हालांकि बरेला आदिवासियों द्वारा "दुल्हन मूल्य" यानि उल्टा दहेज देकर महिलाओं से शादी करने की प्रथा महिलाओं को सशक्त बनाने वाली प्रतीत होती है, लेकिन एक विकास कार्यकर्ता को लगता है कि यह असल में दुल्हनों को "खरीदना" है।
जब दिल्ली, मुंबई या अन्य शहरों में लोग “हाशिये पर जीने वाले लोगों को मुख्यधारा में लाने की जरूरत” के बारे में बात करते हैं, तो मुझे हमेशा हैरानी होती है कि वे किसके बारे में बात कर रहे हैं।
असल में, मेरे जैसे बड़े शहरों में रहने वाले लोगों को पीछे मुड़कर देखने की जरूरत है कि वे हाशिये पर जी रहे हैं, क्योंकि भारत का ज्यादातर हिस्सा अब भी गांवों में रहता है। शहरी भारतीय सोचते हैं कि हम भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन असल में हम देश के दो-तिहाई हिस्से की जमीनी हकीकत नहीं जानते हैं।
भारत के ग्रामीण हिस्सों में रहते हुए, मुझे रीति-रिवाजों, परम्पराओं और अंतर्दृष्टि जैसी कई वास्तविकताओं को देखने का मौका मिला, जो मुझे लगता है कि और ज्यादा लोगों के साथ साझा करने की जरूरत है।
उनमें से एक है “उल्टा दहेज” प्रथा, जो मध्य प्रदेश की बरेला जनजातियों में प्रचलित है।
उल्टा दहेज क्या है?
हम सभी “दहेज” शब्द से परिचित हैं, लेकिन क्या आपने कभी “स्त्रीधन” या “दुल्हन मूल्य” के बारे में सुना है?
हाँ, दुल्हन के लिए धन देने की प्रथा है, जिसे अक्सर “उल्टा दहेज” कहा जाता है।
स्त्रीधन विवाह के समय दूल्हे द्वारा दुल्हन के नाम पर संपत्ति पंजीकृत करने की एक व्यवस्था है। यह संपत्ति उसके स्वामित्व और नियंत्रण में रहती है, लेकिन असल में यह दूल्हे या उसके परिवार द्वारा दुल्हन के माता-पिता को किया जाने वाला भुगतान है।
यह उल्टा दहेज प्रथा पूरे देश के कुछ आदिवासी समुदायों में प्रचलित है।
क्या उल्टा दहेज लड़की के लिए अच्छा है?
ग्रामीण भारत में आमतौर पर दुल्हन का परिवार दूल्हे को, अक्सर ऋण लेकर और कर्ज में डूबकर बड़ी रकम या दहेज देता है। इसका नतीजा यह होता है कि कई परिवारों को लड़कियां भारी आर्थिक बोझ लगती हैं, जिसके कारण पूरे देश में दशकों से शिशु हत्या हो रही है।
ऐसे में, जब लड़की की शादी के लिए उसके परिवार को पैसे मिलने की विपरीत प्रथा प्रचलित होती है, तो यह महिलाओं के लिए सशक्तीकरण जैसा लगता है, है ना?
लेकिन, ऐसा नहीं है।
महिलाओं के लिए यह उतना ही हानिकारक है।
आदिवासी पट्टी में पैसे को लेकिन फैसला गाँव करते हैं, जिसमें उनकी चर्चा होती है कि ‘यदि शादी के लिए हम इस गाँव की लड़की चुनते हैं, तो हमें रु. 50,000 देने होंगे, लेकिन दूसरे गाँव की लड़की के लिए, हमें केवल 20,000 रुपये का भुगतान करना होगा।”
लड़की के चयन के मानदंड में भी इनकी भूमिका होती है।
माता-पिता आमतौर पर अपने बेटे के लिए ज्यादा उम्र की लड़की चुनते हैं। उदाहरण के लिए, एक 18 साल के लड़के की शादी 22 साल की लड़की से हो जाती है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे ऐसी लड़की चाहते हैं, जो शारीरिक मेहनत में योगदान दे सके।
दुल्हन के रूप में मजदूर
माता-पिता एक ऐसी लड़की की तलाश करते हैं, जो परिवार के अन्य सदस्यों की अनुपस्थिति में घर के साथ-साथ खेत का काम भी ज्यादा करे और जो शादी के तुरंत बाद बच्चा पैदा करे।
बहुत सी महिलाओं को दुल्हन के रूप में चुनने और उनके परिवारों को “दुल्हन की कीमत” दिए जाने का आधार यह होता है कि वे खेतों में कितनी कड़ी मेहनत करती हैं।
ऐसी लड़की को भी प्राथमिकता दी जाती है, जो दूर से पानी ला सकती हो।
बारेला समुदाय में लड़कियां खेतों में पुरुषों से ज्यादा काम करती हैं। कटाई के बाद खेत तैयार करना, बीज बोना, खरपतवार निकालना और फसल काटना – ये सभी काम महिलाओं द्वारा किया जाता है।
यही कारण है कि वे परिवार के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति बन जाती हैं और यही कारण है कि उनकी लड़कियों की शादी में पैसे मांगने की प्रथा शुरू हुई।
दिवंगत मानव-विज्ञानी, जैक गुडी के अनुसार, कम आबादी वाले क्षेत्रों में, जहां खेत बदलने वाली खेती (एक फसल के बाद खेत खाली छोड़कर, दूसरे खेत में फसल उगाना) होती है, ज्यादातर काम महिलाओं द्वारा किया जाता है। ये वे समाज हैं, जो “दुल्हन मूल्य” देते हैं।
खेती की किस्म के बावजूद, बारेला लोग उल्टा दहेज प्रथा का पालन करते हैं।
लेकिन समुदाय में इसे इस तरह देखा जाता है कि दूल्हे के परिवार ने लड़की को “खरीद” लिया है और उसे वही करना चाहिए, जो उसे करने के लिए कहा जाए।
इस प्रकार पितृसत्ता काम कर रही है, जो महिलाओं को असुरक्षित बना रही है।
शिक्षा और स्वास्थ्य पर प्रभाव
समस्याओं में से एक यह है कि लड़कियों द्वारा अपने शरीर को ठीक से जानने से पहले ही, कम उम्र में शादी कर दी जाती है। जल्दी गर्भ धारण करने के कारण, यौन प्रजनन स्वास्थ्य, एनीमिया और कुपोषण संबंधी समस्याएं होती हैं।
मैंने महिलाओं से ऐसे मुद्दों पर बात करने की कोशिश की है, जिससे उन्हें कम उम्र में शादी की समस्याओं, ज्यादा पैसे के लिए कम उम्र के पुरुष को चुनने और उनकी शिक्षा के महत्व के बारे में बात करने के लिए एक सुरक्षित स्थान मिल सके।
लेकिन मुझे एहसास है कि, शायद, जब शहरी भारतीय असमानता और पितृसत्ता की समस्याओं का समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं, तो इससे मदद मिलेगी, यदि हम ग्रामीण जीवन को बनाने वाले रीति-रिवाजों और बारीकियों को और अधिक जानें।
लेख का मुख्य फोटो – वैभव नगारे, ‘अनस्प्लैश’ के सौजन्य से।
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