पिंजरे में मछली-पालन से उसी बांध से मिली ज्यादा मछलियाँ
एक ही बांध में मछली पकड़ने के लिए बढ़ती संख्या में मछुआरों की होड़ के साथ, उनकी आजीविका दांव पर थी। बांध के अंदर पिंजरों में मछलियां पालने से मछुआरों को बेहतर कमाई में मदद मिलती है।
एक ही बांध में मछली पकड़ने के लिए बढ़ती संख्या में मछुआरों की होड़ के साथ, उनकी आजीविका दांव पर थी। बांध के अंदर पिंजरों में मछलियां पालने से मछुआरों को बेहतर कमाई में मदद मिलती है।
अभीक सोडी सतीगुड़ा बांध में मछली पकड़ते हैं, जो ओडिशा के मलकानगिरी जिले के उनके गांव के पास है।
वह एक दशक से रोहू (Labeo rohita) और कतला (Labeo catla) पकड़ते रहे हैं।
लेकिन हर बीतते साल के साथ पकड़ी गई मछलियों की मात्रा कम होती जा रही है।
वह कहते हैं – “मैं एक दशक पहले भी बांध से 15-20 किलो मछली पकड़ता था। लेकिन अब तो 4 किलो मछली भी मिलना मुश्किल हो गया है। क्योंकि अब मछुआरों की संख्या भी ज्यादा है।”
लेकिन वह उसी बांध के एक हिस्से में चल रहे पिंजरे के मछली पालन में आशा देखते हैं।
पिंजरे में मछली पालन, जिसे पिंजरा-पालन भी कहते हैं, जलाशयों और बांधों जैसे जल श्रोतों में मछली पालन है, जहाँ पानी का बहाव तेज नहीं होता है।
मलकानगिरी के जिला मत्स्य अधिकारी, नरसिंह मुंड कहते हैं – “मछलियाँ जाल से घिरे पिंजरों में पाली जाती हैं। एक लंगर के सहारे पानी पर तैरते फ्रेम से यह खांचा बना है।”
पिंजरों के ऊपर एक छेद से मछलियों को चारा खिलाया और संभाला जाता है। प्रत्येक पिंजरा लगभग 2,000 मछली-बच्चों को रख सकता है।
मुंड ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मछलियों को नदी के पानी में पर्याप्त मात्रा में मिलती है।”
सतीगुड़ा बांध में 2019-20 में पिंजरा मछली की शुरुआत हुई थी।
सतीगुड़ा प्राथमिक मत्स्य सहकारी समिति के सचिव, सुशांत कुमार बिस्वास कहते हैं – “हमने सितंबर 2019 में 10 पिंजरों और मछली के 20,000 बच्चों के साथ शुरुआत की। लगभग 4,000 बच्चे मर गए और बाकी एक साल के समय में प्रत्येक 1.2 किलो वजन तक बढ़े।”
बांध के आसपास के 15 गांवों के 218 सदस्य, आजीविका के लिए सामूहिक खेती के माध्यम से पिंजरा मछली पालन पर निर्भर हैं।
मछली के बीज और चारे की कीमत लगभग 7 लाख रुपये थी। सरकार ने पहली बार पिंजरा पालन करने वाले किसानों को यह प्रदान किया।
वर्तमान में 710 हेक्टेयर में फैले बांध में, दो अलग-अलग आकार के 66 पिंजरे हैं। पानी की गहराई सभी पिंजरों के लिए समान 4 मीटर होती है।
पिंजरों में मछुआरे पंगेसियस किस्म की मछलियां पालते हैं।
दिसंबर 2020 में उत्पादन छह टन था।
बिस्वास ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हम पूरी उपज स्थानीय बाजारों में बेचने और लागत वसूलने में कामयाब रहे। लेकिन हमें कोई लाभ नहीं हुआ।”
मछुआरों का कहना था कि पिंजरों में मछलियां सुरक्षित रहती हैं और बीमारियों के फैलने की संभावना भी कम रहती है।
मई 2021 में, बांध में मछली के लगभग 76,000 बच्चे छोड़े गए थे। राज्य सरकार ने निवेश हुए पूरे 20 लाख रुपये प्रदान किए।
अगले सात महीनों में मछली, बाजार में बेचने लायक 600-700 ग्राम के आकार तक बढ़ गई।
बिस्वास कहते हैं – “हमने जनवरी में मछलियां निकालनी शुरू की और अभी तक छह टन मछली निकाली जा चुकी हैं, जिससे हमें 5 लाख रुपये मिले।”
सोसायटी को इस साल 25 लाख रुपए कमाई की उम्मीद है।
बिस्वास ने यह भी कहा – “हम यह फैसला सदस्यों पर छोड़ देंगे कि वे अपनी आय का हिस्सा लेना चाहते हैं या व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं।”
मछुआरे बांध में पिंजरों में मछली पालन को मछली पकड़ने का एक आदर्श विकल्प मानते हैं।
लगभग दो दशक पहले तक, 30 से भी कम मछुआरे बांध पर निर्भर थे। लेकिन अब इनकी संख्या 200 से ज्यादा है। इसलिए जितनी मछलियां प्रत्येक मछुआरा पकड़ सकता था, वह कम हो गई थी।
एक मछली पालक, रबीन सरदार कहते हैं – “लेकिन पिंजरा मछली पालन हमारे लिए आशा की एक नई किरण बनकर आया है। हम बांध से मछलियां निकाल रहे हैं, जबकि पिंजरा पालन हमें अतिरिक्त आय प्रदान करता है।”
मत्स्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पंगेसियस मछली की मांग स्थानीय स्तर पर है। यह 110-120 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रहा है।
वर्ष 2021-22 में 9.91 मीट्रिक टन के उत्पादन के साथ ओडिशा भारत का चौथा सबसे बड़ा मछली उत्पादक राज्य है ।
ओडिशा में वर्ष 2020-21 में प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत 16.34 किलोग्राम है, जो राष्ट्रीय खपत 9 किलोग्राम से ज्यादा है।
राज्य में पिंजरा मछली पालन की बहुत बड़ी संभावना है, क्योंकि इसमें 6.84 लाख हेक्टेयर में फैले हुए तालाबों, झीलों आदि के ताजे जल श्रोत हैं।
इस क्षमता के दोहन के लिए, राज्य सरकार संबलपुर जिले के हीराकुंड बांध में भी पिंजरा मछली पालन शुरू कर रही है।
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो सतीगुड़ा बांध में पिंजरा मछली पालन करने वाले मछुआरों को दिखाती है (सतिगुड़ा प्राइमरी फिशरी कोऑपरेटिव सोसाइटी के सौजन्य से)
गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित एक पत्रकार हैं।
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