अविकसित और दूरदराज स्थित ‘जी-प्लॉट’ द्वीप की एक सप्ताहांत यात्रा ने एक कॉर्पोरेट कार्यकारी को अपनी नौकरी छोड़ने और ‘SOUL’ शुरू करने के लिए प्रेरित किया। जैसा कि SOUL के एक वालंटियर ने रिपोर्ट किया, यह वहां रहने वाले आदिवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए समर्पित है।
वर्ष 2015 में, कोलकाता के एक सफल कॉर्पोरेट कार्यकारी, शुभांकर बनर्जी पांच घंटे की यात्रा करके, जिसका सुंदरबन डेल्टा का डेढ़ घंटे का आखिरी भाग नांव द्वारा था, जी-प्लॉट द्वीप में अवकाश मनाने गए।
बंगाल की खाड़ी से घिरा, घने जंगलों वाला द्वीप बाघों, मगरमच्छों और जहरीले सांपों से भरा हुआ है।
कुछ ही हफ़्तों में बनर्जी को पता चला कि द्वीप पर जिस ग्रामवासी से उनकी दोस्ती हुई थी, उसका देहांत हो गया है।
घातक जानवर और मामूली विकास
इस दोस्त ने सर्दियों की एक रात में अपना कंबल देकर बनर्जी का ठहरना आरामदायक बना दिया था। उसे एक बाघ ने मार डाला।
बनर्जी के लिए यह एक जीवन बदलने वाला क्षण था, क्योंकि वह अपने दोस्त के बच्चे की दुर्दशा के बारे में सोचना बंद नहीं कर पा रहे थे, जो अचानक अनाथ हो गया था।
द्वीप पर यह एक नियमित बात है। कई बच्चों ने अपने दोनों माता-पिता को खोया है।
अनियमित बिजली, खारी कृषि भूमि, कमजोर मोबाइल नेटवर्क, अच्छे शिक्षकों के बिना स्कूल और स्वास्थ्य सेवा की कमी भी जी-प्लॉट द्वीप की समस्या हों, जिसका एक अजीब इतिहास है। 150 साल पहले ब्रिटिश जंगलों को साफ करने और क्षेत्र का व्यवसायीकरण करने के लिए, बंगाल के अन्य हिस्सों से आदिवासियों को यहां लाए थे। लेकिन सामान संबंधी चुनौतियाँ बहुत ज्यादा साबित हुईं और उन्होंने आदिवासियों को वहाँ अकेला छोड़ दिया।
सेवा के लिए कॉरपोरेट जीवन छोड़ा
अगले लगभग दो साल तक बनर्जी ने हर सप्ताहांत में द्वीप का दौरा करना शुरू किया।
उन्होंने हफ्ते में दो दिन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। इन यात्राओं में वह अक्सर दवाएँ और खिलौने साथ जाते थे। कभी वह दोस्तों और परिचितों के साथ जाते थे, तो कभी वह अकेले जाते थे।
दो साल के आत्म-मंथन के बाद, बनर्जी ने अपनी बड़े वेतन वाली नौकरी छोड़ दी और अपने वृद्ध माता पिता से इन आदिवासी ग्रामीणों को अपना जीवन समर्पित करने के लिए अनुमति ली।
वर्ष 2017 में उन्होंने जी-प्लॉट के निवासियों की सेवा के लिए ‘सोर्स ऑफ़ अनकंडीशनल लव’ (SOUL) की शुरुआत की। SOUL का उद्देश्य अनाथ और बेसहारा बच्चों को श्री रामकृष्णा और स्वामी विवेकानंद द्वारा सुझाए गए उच्च मूल्यों से परिचित कराते हुए, भोजन, आवास, शिक्षा प्रदान करके उनकी देखभाल करना है।
इस प्रकार SOUL की यात्रा विवेकानंद के इस प्रसिद्ध आदर्श वाक्य के साथ शुरू हुई – “यदि गरीब शिक्षा तक न पहुँच सके, तो शिक्षा उसके हल तक, कारखाने में, हर जगह पहुँचनी चाहिए।”
जी-प्लॉट में समस्याओं की भरमार
इन द्वीपों तक पहुंचना और इनके दुर्गम इलाके में काम करना कोई आसान काम नहीं है। यह कुछ ऐसा है कि दशकों से सरकार भी करने में विफल रही है।
गांव के लगभग सभी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। परिवार उसी तालाब के पानी का उपयोग पीने, कपड़े धोने और नहाने के लिए करते हैं।
शिशुओं को तम्बाकू के पत्तों से नशा करवाना आम बात थी, ताकि घने जंगलों में अपने माता-पिता के साथ जाते समय वे रोएँ या भूख से शोर न मचाएं। ज्यादातर महिलाएं शराबी थी और सुबह ही नशा कर लेती थी। बनर्जी और उनके मित्रों के सामने कार्य चुनौतीपूर्ण थे।
जी-प्लॉट द्वीप के विकास की सतत यात्रा
SOUL ने समुदाय का विश्वास जीतने के लिए, एक बहुआयामी रणनीति का इस्तेमाल कर के अपनी पैठ बनाई।
पंचायत की मदद से इसने एक आवासीय आश्रम की स्थापना की, जिसके रखरखाव में मदद के लिए कुछ ग्रामीणों को नियुक्त किया गया, ताकि समझ आए कि SOUL का वहां टिकने का इरादा है।
धीरे-धीरे, SOUL ने तालाब के गंदे पानी के बारे में जागरूकता पैदा की और इसकी बजाय उन्हें ट्यूबवेल के पानी का उपयोग करने के फायदों के बारे में बताया। क्योंकि ज्यादातर ग्रामीण सुंदरबन के खतरनाक हिस्सों से अवैध रूप से केकड़े का शिकार या शहद इकट्ठा करते थे, इसलिए अक्सर वैकल्पिक आजीविकाओं पर विचार-मंथन सत्र भी आयोजित किए जाते थे।
लॉकडाउन, द्वीप पर दो बड़े चक्रवात आने, राजनीतिक हस्तक्षेप और मानव-बाघ संघर्ष के कारण, गाँव के विकास की राह आसान नहीं रही है।
फिर भी SOUL के आश्रम में करीब 70 लड़कियां हैं। उन्हें मुफ्त खाना, रहना, शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और ललित कला एवं संगीत की शिक्षा मिलती है। लड़ाई-झगड़े और गाली-गलौज के दिन गए। आश्रम के बच्चे टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलते हैं, लंबी वैदिक प्रार्थना करते हैं और टैगोर के गीत गाते हैं। एक बच्चे ने दसवीं कक्षा की परीक्षा भी दी है, जो जी-प्लॉट की सबर जनजातियों के इतिहास में एक लड़की के लिए एक दुर्लभ उपलब्धि है।
गांव के मोर्चे पर स्थानीय सरकार के सहयोग से दो गहरे ट्यूबवेल लगाए गए हैं। दस्त और त्वचा रोगों में काफी कमी आई है।
SOUL ने ज्यादातर माताओं को भी राजी किया है कि वे बच्चों को तंबाकू-पत्तों का नशा न दें। बच्चे पहले से ज्यादा स्वस्थ हैं, जैसा कि उनके बीएमआई से पता चलता है। कुपोषित बच्चों की तादाद 20 फीसदी से भी कम है।
निरंतर बारिश का सामना करने के लिए, गांवों की सड़कों को ऊंचा और मजबूत बनाया गया है। चक्रवातों के बाद, SOUL ने कई घरों की टूटी हुई दीवारों और छतों को बनाने में मदद की। इसने COVID-19 लॉकडाउन में और चक्रवातों के बाद राहत के रूप में 18,000 से ज्यादा भोजन/सूखा राशन वितरित किया। अब SOUL से प्रेरित होकर आदिवासी महिलाओं ने शराब का सेवन बहुत कम कर दिया है।
SOUL के प्रयास जी-प्लॉट द्वीप से आगे भी पहुँचे हैं, जिसमें इसने लॉकडाउन में भोजन और सूखा राशन वितरित किया और टेलीमेडिसिन परामर्श और दवाओं की मुफ्त व्यवस्था की।
SOUL ने सामाजिक योजनाओं की पहचान करके और समग्र विकास ढाँचा शुरू करने के लिए, सरकारी तंत्र और स्थानीय प्रतिभाओं का उपयोग करके बेहतरीन प्रदर्शन किया है।
कोई गैर सरकारी संगठन सरकार की जगह नहीं ले सकता है, लेकिन यह एक सहयोगी हो सकता है।
‘सात्विक’ साधना(शुद्ध सार) बिना किसी स्वार्थ या व्यक्तिगत गौरव के, सही व्यक्ति की सही तरीके से और सही समय पर सेवा करके, SOUL ने सात्त्विक (शुद्ध सार) के रास्ते से समुदाय को फलने-फूलने में मदद की है।
इस लेख के शीर्ष की मुख्य फोटो में लेखक को जी-प्लॉट द्वीप के बच्चों के साथ दिखाया गया है (फोटो – सौनक भट्टाचार्य के सौजन्य से)
SOUL सहित कुछ संस्थाओं को स्वैच्छिक सेवाएं प्रदान करने वाले सौनक भट्टाचार्य, ग्रामीण विकास के प्रति उत्साही एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं।
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