एक आदिवासी महिला किसान ने इस नई पद्धति से कैसे बढ़ाई अपनी आय

भुवनेश्वर, ओडिशा

जैविक खेती के ‘50-सेंट (0.5 एकड़ भूमि) मॉडल’ को अपनाने तक, बालमती गौड़ दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने वाली एक औसत संघर्षशील आदिवासी किसान थी। इस मॉडल ने उनका जीवन बदल दिया और वे अन्य महिला किसानों के लिए प्रेरणा बन गई।

एक आदिवासी महिला, बालमती गौड़ अपने पति के साथ अपने 2 एकड़ के छोटे से खेत पर काम करती थी। वह पारम्परिक खेती के तरीकों से परिचित थी और उन्नत और टिकाऊ खेती के तरीकों से अनभिज्ञ थी।

बालमती और उनके पति मुख्य रूप से वर्षा आधारित फसलें, जैसे बाजरा, दालें, धान और मौसमी सब्जियाँ उगाते थे।

खून-पसीना एक करने के बाद भी उनकी आय में कोई वृद्धि नहीं हुई। कई बार तो उनकी उपज उनके अपने घरेलू उपभोग के लिए भी काफी नहीं होती थी।

इस वजह से उसे खेती के साथ साथ दिहाड़ी मजदूर के तौर पर भी काम करना पड़ा। लेकिन यह भी नाकाफी साबित हो रहा था। वह निराश होने लगी थी।

लेकिन फिर जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया।

मोड़

‘हर्षा ट्रस्ट’ द्वारा आयोजित किसानों की एक बैठक में भाग लेते हुए, बालमती को ’50-सेंट मॉडल’ से परिचित कराया गया।

यहां उन्हें उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए गहन प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण संबंधी जानकारी प्राप्त हुई।

उन्होंने चुनिंदा सब्ज़ियों की खेती, ऊँची क्यारियाँ, जाली और पाइप आधारित सिंचाई जैसे खेती के नए तरीके सीखे। मीटिंग में उन्होंने 50-सेंट मॉडल के बारे में जाना, जो छोटे से खेत से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने पर केंद्रित है।

यह एक बड़ा परिवर्तनकारी क्षण साबित हुआ।

50-सेंट मॉडल क्या है?

50-सेंट मॉडल का उद्देश्य छोटे खेत की उत्पादन क्षमता को अधिकतम करना है, जिससे किसानों को ज्यादा आमदनी प्राप्त हो सके। यह उन्नत कृषि पद्धतियों और प्रौद्योगिकी को अपनाने पर केंद्रित है।

‘पैकेज ऑफ प्रैक्टिसेज’ 50-सेंट विधि का एक अभिन्न अंग है। इसमें ऊंची क्यारी, सही जल प्रबंधन पद्धतियां, कमजोर पौधों के लिए ट्रेलिस लगाना, समय पर निराई-गुड़ाई और जैविक खाद का उपयोग करना शामिल है।

इस मॉडल में पाइप सिंचाई जैसी नई और उन्नत सिंचाई प्रणालियाँ भी शामिल की गई हैं। इसके अलावा फसल नियोजन पर भी जोर दिया जाता है। 50-सेंट मॉडल किसानों को व्यावसायिक रूप से बड़े पैमाने पर ऐसी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिन्हें उगाने में कम मेहनत लगती है।

उन्नत कृषि पद्धतियों से बालमती के परिवार को ज्यादा आय और बेहतर पोषण मिला है (छायाकार – संगीता बेहरा)

किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे टेक्नोलॉजी को दुश्मन नहीं, बल्कि मित्र के रूप में देखें। नई तकनीक अपनाने से शारीरिक मेहनत की मात्रा कम हो सकती है और सीमित भूमि से उत्पादकता को अधिकतम किया जा सकता है।

इसके अलावा रामपुर तहसील जैसे स्थानों पर, जहां बालमती रहती हैं, किसानों को हाथियों और जंगली सूअरों से अपनी फसलों को बचाने के लिए, तार की बाड़ लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

50 सेंट के रास्ते पर बालमती की यात्रा

बालमती ने बेहतर फसल उत्पादन के लिए ‘पैकेज ऑफ़ प्रैक्टिसेज’ को अपनाया और फूलगोभी (10 सेंट), बैंगन (20 सेंट), पत्तागोभी (10 सेंट) और सेम (10 सेंट) जैसी व्यावसायिक सब्जियों की खेती की।

उन्होंने 50-सेंट मॉडल के अंतर्गत उपलब्ध नई तकनीक का उपयोग करना शुरू किया और साथ ही तार की बाड़ से अपनी फसलों की सुरक्षा भी करती रही। पाइप आधारित सिंचाई के उनके उपयोग ने पूरे साल फसलों को स्वस्थ रखना भी सुनिश्चित किया।

इसके परिणामस्वरूप बालमती की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

वर्ष 2021-22 में उन्होंने इस मॉडल के इस्तेमाल से 84,500 रुपये की सकल आय और 69,050 रुपये की शुद्ध आय अर्जित की। लेकिन क्योंकि पिछले वर्षों के सटीक आय के आँकड़े उनके पास नहीं थे, इसलिए पारम्परिक खेती और 50-सेंट मॉडल के बीच सही आय के अंतर की गणना करना मुश्किल था।

मेहनत में कमी भी एक बड़ा लाभ था।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बालमती ने अपने निरंतर प्रयासों से आत्मनिर्भरता हासिल की। उनके खेत पर उगाई गई जैविक सब्ज़ियों की वजह से उनके परिवार की पोषण की ज़रूरतें भी बेहतर ढंग से पूरी हुई।

बालमती के अनुभव से सबक

अन्य आदिवासी किसानों की तरह, वह भी पहले से 50 सेंट मॉडल के बारे में नहीं जानती थी। अपने पूर्वजों से विरासत में मिले पारम्परिक तरीकों को छोड़ने में उन्हें झिझक थी।

बालमती को खेती के इन उन्नत तरीकों को अपनाने में काफ़ी समय लगा। फिर भी अपने निरंतर प्रयासों की बदौलत उन्होंने इन बाधाओं को पार कर लिया।

इसके छोटे आकार के कारण, रामपुर का स्थानीय बाज़ार 50-सेंट मॉडल से खेती करने वाले सभी किसानों का सहयोग करने में सक्षम नहीं हो सकता है। इस कारण अधिक किसानों को इस मॉडल को लाभदायक देखने के लिए ज्यादा बिक्री चैनल स्थापित करने की जरूरत होगी।

बालामती जैसी बहुत सी आदिवासी महिलाएँ सही कौशल और प्रशिक्षण से आत्मनिर्भरता और उच्च आय प्राप्त कर सकती हैं। उनकी सफलता दर्शाती है कि ग्रामीण किसानों को खेती के उन्नत तरीकों में प्रशिक्षित करके, खेती को काफी अधिक लाभदायक बनाया जा सकता है।

शीर्ष पर मुख्य फोटो में बालमती गौड़ को फूलगोभी, बैंगन, पत्तागोभी और सेम जैसी व्यावसायिक सब्जियों की खेती करते हुए दिखाया गया है (छायाकार – संगीता बेहरा)

संगीता बेहरा ‘हर्षा ट्रस्ट’ में कम्युनिकेशन एग्जीक्यूटिव हैं।