बच्चों के एक के बाद एक, जल्दी-जल्दी जन्म के दुष्प्रभाव और कृषि और घरेलू कार्यों के तनाव, की दोहरी मार झेल रही ओडिशा की आदिवासी महिलाएं, गर्भ निरोधकों का उपयोग करने के लिए समुदाय के नियमों को तोड़ रही हैं
गजपति जिले की धेपागुड़ा पंचायत के साओरा
आदिवासियों के एक टोले, बाली साही की रहने वाली,
रीता मंडल (34) ने पाँच बच्चों को जन्म दिया,
जिनमें से तीन की मृत्यु हो गई। हालांकि जल्दी-जल्दी गर्भधारण के
कारण उसका स्वास्थ्य ख़राब हो गया। लेकिन वह अपने को असहाय महसूस कर रही थी,
क्योंकि उसके समुदाय की महिलाओं के पास गर्भधारण के मामले में कोई
विकल्प नहीं था।
कुछ इसी तरह का किस्सा सुमित्रा, सेबती, सुगामी
और 30 से 40 साल के बीच आयु की
ज्यादातर दूसरी महिलाओं का भी था। बिना अंतराल के गर्भधारण के कारण इनमें से
अधिकांश महिलाओं का स्वास्थ्य खराब हो गया। तीन बच्चों की मां, आरती रायका (32) कहती हैं – ”शारीरिक कमजोरी के कारण, जंगल से जलाऊ लकड़ी और दूसरी वनोपज लाना या अपने पारिवारिक खेत में काम
करना मेरे लिए तकलीफदेह था।”
गर्भ को रोकने या उसमें विलम्ब करने के
लिए, किसी भी गर्भनिरोधक
तरीके का उपयोग, साओरा और डोंगरिया जैसे ‘विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों’ (PVGT) के
सामुदायिक नियमों के खिलाफ है। जागरूकता कार्यक्रमों के बाद, ओडिशा की आदिवासी महिलाएं अब इस सदियों पुरानी प्रथा को तोड़ रही हैं।
जागरुकता की कमी
महिलाओं में प्रजनन-स्वास्थ्य के मुद्दे पर जागरूकता की कमी थी। ‘एकीकृत जिला हस्तक्षेप – आई डी आई’ (Integrated District Intervention) के धेपागुड़ा की क्लस्टर समन्वयक, कुमारी दलबहेड़ा ने VillageSquare.in को बताया – “उन्हें पता नहीं था कि बिना अंतराल के गर्भ ही ख़राब स्वास्थ्य के लिए असली दोषी था।”
आई डी आई, ओडिशा सरकार द्वारा गजपति और रायगढ़ जिलों के छह ब्लॉकों
से 21 पीवीटीजी ग्राम पंचायतों में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या
कोष (UNPF) के साथ साझेदारी में लागू किया गया है। विशेषज्ञों
का मानना है कि व्यावहारिक बदलाव के लिए जागरूकता के अभाव, सामाजिक-सांस्कृतिक नियम और गलत धारणाओं जैसी बाधाओं को दूर करने की जरूरत
है। जागरूकता की जरूरत को समझते हुए, कार्यक्रम के अंतर्गत,
पंचायत और ब्लॉक स्तरों पर, पुरुषों और
महिलाओं के लिए बैठकें आयोजित की गईं।
सामुदायिक नियम-कायदे
केशरपडी, नियामगिरि पहाड़ियों की निचली ढलानों पर स्थित, लगभग 100 डोंगरिया कोंध आबादी वाला एक सुदूर गाँव
है। कामचे कुतरुका (32), रायगडा के मुनिगुडा
ब्लॉक में केशरपडी की एक डोंगरिया कोंध हैं, जो छह बच्चों की
माँ है।
उनकी ज़िम्मेदारियों में, बच्चों के पालन-पोषण के साथ-साथ, घरेलू काम और
‘डोंगोर’ (जंगल) में काम करना है, जो पहाड़ी ढलानों पर ज़मीन का हिस्सा है, जिस पर
सब्जियाँ और बाजरा जैसी फसलें उगाई जाती हैं। वे कहती हैं- “हालांकि, मुझे अपने ख़राब स्वास्थ्य के कारण दिक्कत
होती है, लेकिन और कोई रास्ता ही नहीं है।”
कामचे कुतरुका ने VillageSquare.in को बताया – “गर्भधारण में देरी या उससे बचने के लिए गर्भ निरोधकों का उपयोग समुदाय की रीत नहीं थी। समुदाय की अधिकांश महिलाएँ एक के बाद एक, छह या सात बच्चों को जन्म देती थीं। इसके अलावा, हमें गर्भनिरोधक तरीकों की जानकारी भी नहीं थी।”
सिबापदर पंचायत की आई डी आई क्लस्टर
समन्वयक, झिली बेहड़ा ने बताया,
कि सामुदायिक नियमों का सख्ती से पालन करने के कारण, बहुत कम डोंगरिया कोंध महिलाएं विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत प्रदान की
जाने वाली प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने में रुचि लेती थी।
धीरे-धीरे आती जागृति
बेहड़ा ने बताया
– “जब आंगनवाड़ी
कार्यकर्ता और मैंने, जून 2018 में
गांव का दौरा किया, तो महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों
पर चर्चा करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। हालांकि, लगभग छह
महीने के लगातार प्रयासों से परिणाम सामने आने लगे।“
बेहड़ा VillageSquare.in को बताती हैं – “मैंने महिलाओं को, स्वस्थ रहने के लिए गर्भधारण में अंतराल के महत्व और जरूरत को समझाने की कोशिश की, क्योंकि उन्हें पूरा समय घर पर या जंगल में बहुत शारीरिक मेहनत करनी पड़ती है।”
बेहड़ा की पहली सफलता दो बच्चों की माँ, चिलिका कुतरुका (24) के साथ मिली, जिन्होंने अगले गर्भ में अंतराल के लिए,
हर तीन महीने में लगने वाले गर्भनिरोधक इंजेक्शन, ‘अंतरा’ में रुचि दिखाई। चिलिका कुतरुका के बाद, रायगड़ा और गजपति जिलों में शुरू किए
कार्यक्रम में फरवरी 2019 में, केशरपडी
की पांच और माताओं ने अंतरा को अपनाया।
बेहड़ा ने पाया,
कि गर्भनिरोधक गोलियां इसके लिए आदर्श नहीं हैं, क्योंकि
महिलाएं अधिक काम के दबाव में इसे लेना भूल सकती हैं। इसलिए, ज्यादातर महिलाएं अंतरा में रुचि दिखाती हैं। केवल एक महिला ने
इंट्रायुटराईनग र्भनिरोधक उपकरण (IUCD), कॉपर टी का उपयोग
किया, और आठ बच्चों के होने के बाद, 2018 में एक और महिला ने नसबंदी करवाई।
समुदाय के अनुकूल सूचना-व्यवस्था
गजपति जिले के गुम्मा ब्लॉक में भुबानी पंचायत की आई डी आई क्लस्टर समन्वयक, सागरिका रायका ने VillageSquare.in को बताया – “सामाजिक और व्यवहारिक बदलाव लाने के लिए प्रभावी सूचना-व्यवस्था (संचार) महत्वपूर्ण है। इसके लिए सचित्र प्रस्तुति अधिक प्रभावी है।”
वह कहती हैं – “कार्यक्रम के बारे में बस भाषण
देने और आदिवासी महिला-पुरुषों को अपने तौर-तरीके बदलने के लिए कहने की बजाय,
मैंने बार-बार निरंतर गर्भधारण से उत्पन्न होने वाली विभिन्न
समस्याओं और उनके संभावित समाधान समझाने के लिए चित्रों और आकृतियों का प्रयोग
किया।”
रायगड़ा में गुनुपुर ब्लॉक के सगड़ा
क्लस्टर समन्वयक, संजू दलबेहड़ा ने कहा, कि साओरा
और कोंध आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली साओरा और कुई बोलियों में तैयार,
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्मित ‘किलकारी’ ऑडियो जिंगल्स, समुदायों
के सदस्यों को आकर्षित करने के लिए बहुत मददगार रही।
दलबेहड़ा ने VillageSquare.in को बताया – “उनके लिए अपनी भाषा में जिंगल्स सुनना एक नया अनुभव था। लोगों ने, विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों ने, प्रजनन-स्वास्थ्य मुद्दों के विभिन्न कारणों और उनके समाधान का वर्णन करते हुए जिंगल्स सुने।”
जानकारी आधारित विकल्प
इस तरह के सूचना-संचार तरीकों ने महिलाओं
और लड़कियों को गांव के स्वास्थ्य और पोषण दिवस पर बैठकों में भाग लेने के लिए
प्रेरित किया। महिलाओं ने उन मुद्दों पर चर्चा करना शुरू दिया, जिनके बारे में उन्होंने पहले कभी
चर्चा नहीं की थी।
गुनूपुर ब्लॉक की सगड़ा और आबादा
पंचायतों की सहायक दाई, सबिता पाधी ने कहा –
“हमने उन्हें प्रजनन-स्वास्थ्य, गर्भ में
अंतराल की आवश्यकता और उसके तरीकों के बारे में बताया, ताकि
वे सोच-समझकर स्वयं इस पर अपना निर्णय ले सकें।”
गुनूपुर ब्लॉक के जगन्नाथपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में सुपरिन्टेन्डेन्ट चिकित्सा अधिकारी, हिमांशु कुमार दास VillageSquare.in को बताते हैं – “परिवार कल्याण दिवस पर हमने उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में गर्भनिरोधक तरीकों के इस्तेमाल के बारे में जानकारी दी।”
पुरुषों में जागरूकता
जागरूकता कार्यक्रमों ने उन सामाजिक
लांछनों को दूर करने में मदद की, जो युगों से सामुदायिक व्यवहार पर हावी थे। पाधी कहती हैं – “पुरुषों ने महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता दर्शाई और स्थापित नियमों के
विपरीत जाकर उन्हें गर्भ निरोधक अपनाने की अनुमति दी।”
रीता कहती हैं – “बैठकों में हमें अपने स्वास्थ्य के
ख़राब होने के कारणों का पता चला। हमारे पुरुषों ने भी एक के बाद एक गर्भ के कारण
महिलाओं को होने वाली समस्याओं को समझा। यह न केवल कई बच्चों को जन्म देने की बात
है, बल्कि उनका ठीक से पालन-पोषण की बात भी है।”
बैठकों में भाग लेने पर, रीता अपने पति को नसबंदी के लिए मना
सकी। जहां धेपागुड़ा पंचायत की कम से कम 11 महिलाओं ने
नसबंदी करवाई है, गायत्री मंडल (20) जैसी
गर्भवती महिलाओं ने दो या तीन बच्चों के बाद जन्म नियंत्रण का फैसला किया है।
पांच बच्चों की मां सुमित्रा साबरा (35) ने VillageSquare.in को बताया – “हमारे पुरुषों ने महसूस किया कि परिवार के लिए और बच्चों की परवरिश के लिए महिलाओं का स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है।”
सुमित्रा के पति गणपति साबरा ने बताया –
“हर बच्चे की अच्छी परवरिश और उसके बेहतर जीवन के लिए आवश्यक
शिक्षा प्रदान करने के महत्त्व को देखते हुए, कई बच्चे होना
कष्टदायक है।”
गर्भ निरोधकों का उपयोग
रायगड़ा के मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी, शक्तिब्रत मोहंती के अनुसार –
“अंतरा जैसे नए गर्भनिरोधक तरीके उपलब्ध होने के कारण, रूढ़िवादी आदिवासी समुदायों की महिलाएं, अब
गर्भाधारण से बचने के लिए कोई न कोई तरीका अपना रही हैं। वे स्वयं अपने और अपने
बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में भी गंभीर हैं, और वे स्वस्थ
बच्चों के पालन की आवश्यकता को समझती हैं।”
वे कहती हैं, कि सूचना-संचार के अलावा, मान्यता-प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा), सहायक नर्स दाई (एएनएम) और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जैसे सामुदायिक स्तर के
स्वयंसेवकों और स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी की भी इस बदलाव
में भूमिका है। कुछ आशा कार्यकर्ताओं और एएनएम ने अन्य महिलाओं को प्रेरित करने के
लिए स्वयं गर्भनिरोधक तरीकों का प्रयोग किया।
आई डी आई की राज्य परियोजना अधिकारी, रोज़लीन स्वैन ने VillageSquare.in को बताया – “इसे सफल बनाने के लिए, गजपती जिले की उदयगिरि CHC में उद्घाटन के दिन ही आठ ASHA कार्यकर्ताओं ने अंतरा का उपयोग किया। इन जमीनी स्तर की कार्यकर्ताओं में से कई ने दूसरे तरीके भी चुने। वे कार्यक्रम की असली राजदूत हैं।”
गुनूपुर ब्लॉक के पुटासिंह के लिए
नियुक्त ASHA कार्यकर्ता, दुखिनी लीमा, कार्यक्रम शुरू होने के बाद, साओरा और डोंगरिया कोंध महिलाओं के गर्भनिरोधक स्वीकार करने के प्रति रवैये
के बारे में कहती हैं – “एक या दो बच्चों वाली युवा
माताएं, अगले गर्भाधारण के अंतराल के लिए अंतरा पसंद करती
हैं। दो या तीन बच्चों वाली माताएँ ज्यादातर नसबंदी का फैसला ले रही हैं।”
अतिरिक्त जिला सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी (परिवार कल्याण), प्रफुल्ल कुमार पाधी ने VillageSquare.in को बताया – “पीवीटीजी महिलाओं के बदलते व्यवहार से उनके प्रजनन-स्वास्थ्य अधिकारों को बरक़रार रखने और स्वस्थ परिवारों के निर्माण के संबंध में निश्चित रूप से बहुत सारी संभावनाएं जुड़ी हैं।”
बासुदेव महापात्रा भुवनेश्वर स्थित
पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?