मणिपुर के ग्रामीणों द्वारा सफल आर्थिक विकास की शुरुआत
एक अविकसित मणिपुरी गांव, नोंगपोक संजेनबम के निवासी आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए एक साथ आए हैं और इस प्रक्रिया में लाभों का आनंद ले रहे हैं।
मणिपुर की राजधानी इम्फाल से लगभग 15 कि.मी. पूर्व में स्थित संजेनबाम गाँव साफ-सुथरा और बहुत हरा भरा है। 10 एकड़ भूमि में फैली, एक बुनाई इकाई और एक पोल्ट्री फार्म ज्यादातर ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करते हैं।
इम्फाल पूर्व जिले का यह गाँव गरीबी से ग्रस्त था, यहां बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव था। ज्यादातर ग्रामीण खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते थे। इस समय यह विकास का एक मॉडल है, क्योंकि यह समुदाय को शामिल करते हुए, विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से निरंतर आर्थिक विकास सुनिश्चित करता है।
समुदाय को एक साथ लाना
नोंगपोक संजेनबाम में लगभग 135 परिवार हैं और आबादी लगभग 500 है। इसमें खुनोउ, खुल्लन, संगसाबी और कंबोंगपुट कॉलोनियां हैं। लांगेई परियोजना ने एक पायलट कार्यक्रम के रूप में, खुनौ कॉलोनी को चुना।
नोंगपोक संजेनबाम गाँव के एक मूल निवासी, तेलेम अरुणकुमार (42), जिनका इंफाल में एक सफल व्यवसाय था, अपने गाँव के विकास के लिए गाँव लौट आया। उन्होंने ग्रामीणों को एकजुट किया और लांगेई परियोजना शुरू की। ‘लांगेई’ का अर्थ है धन का भंडार। परियोजना का आदर्श वाक्य ‘एक साथ हम कर सकते हैं’ है।
शुरू में, जब उन्होंने गाँव को एक सतत विकास मॉडल के रूप में विकसित करने के लिए अपने विचारों पर चर्चा की, तो कई ग्रामीणों ने सोचा कि इसमें उनका कोई निहित स्वार्थ है। उसी गाँव का मूल निवासी होने के कारण, बाद में उन्हें ग्राम प्रशासन परिषद और समुदाय से जुड़ने में मदद मिली।
एक बार विश्वास होने पर, ग्रामीणों ने परियोजना में भाग लेना शुरू कर दिया। ग्राम परिषद ने परियोजना के लिए 10 एकड़ बेकार पड़ी जमीन दान में दे दी। ग्रामीणों ने सभी योजना और निर्माण गतिविधियों में सहायता करके, लांगेई परियोजना को आगे बढ़ने में मदद की।
बुनकर महिलाएँ
एक विशाल हॉल में लगभग 200 महिलाएँ करघों पर काम कर रही थीं, जो अन्य पारम्परिक कपड़ों के अलावा, महिलाओं के परम्परागत परिधान, फ़ैनेक की बुनाई कर रही थी। इन महिलाओं को किसी प्रशिक्षण की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे कुशल पारम्परिक बुनकर हैं औरउनका कौशल पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है।
लंगलेई ने अपनी प्राथमिक आय सृजन गतिविधि के रूप में, कमरबंध कपड़े की बुनाई वाला करघा चुना, क्योंकि महिलाएँ इन करघों पर बुनाई करने में माहिर हैं। इससे न केवल आय उत्पन्न होती है, बल्कि पारम्परिक बुनाई को पुनर्जीवित किया जा रहा है, जो बुनाई में आधुनिक टेक्नोलॉजी के हमले के धीरे-धीरे लुप्त हो रही थी।
इसके अलावा, इन उत्पादों की अच्छी मांग में हैं। बुनकरों में से एक ने VillageSquare.in को बताया – “एक फ़ैनेक की कीमत लगभग 2,000 रुपये है।” रंगाई और सूत बनाने को भी बुनाई इकाई में एकीकृत कर दिया गया है।
पहले हर घर में एक कमरबंध करघे होते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। लांगेई इकाई में 150 से ज्यादा पारम्परिक करघे हैं। अरुणकुमार कहते हैं – “हम रोज लगभग 40 फैनेक बनाते हैं।” इन्हें मणिपुर और उसके आसपास, कभी-कभी अन्य शहरों में भी बेचा जाता है।
मुर्गी और पशुपालन
बुनाई इकाई के करीब तलहटी में, एक बड़ा तालाब है, जिसमें लगभग 5,000 बत्तख हैं। पास में ही मुर्गी फार्म है, जहां उतनी ही संख्या में मुर्गियां पाली जा रही हैं। फार्म में इनक्यूबेटर के साथ अलग हैचिंग इकाइयाँ हैं। फार्म से इम्फाल को रोज लगभग 1,000 अंडे की आपूर्ति की जाती है, जिससे निरंतर आय होती है।
यह फार्म लगभग 30 ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करता है। हालाँकि ज्यादातर ग्रामीण लांगेई कार्यों में लगे हुए हैं, परियोजना में पुरुषों के लिए स्वतंत्र आर्थिक गतिविधि, विशेष रूप से पशुपालन की परिकल्पना की गई है।
जल एवं सफाई व्यवस्था
गाँव में पीने के पानी की सुविधा नहीं थी। इस समय 2,000 लीटर प्रति घंटे उपचार करने वाला एक रिवर्स ऑस्मोसिस संयंत्र, पीने के पानी की आपूर्ति करता है। हर घर में पानी निःशुल्क पहुँचाया जाता है।
यदि किसी परिवार को अधिक पानी की जरूरत होती है, जैसे कि समारोह आदि में, दुरुपयोग को रोकने के लिए एक टोकन राशि ली जाती है। अरुणकुमार ने VillageSquare.in को बताया – “यह मणिपुर का अपनी तरह का पहला पेयजल आपूर्ति मॉडल है।”
स्वच्छ भारत मिशन के अनुरूप, नोंगपोक संजेनबाम गाँव के निवासी जल-मल निपटान के अलावा, स्वेच्छा से स्वछता एवं सफाई अभियान चलाते हैं। बेंत और बाँस से बनी बायोडिग्रेडेबल कूड़े की टोकरियाँ सड़कों के किनारे और विशेष स्थानों पर रखी जाती हैं। अरुण कुमार ने दावा किया कि गाँव खुले में शौच से मुक्त है।
बचाव और सुरक्षा
नोंगपोक संजेनबाम की खुनौ कॉलोनी और गाँव की गलियों में एक सौर स्ट्रीट लाइट व्यवस्था है। बचाव एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुल 350 स्ट्रीट लाइटें लगाई गई हैं।
स्ट्रीट लाइट की एक केंद्रीय नियंत्रण व्यवस्था होती है। अरुणकुमार कहते हैं – “गाँवों में लोग, विशेषकर महिलाएँ अंधेरे में बाहर नहीं निकलती हैं, इसलिए इससे ग्रामीणों की बेहतर चहल पहल में मदद मिलती है।”
सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, लांगेई परियोजना में प्रमुख स्थानों पर बंद-सर्किट निगरानी कैमरे (सीसीटीवी) लगाए गए हैं। गाँव में ऐसे 32 सीसीटीवी कैमरे हैं, जो चौबीसों घंटे पूरे गाँव पर नजर रखते हैं। इससे शराबखोरी और चोरी जैसी सामाजिक बुराइयों में कमी आई है।
संचार एवं सूचना आदान-प्रदान के लिए, पब्लिक एड्रेस (पीए) सिस्टम स्थापित किया गया है। इसका उपयोग ग्रामीणों को इकठ्ठा करने के लिए भी किया जाता है। प्रमुख स्थानों पर लगे लाउड स्पीकरों की एक श्रृंखला मुख्य प्रशासनिक कार्यालय से जुड़ी हुई है। इससे आपातकालीन स्थितियों में मदद मिलती है। अरुणकुमार कहते हैं – “जब हम सीसीटीवी में कुछ असामान्य देखते हैं, तो हम पीए सिस्टम से कॉल करते हैं।”
सामाजिक विकास
लांगेई परियोजना के अंतर्गत लांगेई खेल एकेडेमी शुरू की गई है। खेल अकादमी में 8-18 वर्ष की आयु वर्ग के 100 से ज्यादा युवाओं ने दाखिला लिया है, जिनमें से आधी लड़कियाँ हैं।
अरुणकुमार ने VillageSquare.in को बताया – “इसका उद्देश्य युवा प्रतिभाओं को तैयार करना है।” “एकेडेमी में दाखिल सभी लोगों को भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा अपने ‘आओ और खेलो कार्यक्रम’ के अंतर्गत अपनाया।” एकेडेमी के तीन खिलाड़ी अंडर-19, ईस्ट बंगाल फुटबॉल टीम में खेलते हैं।
गाँव में युवाओं के लिए एक बड़ा खेल का मैदान है। हर रोज एक बस, युवा खिलाड़ियों को इम्फाल में ‘खुमान लैम्पक स्पोर्ट्स स्टेडियम’ ले जाती है, ताकि वे विशेषज्ञ मार्गदर्शन में अपने कौशल को निखार सकें।
गाँव के लिए भविष्य की योजनाओं में एक स्कूल, एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, एक बायोगैस संयंत्र इकोटूरिज्म केंद्र स्थापित करना शामिल हैं।
निंगलुन हंघल मणिपुर स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?
यह पूर्वोत्तर राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां कई ऐसे स्थान हैं, जिन्हें जरूर देखना चाहिए।