उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के दोधघाट गांव की 35 वर्षीय किसान सोहबती देवी अपने आठ बच्चों और बुजुर्ग ससुर सहित एक बड़ा परिवार चला रही हैं। उनका सबसे बड़ा बेटा 18 साल का है और सबसे छोटा बच्चा एक साल का लड़का है। उनके पति एक मौसमी प्रवासी श्रमिक हैं और अक्सर बाहर रहते हैं। अपने परिवार के निर्वाह के लिए, वह अपने ससुर और बड़े बच्चों के सहयोग से खेती के काम करती हैं।
मजदूरों को काम पर रखने की बजाय, देवी खुद अपने खेतों में काम करती हैं, जहां वह खरीफ और रबी मौसम में चावल, गेहूं, आलू, मटर, दालें और सब्जियां उगाती हैं। उनकी फसल परिवार में खपत और बाजार में बिक्री, दोनों के लिए होती है।
अप्रत्याशित विपत्ति
उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के सहयोग से ‘अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान’ (IRRI) द्वारा ‘सूखा-सहिष्णु चावल विविधता संवर्धन’ कार्यक्रम में भाग लेने के लिए, एक स्थानीय गैर-सरकारी संगठन ने उनसे संपर्क किया था।
देवी कहती हैं – “चावल की नई सहनशील किस्मों के बारे में जानने के बाद, मैंने बीना धान-11 लगाने का फैसला किया।”
बीना धान-11 मध्यम अवधि (110-135 दिन) की ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म है, जो बाढ़ के प्रति सहनशील है। इस क्षेत्र के किसान, वर्षा पर निर्भर हालात में मध्यम अवधि की किस्मों को उगाने के आदी हैं, जहां कम वर्षा में रुक-रुक कर सूखा पड़ना एक आम बात है। हाल के दिनों में, बीना धान-11 को आम तौर पर इसकी ज्यादा पैदावार की क्षमता के कारण चुना गया है।
बीना धान-11 का चयन तब एक बढ़िया विकल्प साबित हुआ, जब 2017 के ख़रीफ़ मौसम के अगस्त महीने में देवी और उनके पड़ोसियों के खेत बाढ़ के पानी से भर गए थे। बाढ़ पड़ोसी देश नेपाल के ऊंचाई वाले इलाकों से बहुत ज्यादा पानी बहकर आने के कारण हुई, जहां भारी बारिश हुई थी। महराजगंज और पास के गोरखपुर के पूरे निचले खेतों और गांवों में 1.8 मीटर तक पानी भर गया, जिससे क्षेत्र की रोपी गई चावल की पूरी फसल को गंभीर नुकसान हुआ। केवल 5-6 सप्ताह पहले बोई गई चावल की फसल के बाढ़ के पानी के ऊंचे स्तर से बचने की संभावना कम होगी।
आधी रात को आई अप्रत्याशित आपदा के कारण किसान पूरी तरह से अनजान थे और निपटने के लिए तैयार नहीं थे, जिससे व्यापक विनाश और विषाद हुआ।
देवी कहती हैं – “कम से कम पिछले दो दशकों में इस तरह की बाढ़ नहीं देखी गई थी।”
मानसून के कुछ देरी से आने के बावजूद, देवी अपने बीना धान-11 को समय पर बोन में सफल रही। लेकिन उन्होंने जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली बाढ़ की कभी कल्पना नहीं की थी, जिसके कारण डेढ़ महीने बाद ही उसकी फसल पूरी तरह जलमग्न हो गई।
निराशा से आशा की ओर
अपने बहुत से पड़ोसियों की तरह बुरी तरह निराश, देवी ने 2017 में अपने परिवार के उपभोग के लिए भी पर्याप्त फसल पाने की सभी उम्मीदें खो दी थी। वह और उनके ससुर अपने चावल और सब्जी की फसलों के नुकसान का आंकलन करने के लिए अगली सुबह अपने बाढ़ वाले खेत में गए।
सब्जियाँ निश्चित रूप से अच्छी नहीं दिख रही थी, लेकिन चावल का क्या हुआ?
12 दिनों के बाद, जब पानी कम हुआ, देवी और एक स्थानीय एनजीओ के प्रतिनिधि उनके खेतों को देखने और नुकसान का मूल्यांकन करने गए। उनकी निराशा अचानक आशा में बदल गई, जब उन्होंने देखा कि चावल के 40-50% पौधे अब भी हरे थे, हालाँकि बाकी बुरी तरह प्रभावित हुए थे। स्थानीय विशेषज्ञों ने बचे हुए पौधों में तुरंत खाद डालने की सिफारिश की।
उन्होंने कहा – “मेरे खेत में 2 डॉलर कीमत की खाद डालने से, मैंने कुछ ही दिनों में देखा कि मेरी फसल धीरे-धीरे ठीक हो रही है। यह एक चमत्कार जैसा था कि मैं अक्टूबर के अंत तक 3.7 टन प्रति हेक्टेयर की पैदावार लेने में सक्षम थी।”
उनकी फसल लगभग दो सप्ताह तक जलमग्न रहने और इतनी जोरदार बाढ़ से उबरने के बाद, बीना धान-11 के बीज देवी के लिए एक असली वरदान था। अपनी फसल के चमकीले रंग के दानों को देखकर, उनके पास मुस्कुराने और सहनशील चावल की किस्म बोने के अपने फैसले पर गर्व करने का हर कारण था। उन्होंने बाढ़ के हालात में बीना धान-11 के अविश्वसनीय प्रदर्शन को प्रत्यक्ष रूप से देखने के लिए, अन्य किसानों को अपने खेत पर आने के लिए आमंत्रित किया।
स्थानीय एनजीओ के माध्यम से प्राप्त किए गए चंद किलोग्राम बीज देवी के लिए मुट्ठी भर बीजों से कहीं ज्यादा थे। उन्होंने उसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के साधन उपलब्ध कराये थे। अब उनके पास आने वाले कई और मौसमों के लिए, अपने पति द्वारा भेजे पैसे में योगदान के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत है।
स्वाति नायक IRRI इंडिया में ‘बीज एवं वितरण प्रणाली क्लस्टर’ में प्रमुख कृषि अनुसंधान और विकास विशेषज्ञ हैं। दीप्ति सक्सेना भारत में ‘अफ्रीका और दक्षिण एशिया के लिए सहनशील चावल परियोजना’ में एक संचार विशेषज्ञ हैं, और मंज़ूर डार IRRI के ‘बीज और वितरण प्रणाली और जर्मप्लाज्म मूल्यांकन क्लस्टर’ के प्रमुख हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
यह लेख पहली बार ‘राइस टुडे’ में प्रकाशित हुआ था।
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