कभी सोचती थी बाउल गरीबी लाता है, आज वह अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बाउलिनी है

बीरभूम, पश्चिम बंगाल

अपने पिता को जीविका चलाते हुए देखकर रीना दास बाउल किसी बाउल गायक से शादी नहीं करना चाहती थी, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं उन्हें गरीबी में न रहना पड़े। लेकिन उनके पति ने न केवल उन्हें बाउल संगीत सीखने के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि उन्हें अपने साथ प्रस्तुति के लिए भी राजी किया, जिसने अंततः उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पहुँचाया।

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के पारुलडांगा गाँव की स्कूल छोड़ चुकी रीना दास बाउल ने अपने शब्दों में बताया कि कैसे बाउल संगीत ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया।

संगीत हमेशा से मेरे जीवन का हिस्सा रहा है। मेरा जन्म संगीतकारों के परिवार में हुआ, क्योंकि मेरे दादा और पिता पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के जाने-माने बाउल गायक हैं।

वास्तव में, मेरे दादा खुदीराम दास ने एक बार प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के लिए प्रदर्शन किया था।

फिर भी हमें भारी आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

मेरी माँ एक गृहिणी थीं और मेरे पिता की आय परिवार चलाने के लिए मुश्किल से पर्याप्त थी।

ऐसे भी दिन आए, जब मुझे और मेरे छोटे भाई को भूखे पेट सोना पड़ा।

मैं सिर्फ 13 साल की थी और तब छठी कक्षा पास की थी, जब मेरे पिता ने मेरे लिए एक बाउल गायक वर चुना।

मैं यह सोचकर रो पड़ी कि मुझे फिर से वही गरीबी भरी जिंदगी जीनी पड़ेगी। और मैं उसके लिए तैयार नहीं थी।

लेकिन मेरे पिता ने मेरी बात सुनने से इनकार कर दिया। मेरे डर से उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ा।

वह उस बाउल गायक से मेरा विवाह कराने के लिए दृढ़संकल्पित थे, जिनसे उनकी मुलाकात हुई थी और जो उन्हें पसंद थे।

मैंने सोचा कि मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बर्बाद हो गयी है और मुझे गरीबी में ही रहना पड़ेगा।

लेकिन मेरे पति दिबाकर दास देखभाल करने वाले और सहयोग देने वाले थे।

वह चाहते थे कि मैं संगीत सीखूं।

मुझे आज भी वह दिन याद है, जब मेरे पति एक हारमोनियम खरीदकर अपने सिर पर रखकर घर लाए थे।

वह चाहते थे कि मैं उनकी तरह बाउल बनूँ। लेकिन मैं इसकी इच्छुक नहीं थी। खासतौर पर इसलिए, क्योंकि मैंने अपने पिता की ख़राब आर्थिक स्थिति देखी थी। 

इसके अलावा, चार दशक पहले समाज में महिला बाउल गायिका को स्वीकार करना मुश्किल था।

लेकिन हारमोनियम देखकर मैं किसी तरह नरम पड़ गई।

धीरे धीरे मैं बाउल संगीत पसंद करने लगी। मैंने एक तार वाले ‘डुगी एकतारे’ के साथ गाना शुरू कर दिया। 

मुश्किल समय में मैं और मेरे पति साथ मिलकर ‘मदुगिरी’करते थे – आप जानते ही हैं, गाकर भिक्षा मांगना।

धीरे-धीरे चीजें बदलने लगी। लोगों को हमारी स्टेज प्रस्तुति पसंद आने लगा और वे हमें गांव के विभिन्न कार्यक्रमों में प्रस्तुति देने के लिए आमंत्रित करने लगे।

अपने पति के साथ प्रदर्शन के लिए जाते वक्त, अपने छोटे बेटे और बेटी की देखभाल करना आसान नहीं था। लेकिन हम खुश थे कि हमें प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया जा रहा था।

रीना दास बाउल

यह सोचना भी मुश्किल है कि एक लड़की, जिसने सिर्फ छठी क्लास तक पढ़ाई की है, वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर सकती है। लेकिन मैं अपने पति और सीखने के लिए समर्पित प्रयासों की बदौलत ऐसा कर सकी।

बाउलिनी होने से मुझे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है।

मैंने पिछले 35 वर्षों में भारत भर में तथा फ्रांस, स्वीडन और पुर्तगाल सहित विदेशों में, 5,000 से ज्यादा कार्यक्रमों में प्रस्तुति दी है।

पश्चिम के दर्शकों से खड़े होकर तालियॉँ बजाना रोमांचक था।

मुझे कई राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।

मेरा 21-वर्षीय बेटा भी बाउल गायक है और मेरी बेटी की शादी भी एक बाउल से हुई है।

मैं शांतिनिकेतन के पास पारुलडांगा स्थित अपने घर में, हर रविवार को निःशुल्क बाउल संगीत कक्षाएं चलाती हूँ।

मैं चाहूँगी कि बाउल संगीत की समृद्ध विरासत जारी रहे, क्योंकि बाउल को सार्वभौमिक भाईचारे और एकता के बारे में गाते हुए सुनने से ज्यादा आत्मा को शांति और ताजगी किसी चीज से नहीं मिलती, जिसकी आजकल बहुत जरूरत है।

रिपोर्ट और फोटो कोलकाता स्थित पत्रकार गुरविंदर सिंह द्वारा।