सामाजिक, आर्थिक चुनौतियों का सामना करते नेगामाम के बुनकर

कोयंबटूर, तमिलनाडु

तमिलनाडु की प्रसिद्ध नेगामाम सूती साड़ियों के पारम्परिक हथकरघा बुनकरों की संख्या घट रही है, क्योंकि वे बदलते सामाजिक मानदंडों और सस्ते उत्पादों की आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं।

नेगामाम दक्षिणी तमिलनाडु में कोयंबटूर से लगभग 40 कि.मी. दूर, एक छोटी सी जगह है। बुनकर 200 से ज्यादा वर्षों से शानदार हथकरघा सूती साड़ियाँ बुन रहे हैं, जिन्हें आम तौर पर ‘नेगामाम कॉटन’ के नाम से जाना जाता है।

एक बुनकर, रोजारमानी मोहनराज के दिन की शुरुआत खाना पकाने, पानी भरने और अपनी किशोरी बेटी को स्कूल भेजने जैसे सुबह के काम निपटाने के बाद सुबह 11 बजे होती है। शाम 6 बजे तक, रोजारमानी अपने करघे पर व्यस्त रहती हैं। साथ ही बीच-बीच में, वह रसोई के और घर के दूसरे काम भी करती हैं।

पारम्परिक पीले और भूरे रंग के मिश्रण से एक साड़ी बुनने में तल्लीन रहते हुए, वह कहती हैं – “एक साड़ी बुनने में तीन दिन लगते हैं। मास्टर बुनकर डिज़ाइन और सामग्री देता है। बुनाई के बाद, मैं इसे उसे सौंप देती हूँ, और वह उन्हें नेगामाम और कोयंबटूर की दुकानों पर ले जाता है। एक साड़ी बुनने के लिए हमें 800-1,000 रुपये मिलते हैं। साड़ी बनाने का मेहनताना डिज़ाइन के अनुसार अलग-अलग होता है।”

नेगामाम के ज्यादातर लोग अपनी आजीविका के लिए बुनाई करते रहे हैं। हालाँकि पिछले 5-10 वर्षों में, बहुत से बुनकर अपने पारम्परिक व्यवसाय से दूर जा रहे हैं। और ये संख्या हर दिन बढ़ती ही जा रही है। एक गाँव, जहाँ परिवार के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक, हर सदस्य पारम्परिक पारिवारिक व्यवसाय में शामिल है, यह बदलाव सामाजिक और आर्थिक प्रभावों के साथ आया है।

रोजारमानी के पति मोहन राज एक बुनकर के रूप में खास हथकरघा साड़ियाँ बनाने वाली कंपनी ‘एथिकस’ से जुड़ गए। आय बरकरार रखने में असमर्थ होने के कारण, उन्होंने अपने करघे पर बुनाई करना बंद कर दिया। मोहन राज कहते हैं – “परिवार अलग-अलग भूमिकाएँ निभाते हुए एक हथकरघा साड़ी बनाता है, और यह अकेले एक व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता है।”

विवाह संबंधी समस्याएँ

रोजारमानी और मोहन राज की बेटी सौंदर्या बचपन से ही अपने माता-पिता की मदद कर रही है। कंप्यूटर साइंस और अकाउंटेंसी की पढ़ाई कर रही यह 18-वर्षीय लड़की, पारिवारिक परम्परा को जारी नहीं रखेगी। रोजारमानी ने villagesquare.in को बताया – “हम नहीं चाहते कि वह बुनकर बने। आज लोग बुनकरों से शादी नहीं करना चाहते।”

लगभग दो दशकों से एक मास्टर बुनकर, कृष्णकुमार मुरुगेश इससे सहमत हैं। वह कहते हैं – “यदि हम कहें कि हम बुनकर हैं, तो परिवार अपनी बेटी का हाथ सौंपने से इनकार कर देते हैं। हम अगली पीढ़ी को बुनकर बनने के लिए कैसे कह सकते हैं? विवाह एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज़ है। अगली पीढ़ी शिक्षा प्राप्त कर रही है, 5,000-10,000 रुपये जैसा पैसा कमा रही है। यदि वे कड़ी मेहनत करें, तो बुनाई से भी यह आय हो सकती है, लेकिन इस पेशे का कोई महत्व नहीं है।”

हथकरघा साड़ियों की मांग कम हो रही है, क्योंकि पावरलूम पर बुनी साड़ियां सस्ती हैं (छायाकार – शारदा बालासुब्रमण्यम)

टिकाऊ फैशन ब्रांड ‘एथिकस’ की संस्थापक, विजयलक्ष्मी नाचियार, हैंडलूम साड़ियाँ बनाने के लिए नेगामाम के बुनकरों के साथ काम कर रही हैं। नाचियार ने villagesquare.in को बताया – “मैंने पिछले नौ वर्षों से बुनकरों को देखा है। अब 40 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति बुनाई नहीं करता। यह एक कठिन काम है और परिवार इसमें शामिल नहीं होना चाहते। युवा शहरों की ओर जा रहे हैं। पहले बच्चे खाली समय में काम सीखते थे, लेकिन अब माता-पिता उन्हें सिखाते भी नहीं हैं और कहते हैं, कि इससे क्या फायदा होगा? वे कहते हैं कि बुनकर बनने से बच्चों की शादी नहीं होती।”

पावरलूम बनाम हैंडलूम

जैसे-जैसे पावरलूम साड़ियों को प्रमुखता मिली, हैंडलूम साड़ियों की मांग कम हो गई है। कीमत से उपभोक्ता पर बहुत फर्क पड़ता है। कृष्णकुमार कहते हैं – “पावरलूम साड़ियों की कीमत हथकरघा साड़ियों से आधी है; उनकी गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन लोग सोचते हैं कि वे केवल एक हथकरघा साड़ी के बजाय ज्यादा पावरलूम साड़ियाँ खरीद सकते हैं।”

रोजारमानी ने आगे कहा – “जब हम हैंडलूम साड़ी की कीमत बताते हैं, तो लोग हमसे पूछते हैं कि यह महंगी क्यों है।”

सिर्फ पावरलूम से प्रतिस्पर्धा ही नहीं है। हैंडलूम डिजाइनों की नक़ल करके आसानी से पावरलूम पर बनाया जा सकता है। कृष्णकुमार कहते हैं – ”हम जो भी डिज़ाइन बनाते हैं, उसे पावरलूम से साड़ियां बनाने वाले लोग भी बना लेते हैं। आपको पावरलूम और हैंडलूम साड़ी में अंतर नहीं पता लगता। वे डिज़ाइन की हूबहू नकल कर लेते हैं।

बुनकरों की संख्या में गिरावट और इन साड़ियों का उत्पादन कम होने के बावजूद, बिक्री अच्छी नहीं है। कृष्णकुमार पूछते हैं – ”कल्पना करें कि यदि उत्पादन अधिक होता, तो क्या होता?”

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने भी उनकी आय पर असर डाला है। कृष्णकुमार कहते हैं – ”हमें बिल की जरूरत पड़ती है। और हम हर चीज़ का बिल नहीं दे सकते। साड़ियों के लिए तो यह ठीक है, लेकिन धागे जैसी छोटी चीज़ों के लिए यह संभव नहीं है। जो चीजें पहले कम पैसों में मिल जाती थी, अब महँगी हो गई हैं। दुकानदारों के लिए यह कोई समस्या नहीं है, लेकिन बुनकर के लिए यह समस्या है। हम उनसे जीएसटी का भुगतान करने के लिए नहीं कह सकते।”

इस साल केरल में बाढ़ ने उनकी ओणम बिक्री पर भी असर डाला है।

विजयलक्ष्मी कहती हैं – “क्योंकि यहां सब कुछ हाथ से बना है, इसलिए कारीगरों की मांग बढ़ेगी। मजदूरी बढ़ जाएगी। जब तक हमारे पास ऐसे संरक्षक नहीं होंगे, जो इसकी भरपाई करने को तैयार हों, इसे जारी रखना मुश्किल है। बुनकर एक खास समुदाय से आते हैं और पूरे समुदाय को लगता है कि वे अब ऐसा नहीं करना चाहते।”

वह आगे कहती हैं – “कौशल विकास की जरूरत है। बुनकर प्रशिक्षण लेना ही नहीं चाहते। आज हमें कुछ ऐसा करने की ज़रूरत है, जिससे कौशल बरकरार रहे, क्योंकि एक पीढ़ी के चले जाने पर, पूरा हुनर गायब हो जाएगा।”

यहां हथकरघा बुनकरों के लिए एक सहकारी समिति है, लेकिन इससे समुदाय को मदद नहीं मिल रही है। मोहन राज कहते हैं – ”सरकार की ओर से सबसे बड़ी गलती, सीधे सहकारी समितियों को सब्सिडी देना है। वे फर्जी खाता लिखते हैं, और इससे बुनकर समुदाय को कोई मदद नहीं मिली है।”

रोजारमानी कहते हैं – “उसमें बुनकर नहीं हैं, लेकिन वे ऐसे दिखाते हैं जैसे बुनकर हैं और पैसे ले लेते हैं।” कृष्णकुमार कहते हैं – ”पैसा हम तक नहीं पहुँचता। यदि सरकार 10,000 रुपये देती है, तो लोग अपना हिस्सा ले लेते हैं और फिर जब हमारी बात आती है, तो कुछ भी नहीं बचता।”

नवाचार की जरूरत

‘एथिकस’ नेगामाम की हथकरघा साड़ियों को डिजाइन करने के लिए बुनकरों और डिजाइनरों के साथ काम करता है। मोहन राज जैसे बुनकर अब उनके लिए काम करते हैं। विजयलक्ष्मी कहती हैं – ”हम महंगे उत्पाद बना रहे हैं और उनकी नकल नहीं की जा सकती। हम इस क्षेत्र के स्थानीय कौशल, खास करघे और जैक्वार्ड का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन हमारे डिज़ाइन और उत्पाद पूरी तरह से अलग हैं। हालाँकि साड़ियाँ संपन्न ग्राहकों के लिए बेची जाती हैं, फिर भी ऐसे लोग हैं, जो इन साड़ियों के लिए ज्यादा भुगतान करने को तैयार हैं।”

वह आगे कहती हैं – “कौशल को एक अलग स्तर पर ले जाने की जरूरत है, लेकिन बुनकर कुछ भी नया करने के प्रति इच्छुक नहीं हैं। वे परिस्थिति के अनुकूलन ढलना नहीं चाहते। ऐसा करने के लिए हमें जमीनी स्तर पर काम करने वाले डिजाइनरों की जरूरत है।

मोहन राज कहते हैं – ”अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों की मांग है, लेकिन हम इसे पहचान नहीं पा रहे हैं। कंपनियों में बुनकरों की मांग है, क्योंकि बुनकरों की संख्या अब घट रही है। यदि हर कोई सिर्फ बुनाई करे, तो समुदाय में विकास होगा।”

शारदा बालासुब्रमण्यम कोयंबटूर स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।