आंगनवाड़ी में बच्चों की देखभाल करने वाली कार्यकर्ता गाँव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जो ग्रामीण बच्चों के स्वास्थ्य और विकास को सुनिश्चित करती है। एक युवा विकास पेशेवर ने देखा कि कई महीनों तक कर्मचारी के उपस्थित नहीं होने के परिणाम क्या होते हैं।
बांसखेड़ी गांव के एक प्राइमरी स्कूल के परिसर में, एक कमरे की आंगनवाड़ी (ग्रामीण बाल देखभाल केंद्र) में न शौचालय है, न रसोई, न फर्श, यहां तक कि पंखा भी नहीं, बिजली कनेक्शन तो दूर की बात है। यह गुना जिले के बमोरी ब्लॉक के सबसे अंदरूनी हिस्सों में से एक है।
“ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस” (VHSND) के उपलक्ष्य में महिला और बाल विकास विभाग के एक टीम ने आंगनवाड़ी का दौरा किया। वे यह जांचना चाहते थे कि यह कैसे काम कर रहा है, क्योंकि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (AWW) कई महीनों से काम पर नहीं आई थी और अभी तक उसे बदला भी नहीं गया है।
क्योंकि ये आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बच्चों के स्वास्थ्य और विकास को सुनिश्चित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, तो लंबे समय तक उसके ग्राम डेकेयर सेंटर से अनुपस्थित रहने पर क्या होता है?
जब आंगनवाड़ी में सामान और सुविधाओं का अभाव हो
जून की 43 डिग्री गर्मी में आंगनवाड़ी के बरामदे में अपनी नियमित VHSND कार्य कर रही एएनएम (सहायक दाई नर्स) हेमलता जोशी ने महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम का अभिवादन किया। आंगनवाड़ी के अंदर, ‘आशा’ (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) भबूती बाई रजत, बच्चों के लिए दोपहर का भोजन तैयार करने में आंगनवाड़ी सहायिका द्रोपती बाई की सहायता कर रही थी।
क्योंकि वहां कोई एलपीजी सिलिंडर या स्टोव नहीं था, इसलिए द्रोपती बाई को आंगनवाड़ी के अंदर चूल्हे पर खाना बनाना पड़ता था, जिससे कमरे में बहुत धुआं हो जाता था। विभाग की पर्यवेक्षक सुनीता काकोरिया ने उन्हें कमरे के अंदर खाना न पकाने की सलाह दी, क्योंकि धुआं बच्चों के लिए हानिकारक है। यह सिर्फ एक और निर्देश था, जो द्रोपती बाई को पिछले कुछ महीनों में अधिकारियों से मिला था।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की अनुपस्थिति में, उन्हें उम्मीद थी कि विभाग जल्द ही एक नई आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति करेगा और उसकी दिक्कतें कम होंगी।
अनुपस्थित कर्मचारी बदलने में कठिनाई
क्योंकि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता गायब हो गई थी, तो दैनिक कार्य द्रौपती बाई पर आ गए, जो ज्यादातर आंगनवाड़ी सहायिकाओं की तरह निरक्षर हैं, क्योंकि उन्हें सिर्फ आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की सहायता करनी होती है।
पढ़ना-लिखना नहीं जानने के कारण, उन्हें मातृत्व कार्यक्रम (PMMVY), बालिकाओं के लिए लाडली लक्ष्मी योजना जैसी योजनाओं के फॉर्म भरने में मदद के लिए, अन्य कार्यकर्ताओं के पास आसपास की कई आंगनबाड़ियों में जाना पड़ता है। उन्हें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के ट्रैकिंग मोबाइल एप्लीकेशन, अनमोल में डेटा एंट्री के लिए भी मदद की ज़रूरत पड़ती है।
वह दाई की मदद से बच्चों की उपस्थिति और टीकाकरण का रिकॉर्ड भी रखती है।
लेकिन कभी-कभी चीज़ें ख़राब हो जाती हैं।
महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम को जानकारी मिली कि बांसखेड़ी आंगनवाड़ी को गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए पूर्व-पका भोजन, जरूरी पूरक पोषण पैक या घर ले जा सकने वाला राशन नहीं मिला था।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अब काम पर नहीं आ रही थी, लेकिन अधिकारियों को इन कमियों के बारे में सूचित नहीं किया गया था।
द्रोपती बाई ने कई बार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को काम पर लौटने के लिए कहा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने विभाग से नई आंगनवाड़ी कार्यकर्ता नियुक्त करने के लिए भी कहा, लेकिन कोई नहीं आया।
अनुपस्थित कर्मचारी को कार्यमुक्त करना
विभाग की टीम ने ग्रामवासियों से पूछा कि ओझा नाम की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने काम पर आना क्यों बंद कर दिया और क्या उसका वापस आना संभव है। लेकिन उन्हें पता चला था कि वह घरेलू हिंसा की शिकार थी और उसका नशेड़ी पति रोजाना उसके साथ दुर्व्यवहार करता था। वह एक सुरक्षित स्थान पर थी, लेकिन अपना फिर से काम पर नहीं आना चाहती थी।
उसने महीनों से विभाग अधिकारियों के किसी भी संपर्क का जवाब नहीं दिया था। सुपरवाइजर सुनीता काकोरिया का कहना था कि ओझा एक ईमानदार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थी। लेकिन कई नोटिसों का जवाब न मिलने के बाद, विभाग को उसे आधिकारिक तौर पर हटाने की प्रक्रिया शुरू करनी पड़ी।
जब अधिकारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को हटाने की औपचारिक कार्यवाही के लिए पंचनामा तैयार कर रहे थे, मैंने कुछ लाभार्थियों को वीएचएसएनडी सेवाओं के लिए आंगनवाड़ी आते हुए देखा।
जब युवा माताओं के मार्गदर्शन के लिए कोई नहीं होता
सुमिता बाई अपनी 3 माह की पोती दिव्यांशी को टीकाकरण के लिए आंगनवाड़ी लेकर आई थी। विभाग के अधिकारी एक नजर में ही बता सकते थे कि दिव्यांशी कुपोषित है। उस का वजन सिर्फ 3.75 किलोग्राम निकला, जो कि उसकी उम्र के लिए सही सीमा 4.5-5.5 किलोग्राम से काफी कम था और काफी असामान्य भी, क्योंकि वह पहला बच्चा थी।
सुपरवाइजर सुनीता काकोरिया ने शीघ्र काउंसलिंग के लिए दिव्यांशी की माँ मनीषा को बुलाया। माँ से बात करके काकोरिया समझ गई कि बच्चे के खराब विकास का कारण स्तनपान की कमी थी। उन्होंने मनीषा को बच्चे को कम से कम 20 मिनट तक स्तनपान कराने का महत्व बताया। मनीषा की मदद में, उसे सलाह देने वाला कोई नहीं था, क्योंकि महिलाओं को आमतौर पर ऐसी सलाह देने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कई महीनों से उपलब्ध नहीं थी।
राजकुमारी और उनकी बेटी प्रियांशी मनीषा के पास बैठी बातचीत सुन रही थी। प्रियांशी की शक्ल उसकी उम्र को झुठला रही थी। 9 महीने की बच्ची 4 महीने जैसी दिखती थी।
प्रियांशी का वजन 5 किलो था। राजकुमारी ने हमें बताया कि जब प्रियांशी पैदा हुई, उसका वजन सिर्फ 0.5 किलोग्राम था और उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराना पड़ा था। राजकुमारी को पौष्टिक आहार जरूरतों, भोजन के तरीकों और निर्जलीकरण से निपटने के लिए तरल पदार्थ लेने के बारे में परामर्श भी प्राप्त हुआ।
विकास कार्यक्रमों की आखिरी कड़ी
इन भयानक हालात ने हमारा ध्यान इस ओर खिंचा कि ऐसे अंदरूनी इलाकों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, जहां जिला कर्मचारी शायद ही कभी जाते हैं।
शुक्र है, विभाग के अधिकारियों ने अब पंचनामा पूरा कर लिया था और बांसखेड़ी में जल्दी ही एक नई आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति की जाएगी। .
दिव्यांशी और प्रियांशी, दोनों को तत्काल पोषण एवं पुनर्वास केंद्र, बमोरी रेफर कर दिया गया। उन्हें और उनकी माताओं को बमोरी केंद्र लाने के लिए एक वाहन भेजा जाएगा, जहां उन्हें 14 दिनों के लिए चिकित्सा परामर्श और स्वस्थ आहार मिलेगा।
लेकिन इस गाँव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की लंबे समय तक अनुपस्थिति दर्शाती है कि वे कितनी महत्वपूर्ण हैं।
एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भारत के सामाजिक विकास कार्यक्रमों के लागू होने की अंतिम कड़ी के रूप में कार्य करती है, जो जमीनी स्तर पर मूल्यवान बदलाव लाती है। वह ग्रामीण समुदाय का पहला संपर्क है और सामुदायिक पहुँच और ग्रामीण क्षेत्रों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण है।
लेकिन सीमित संसाधनों और ढांचागत चुनौतियों के साथ कम मानव शक्ति, महत्वपूर्ण सामुदायिक कार्यक्रमों के परिणामों को काफी हद तक खराब कर सकती है।
लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में बांसखेड़ी की आंगनवाड़ी में सहायक दाई हेमलता जोशी को दिखाया गया है, जो अपनी सहकर्मी के काम पर लौटने की कामना करती है (छायाकार – प्रत्यूष शर्मा)
प्रत्यूष शर्मा ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन के एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट फेलो हैं, जो मध्य प्रदेश के गुना जिले में कार्यरत हैं।
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