जब मानव-जानवर संघर्ष बढ़ रहा है, पश्चिम बंगाल के एक गाँव के लोग पानी की मॉनिटर लिज़र्ड (एक तरह की छिपकली) के साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं। अन्य कारणों के अलावा, उनके इस विश्वास की बदौलत कि इन छिपकलियों वाला तालाब भूतिया है, ने इनके संरक्षण में योगदान दिया है।
जब मानव-जानवर संघर्ष बढ़ रहा है, पश्चिम बंगाल के एक गाँव के लोग पानी की मॉनिटर लिज़र्ड (एक तरह की छिपकली) के साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं। अन्य कारणों के अलावा, उनके इस विश्वास की बदौलत कि इन छिपकलियों वाला तालाब भूतिया है, ने इनके संरक्षण में योगदान दिया है।
खुलेआम घूम रही 6 फीट लंबी एशियाई जलीय मॉनिटर छिपकली, शहर के लोगों में दहशत पैदा करने के लिए काफी है। उनके दिख जाने भर से वे वापिस अपने घरों में जाने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
लेकिन पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के चक माणिक गांव के लोगों के लिए ऐसा नहीं हैं।
ग्रामीणों के लिए ये जीव उनके जीवन का एक नियमित हिस्सा हैं, हालांकि मॉनिटर छिपकली उनके घरों में घुस जाती है और अक्सर घरेलू सामान को बर्बाद कर देती है।
छिपकली का दीर्घकालिक निवास
हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि मॉनिटर छिपकली चक माणिक का हिस्सा कब बनी।
बुजुर्गों का भी कहना है कि वे बचपन से ही छिपकलियों को देखते आ रहे हैं, लेकिन मानते हैं कि कुछ मान्यताओं के कारण इन्हें बनाए रखने में मदद मिली है।
एक बुजुर्ग ग्रामीण, पंचू ढोल कहते हैं – “हमारे गाँव में एक तालाब है, जिसे हम ‘जोम पुकुर’(भूत तालाब) कहते हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि वहां भूत रहते हैं। हम दिन में भी वहां जाने से डरते हैं। तालाब जलकुंभी से भरा है और किसी प्रकार का व्यवधान नहीं होता है।”
तालाब के पास एक टूटा फूटा बेकार घर है, जहाँ अमीर जमींदार ब्रिटिश काल में अपनी छुट्टियां बिताते थे।
ढोल कहते हैं – “हम मानते हैं कि उनके भूत उस घर में रहते हैं, क्योंकि रात में घुँघरुओं कीअजीब आवाजें सुनाई देती हैं।”
भ्रम का मॉनिटर छिपकली को फायदा
वैज्ञानिकों के अनुसार, तालाब और घर के भूतिया होने के इस भ्रम ने ग्रामीणों में छिपकली को रहने और निर्बाध रूप से प्रजनन करने में मदद की है।
चक माणिक में दो साल अध्ययन के बाद, छिपकली पर एक शोध पत्र प्रकाशित करने वाली, आईयूसीएन की ‘मॉनिटर छिपकली विशेषज्ञ समूह’ की सदस्य, श्रेया भट्टाचार्य कहती हैं – “गाँव में तालाब बड़ी संख्या में हैं। लगभग हर परिवार के घर के बाहर तालाब होते हैं, जो पश्चिम बंगाल में दुर्लभ होता जा रहा है, क्योंकि निर्माण के लिए तालाबों को भरा जा रहा है।”
ग्रामीणों में गोर्गेल दीदी (छिपकली दीदी) के नाम से लोकप्रिय, भट्टाचार्य का कहना है कि तालाब से मदद मिलती है, क्योंकि छिपकली किनारों पर बिल बनाती है और वहीं रहती है।
भट्टाचार्य के अनुसार, वे साल में दो बार अंडे देती हैं और मादा के आकार के आधार पर एक बार में 5-24 अंडे देती हैं।
भट्टाचार्य ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “ग्रामीणों का भूतों में विश्वास छिपकलियों को आज़ादी से जीने में मदद करता रहा है। क्योंकि वे शर्मीले प्राणी हैं और जलकुंभी में छिपना पसंद करते हैं।”
क्या एशियाई जल मॉनिटर छिपकली है?
एशियाई जल मॉनिटर (Varanus salvator) छिपकली की एक किस्म है। असल में यह ‘कोमोडो ड्रैगन’ के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी छिपकली है।
जल मॉनिटर छिपकली मांसाहारी होती हैं और ज्यादातर भारत सहित दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में पाई जाती हैं।
पश्चिम बंगाल में वे सुंदरबन, दक्षिण और उत्तर 24 परगना, हावड़ा और हुगली जिलों में पाई जाती हैं।
IUCN रेड लिस्ट के अनुसार यह चिंता का विषय नहीं हैं। लेकिन यह भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के अंतर्गत संरक्षित है।
भट्टाचार्य ने कहा – “लेकिन यह जानना मुश्किल है कि गांव या पश्चिम बंगाल में उनकी आबादी कितनी है, क्योंकि अभी तक कोई गणना नहीं की गई है।”
गाँव के पर्यावरण में मॉनिटर छिपकली की भूमिका
राज्य की राजधानी कोलकाता से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, चक माणिक गांव की सूनी गलियों में इधर उधर दौड़ती छिपकलियों को देखकर, बाहरी व्यक्ति आसानी से भ्रमित हो सकता है।
लेकिन ग्रामवासियों के अनुसार, छिपकली उन्हें गांव में पाए जाने वाले जहरीले सांपों से भी बचाती है।
एक स्थानीय किराना दुकान के मालिक, पीजूष चटर्जी कहते हैं – “हम धन्य हैं कि हमारे गाँव में छिपकलियां हैं। क्योंकि वे ‘रसेल वाइपर’ जैसे खतरनाक सांपों को खाते हैं, जिनके एक बार काटने से मौत हो सकती है। वे चूहों को भी खाते हैं, जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।”
सांपों और चूहों को खत्म करने के अलावा, क्या आप विश्वास करेंगे कि छिपकली गांव को साफ रखने में भी मदद करती है?
संध्या ढोल कहती हैं – “मैं एक पोल्ट्री फार्म चलाती हूँ, जिसमें बहुत सारा कचरा पैदा होता है। मैं उन्हें खुले में नहीं फेंकती, क्योंकि इससे दुर्गंध और बीमारियां फैल सकती हैं। हम सारा कचरा छिपकलियों के सामने फेंक देते हैं, जो कचरे को फटाफट खा जाती हैं। इससे हमें गांव को साफ रखने में मदद मिलती है।”
क्या मॉनिटर छिपकली खतरनाक हैं?
हालांकि यह एक भ्रम है कि पानी की मॉनिटर छिपकली खतरनाक होती है, चक माणिक ग्रामवासियों की एक अलग कहानी है।
ग्रामवासियों के अनुसार, सिवाय शरारतपूर्ण तरीके से इन को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने की स्थिति को छोड़कर, मॉनिटर छिपकली द्वारा लोगों पर हमला करने के मामले बेहद कम रहे हैं।
एक स्थानीय युवक, सुरोजीत मैती ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “आम तौर पर, इंसानों को डरा कर दूर करने के लिए फुफकार की आवाज करती है।”
उन्होंने आगे कहा – “उकसाने पर अपने बचाव के लिए वे अपनी पूंछ को चाबुक की तरह मार सकती हैं। लेकिन पूंछ का हमला बहुत गंभीर हो सकता है और घाव ठीक होने में कई दिन लग सकते हैं। कुछ महीने पहले छिपकली के हमले से एक कुत्ते की मौत हो गई थी।”
परेशानी का कारण
लेकिन जल मॉनिटर छिपकली की मौजूदगी से सभी ग्रामवासी खुश नहीं हैं।
कुछ गृहिणियां इन्हें परेशानी मानती हैं, क्योंकि वे अक्सर उनके खाने का सामान नष्ट कर देती हैं और उनकी आजीविका को प्रभावित करती हैं।
मेनका ढोल कहती हैं – “हम बेहद गरीबी में जीते हैं और अंडे और मुर्गा बेचने के लिए मुर्गी पालन आदि करना चाहते हैं। लेकिन ऐसा करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि जब मुर्गियां भोजन के लिए बाहर निकलते हैं, तो छिपकलियां उन पर हमला करती हैं।”
वह कहती हैं – “वे हमारे घरों में भी घुस जाते हैं और हमारा सामान नष्ट कर देती हैं। वे पेड़ों तक पर चढ़ जाती हैं और पक्षियों के घोंसलों को नष्ट कर देती हैं और उनके अंडे खा जाती हैं। हम उन्हें मार नहीं सकते, क्योंकि इस पर सरकार सजा देगी।’
लेकिन पीजूष चटर्जी स्पष्ट करते हैं कि कुछ लोग उन्हें पसंद नहीं करते, लेकिन ग्रामवासियों का इन के प्रति लगाव पिछले कई वर्षों से उनके जीवित रहने का एक कारण है।
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में चक माणिक गांव की दो जल मॉनिटर छिपकलियां दिखाई गई हैं (छायाकार – श्रेया भट्टाचार्य)
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?