गृहिणी बनी सॉफ्ट टॉय उद्यमी
एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के बाद, राजस्थान की एक गृहिणी नर्म खिलौने (सॉफ्ट टॉयज) बनाने वाली शिल्प उद्यमी बन जाती है और अपने गाँव की अन्य महिलाओं को रोजगार देती है।
एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के बाद, राजस्थान की एक गृहिणी नर्म खिलौने (सॉफ्ट टॉयज) बनाने वाली शिल्प उद्यमी बन जाती है और अपने गाँव की अन्य महिलाओं को रोजगार देती है।
राजस्थान के सवाई माधोपुर का बच्चा सोनू और उसका दोस्त अपने भरवां जानवर-खिलौनों के साथ खेल रहे हैं।
लम्बे हाथ-पैर वाला एक बंदर, एक गठीला छोटा ऊँट और एक मगरमच्छ – रंगीन कपड़े से बने उनके मुलायम खिलौने अटूट और सस्ते हैं और धोए जा सकते हैं।
वर्मा कहती हैं – “मैं चाहती हूँ कि मेरी दुकान की हर महिला रोज कम से कम 100 रुपये कमाए।”
चंद्रकला वर्मा और ग्रामीण महिलाओं के एक समूह द्वारा बनाए गए ये खिलौने, राजस्थान पर्यटन द्वारा स्थापित एक शिल्प परिसर, ‘शिल्पग्राम’ में हस्तकला स्मृति चिन्ह के रूप में उपलब्ध हैं। सवाई माधोपुर शहर में स्थित, शिल्पग्राम ‘रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान’ का एक विस्तार है, जो बाघ की अपनी समृद्ध आबादी के लिए प्रसिद्ध है, जो बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है।
लेकिन इन महिलाओं और अन्य ग्रामीणों के लिए रोजी-रोटी कमाना हमेशा इतना आसान नहीं था।
जब 1980 और 1992 के बीच, रणथंभौर और उसके आसपास के जंगल एक राष्ट्रीय उद्यान बने, तो आसपास के गांवों के बहुत से लोगों की इन आरक्षित क्षेत्रों से पहुँच ख़त्म हो गई।
ग्रामीण अपने उपयोग के लिए और बेचने के लिए, लकड़ी, फल और छोटे शिकारी पक्षियों की तलाश में जाते थे।
हालांकि पर्यटन में उछाल आया, लेकिन ग्रामीणों के लिए शायद ही कोई रोजगार था। आबादी बढ़ने और आजीविका का कोई स्रोत लगभग नहीं होने के कारण, प्रशासन को डर था कि आरक्षित क्षेत्रों में मानव-जानवर संपर्क और अवैध गतिविधियों की संभावना बढ़ जाएगी।
वर्ष 2009 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने बैंकों द्वारा प्रबंधित केंद्र और राज्य सरकारों के एक संयुक्त कार्यक्रम, ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संसथान (RSETI) की शुरुआत की। RSETI 18-45 वर्ष की आयु के ग्रामीणों को मुफ्त प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करते हैं, जिसमें उन्हें वैकल्पिक आजीविका के लिए स्व-रोजगार की ओर उन्मुख किया जाता है।
इस RSETI और एक राष्ट्रीय आजीविका सहायता संगठन, एक्सेस डेवलपमेंट सर्विसेज के माध्यम से ही सवाई माधोपुर के आलनपुर गांव की चन्द्रकला वर्मा और उसके गांव की 35 अन्य महिलाओं ने 2013 में सॉफ्ट टॉयज और खाद्य पदार्थ बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
प्रशिक्षण के बाद वर्मा ने शिल्पग्राम की एक दुकान में काम करना शुरू कर दिया। लेकिन उन्हें शुरू में इससे सिर्फ 100 रुपये महीना ही मिलते थे।
अपनी कम आय के बारे में परवाह किए बिना, वह जब भी समय मिलता, सॉफ्ट टॉयज बनाना जारी रखती थी। जल्दी ही वह कुशलतापूर्वक कछुए, घोड़े, बंदर, ऊँट जैसे छोटे जानवर और कुछ सजावटी सामान की सिलाई कर रही थी।
वर्मा कहती हैं – “जहां मेरे साथ अलग-अलग चीजों में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली ज्यादातर महिलाओं ने उनमें से किसी पर भी काम जारी नहीं रखा, मैं कुछ करना और कमाना चाहती थी। इसलिए मैंने खिलौने बनाना जारी रखा।”
उन्होंने अपने कुछ खिलौने शिल्पग्राम की कुछ शिल्प की दुकानों में रख कर प्रदर्शित करने शुरू कर दिए। जब उनके बनाए खिलौने तेजी से बिकने लगे, तो उन्हें एक दुकान खोलने का प्रोत्साहन मिला। उन्होंने एक स्वयं सहायता समूह के माध्यम से 10,000 रुपये का ऋण लिया और एक शिल्प उद्यमी बन गईं।
क्योंकि उन्होंने विभिन्न सांस्कृतिक उत्सवों में भाग लिया था, इसलिए उनके सॉफ्ट टॉयज से कुछ बी2बी (व्यवसाय से व्यवसाय) ग्राहक आकर्षित हुए। इस समय वर्मा कम से कम तीन ग्राहकों को मांग के अनुसार बने खिलौनों की थोक आपूर्ति करती हैं, जिनमें सूरत की एक एनजीओ और दो ऑनलाइन दुकानें शामिल हैं।
एक उद्यमी के रूप में उनकी सफलता ने अन्य महिलाओं को अपने घरों से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया। वर्मा उन्हें न केवल प्रशिक्षण दिया, बल्कि उन्हें रोजगार भी दिया।
वह गर्व से मुस्कुराती हैं – “शिल्पग्राम में मेरी एक दुकान है और उस दुकान में अब मेरे साथ लगभग 20 महिलाएँ काम करती हैं।”
खिलौने बनाने के लिए वर्मा और उनकी महिलाओं का समूह, सवाई माधोपुर से 10-15 किलो खेप में बचे हुए कपड़े खरीदते हैं। इनमें से प्रत्येक महिला अपने घर का काम-काज करने के बाद, रोज कम से कम पांच खिलौने बनाती है।
वर्मा कहती हैं – “मैं चाहती हूँ कि मेरी दुकान की प्रत्येक महिला रोज कम से कम 100 रुपये कमाए।”
खिलौनों की बिक्री से होने वाली आय ने इस लक्ष्य को पूरा करना संभव बना दिया है। उनकी दुकान में काम करने वाली महिलाएं 5,000 रुपये महीना तक कमा पाती हैं।
रणथंभौर के कुछ स्वयं सहायता समूहों की एक सक्रिय सदस्य, वर्मा ने घरों में जाकर और उनके परिवारों को प्रशिक्षण और इसके फायदों के बारे में समझाकर अथक मेहनत की। वह प्रशिक्षण लेने और अपने कौशल के अनुसार जीवन यापन करने के लिए, अन्य गाँवों की और महिलाओं को शामिल करने में सफल रही।
वह कहती हैं – “मानसिकता में अब काफी बदलाव आया है। महिलाएं काम करने के लिए आगे आ रही हैं और उनके परिवार उन्हें बाहर जाने से नहीं रोक रहे हैं।”
अब महिलाएं कई तरह की आजीविकाओं से जुड़ी हैं। जहां कुछ महिलाओं ने अचार और नमकीन बनाना शुरू किया है, वहीं 10 महिलाओं ने ऑटो रिक्शा चलाना शुरू किया है।
जब 2018 में चंद्रकला की दुकान और खिलौना बनाने का काम शुरुआती चरण में ही था, सवाई माधोपुर की RSETI ने चंद्रकला वर्मा का नाम राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए मनोनीत किया।
प्रतिष्ठित राष्ट्रीय शिल्पकार पुरस्कार जीतने पर वह शर्माते हुए कहती हैं – “मैं जो सॉफ्ट टॉय बना रही थी, उसके लिए मुझे एक पुरस्कार के लिए चुना गया था। मुझे पांच लाख रुपये से सम्मानित किया गया और मैंने पहली बार हवाई यात्रा की।”
चंद्रकला गर्व से फूली नहीं समाती, जब वह कहती हैं कि उन्होंने अपनी बचत से एक दोपहिया वाहन खरीदा है।
वह कहती हैं – “मेरे बेटे ने मुझे इसे चलाना सिखाया। पहले मैं अपने गांव से शिल्पग्राम आने के लिए 4 किमी पैदल चलती थी। लेकिन अब मैं अपने दोपहिया वाहन पर आ सकती हूँ।”
चंद्रकला वर्मा बदलते समय को लेकर बहुत आशान्वित हैं।
अपने हाथों से रंग-बिरंगे कपड़ों में जान डालना जारी रखते हुए वह कहती हैं – “ऐसा कुछ भी नहीं है, जो महिलाएं नहीं कर सकतीं। उन्हें बस खुद पर विश्वास और आत्मनिर्भर बनने की इच्छा रखने की जरूरत है। और, यदि पति का सहयोग और समझ मिल जाए, तो वह आत्मविश्वास के साथ और बहुत कुछ हासिल कर सकती है।”
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में चंद्रकला वर्मा द्वारा बनाया गया सॉफ्ट टॉय दिखाया गया है (छायाकार – शोमा अभ्यंकर) उनकी यात्रा के बारे में उन्हीं के शब्दों में यहां पढ़ें ।
शोमा अभ्यंकर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो संस्कृति, विरासत, भोजन और पर्यावरण पर लिखती हैं।
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