हैं। वे अक्सर सरकारी भवनों के पास होते हैं। गांवों के लोग हमेशा अपने घरों के करीब रहना चाहते हैं, ताकि वे अपने सामान और पशुओं की रक्षा कर सकें। उनमें से कुछ राहत शिविरों में जाने के इच्छुक नहीं होते और यह आधिकारिक आंकड़ों में दर्ज नहीं होते।
इसलिए समस्या जितनी भयावह हमें दिख रही है, उससे ज्यादा हो सकती है।
विलेज स्क्वेयर: क्या आने वाले दिनों में स्थिति में सुधार की संभावना है?
ज्योतिष्मय और राजदीप: असलमें आने वाले महीनों में हालात और भी खराब हो सकते हैं। आने वाले हफ्तों में यदि हल्की से बारिश भी हो जाती है, तो बचाव के प्रयास और मुश्किल हो जाएंगे और ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा।
लोगों को आशंका है कि अभी और ज्यादा बाढ़ होगी, क्योंकि अभी तो जुलाई का पहला सप्ताह ही है। अभी पूरा मानसून आना बाकी है। उत्तर-पूर्व में अक्टूबर तक भारी मॉनसून की सम्भावना होती है।
विलेज स्क्वेयर: अब तक सरकार की क्या प्रतिक्रिया रही है?
ज्योतिष्मय और राजदीप: सरकार ने दोहरी रणनीति अपनाई है। पहली, खाद्य सामग्री, बुनियादी स्वच्छता, स्वास्थ्य सेवाओं, बर्तन और आश्रय जैसी जरूरी वस्तुओं की उपलब्धता के मुद्दे को हल करना है।
दूसरी, सरकार एक दीर्घकालिक बाढ़ प्रबंधन योजना बनाने की कोशिश कर रही है, जिसमें राजमार्गों, सड़कों, पुलों जैसे बुनियादी ढांचे को हुए नुकसान की मरम्मत शामिल है, क्योंकि बुनियादी ढांचे के बिना राहत सामग्री प्रभावित क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पाएगी, और समय के साथ वे अलग थलग पड़ जाएंगे। अगली बाढ़ आने से पहले सरकार इससे निपट रही है।
विलेज स्क्वेयर: इस बाढ़ के दीर्घकालिक प्रभाव क्या होंगे?
ज्योतिष्मय और राजदीप: यह एक परिवार से दूसरे परिवार में भिन्न होता है। 80% से ज्यादा लोग कृषि पर निर्भर हैं और बीटीआर में 90% से ज्यादा प्रभावित क्षेत्र ग्रामीण है।
लोगों के भोजन और बीज के भंडार बर्बाद हो गए हैं। वे न तो अपने बीजों को सुखा पा रहे हैं और न ही भंडारण कर पा रहे हैं। उनके भंडारण, अन्न भंडार और घरों को नुकसान पहुंचा है, और बहुत से लोगों की जीवन भर की जमा पूंजी चली गई है।
बाढ़ से हुई गाद के कारण, कम से कम दो साल (अर्थात् 4 मौसम) तक खेती संभव नहीं होगी। नदी के तल में इतनी गाद जमा हो गई है कि उनकी जल वहन क्षमता कम हो गई है, जिससे उनमें बाढ़ की सम्भावना और ज्यादा हो गई है।
बहुत से गांवों में नदी ने अपना रुख बदल लिया है। एक गांव में 16 घर नदी में बह गए। ये परिवार पूरी तरह से भूमिहीन और बेघर हो गए हैं। हम अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास एक गाँव में पहुंचे, जहाँ 15 मिनट से भी कम समय में लगभग 100 मीटर जमीन नष्ट हो गई और कई घर नदी में बह गए।
परिवार अभी भी राहत शिविरों में रह रहे हैं, उन्हें नहीं पता कि उनका भविष्य क्या होगा।
अभी तक हमने सिर्फ लोगों के बारे में बात की है; लेकिन वन्यजीव और पशु भी गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं।
ज्योतिष्मय असम में ‘बीटीआर डेवलपमेंट फेलोशिप प्रोग्राम’ के कार्यों का संचालन करते हैं। राजदीप प्रोग्राम के अंतर्गत ‘प्रोग्राम मैनेजमेंट यूनिट’ (पीएमयू) में प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम), वन, जलवायु परिवर्तन और जलवायु तंत्र बहाली के विशेषज्ञ हैं।
सभी फोटो बीटीआर डेवलपमेंट फेलोशिप प्रोग्राम’ के सदस्यों द्वारा ली गई हैं।
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