जो पहले ईंधन के रूप में प्रयोग होते थे, उन सुपारी के पत्तों से, भोजन परोसने के लिए उपयुक्त, बायोडिग्रेडेबल वस्तुएं बनाकर, असम में ग्रामीण महिलाएं अपनी घरेलू आय में वृद्धि करते हुए, वायु और प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने में मदद करती हैं।
असम के कामरूप
जिले के बाघमारा गाँव की रिजुमोनी राभा दैनिक खर्चों को लेकर हमेशा चिंतित रहती थी, क्योंकि उनके पति के पास नियमित आय नहीं है। लेकिन अब जब वह
सुपारी-पत्तियों से भोजन परोसने के लिए उपयुक्त वस्तुएं बनाती हैं, तो वह अपने परिवार की आय में योगदान कर पाती हैं।
ग्रामीण महिलाएँ
प्रचुर मात्रा में उपलब्ध, कुदरती संसाधनों का प्रयोग करके, अपनी घरेलू आय को में योगदान दे पाती हैं। महिलाएं उन सुपारी पेड़ के पत्तों
से बायोडिग्रेडेबल प्लेट बना रही हैं, जो पहले बेकार चले
जाते थे।
नई आजीविका
रिजुमोनी राभा के पति एक भूमिहीन किसान हैं। उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “वह दूसरों के खेत में मजदूरी करते हैं और इसलिए आय नियमित नहीं है| पहले मैं अंशकालिक कार्यों के लिए दूसरे स्थानों पर जाती थी, लेकिन वह आय भी पर्याप्त नहीं थी।”
उन्हें पत्तियों
की थाली बनाने का अनुभव शानदार लगता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि भी होती है। रिजुमोनी
राभा (37) कहती हैं – “मैंने एक
नया शिल्प सीखा है और मुझे विश्वास है कि यह मेरी कमाई को और बढ़ा सकता है।”
बामुनिगाँव, बाघमारा और छायगांव क्षेत्र के
दूसरे गाँवों में, लगभग 35 महिलाएँ
सुपारी-पत्ते की प्लेट बनाती हैं।
सूक्ष्म
उद्योंगो को सहयोग
‘इंटरग्लोब
फाउंडेशन’ के आर्थिक सहयोग से, ‘धृती’
द्वारा संचालित, ‘परियोजना प्रगति’ के अंतर्गत, महिलाएं सुपारी-पत्ते से प्लेट बनाती
हैं, जो 100% बायोडिग्रेडेबल हैं। ये
घरेलु सूक्ष्म उद्योग पिछले दो सालों से कार्य कर रहे हैं।
इंटरग्लोब
फाउंडेशन ने मशीनों की खरीद के लिए धन उपलब्ध कराया है। मशीनें महिलाओं के घरों
में लगाई गई हैं। असम-स्थित ‘तामुल प्लेट्स मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड’
ने तकनीकी और बिक्री में सहायता प्रदान की है। धृती ने गांवों में
प्रशिक्षण आयोजित करने के बाद, महिलाओं का चयन किया।
धृती की कार्यकारी निदेशक, निधि अरोड़ा ने बताया – “हमने कच्चे माल की
उपलब्धता के कारण यह क्षेत्र चुना। जागरूकता शिविरों के बाद, हमने महिलाओं को सहायता के बारे में बताया।” महिलाओं
ने घर पर आवश्यक व्यवस्था करने के लिए, लगभग 20,000 रुपये का निवेश किया, ताकि 3 लाख
रुपये कीमत की मशीन लगाई जा सके।
कचरे से दौलत
पहले सुपारी के
पत्तों को जलाया जाता था या उन्हें फेंक दिया जाता था। अब ग्रामवासियों को
पत्तियों की कीमत समझ में आ गई है। उन्होंने प्लास्टिक के उपयोग के दुष्प्रभाव और
बायोडिग्रेडेबल उत्पादों के महत्व को भी महसूस किया है।
इंटरग्लोब
फाउंडेशन का उद्देश्य, न केवल महिला उद्यमी तैयार करना है, जो सुपारी-पत्तों से भोजन परोसने के लिए उपयुक्त सामान बनाकर जीवन यापन
करेंगी, बल्कि पर्यावरण-परक प्लेटों का उत्पादन भी करेंगी,
जो प्लास्टिक या अन्य प्रदूषण फ़ैलाने वाली वस्तुओं का स्थान भी
लेंगी।
ग्रामीण उद्यमियों में से एक, बटकुची गाँव की रीता राभा ने VillageSquare.in को बताया – “मैं पिछले दो वर्षों से सुपारी-पत्तियों से प्लेट और चम्मच बना रही हूँ। पहले ये बेकार जाते थे, लेकिन अब हम इसके कचरे से पैसा कमा रहे हैं।”
आय में वृद्धि
शुरुआत में
रिजुमोनी राभा प्लेट से लगभग 5,000 रुपये महीना आय होती थी, जो अब बढ़कर 10,000 रुपये महीने हो गई है। वह कहती
हैं – “अगर मैं इस पर अधिक समय दूँ, तो
मुझे विश्वास है कि मैं 20,000 रुपये तक आसानी से कमा सकती
हूं। अब, मेरे बच्चे और पति भी मेरी मदद कर रहे हैं।”
मैट्रिक पास
रीता राभा ने कहा कि वह अकेली एक दिन में 300 प्लेट तक बना सकती हैं। महिलाओं को लगता है कि
इसमें और अधिक कमाने की गुंजाइश है। रीता राभा ने कहा – “अगर हम इस काम को जारी रख सकें, तो हम गांव की
महिलाओं के लिए बेहतर भविष्य देखते हैं, क्योंकि लोग आजकल
प्लास्टिक की वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहते।”
इंटरग्लोब फाउंडेशन की प्रमुख, प्रियंका सिंह ने VillageSquare.in को बताया – “इस परियोजना के माध्यम से, हम 35 महिलाओं का, इन पर्यावरण के अनुकूल कटलरी बनाने के लिए सशक्तिकरण कर सके और 300 से अधिक अन्य लोगों तक लाभ पहुंचा सके। वे सभी बहुत खुश हैं कि उनकी आय बढ़ गई है।”
सशक्त महिलाएं
धृती, महिलाओं को अपने उद्यम का प्रबंधन करने, कच्चा माल
सप्लाई करने वालों का एक नेटवर्क बनाने और हिसाब-किताब रखना सीखने में मदद करती
है। यह महिलाओं का मार्गदर्शन भी करती है, कि वे अपनी घरेलू
जिम्मेदारियों और प्लेट बनाने के काम के बीच संतुलित कैसे बैठाएं।
धृती उन महिलाओं
में नेतृत्व के गुण विकसित करने में मदद करती हैं, जिन्हें वास्तव में
उस परियोजना को चलाना है। निधि अरोड़ा ने VillageSquare.in को
बताया – “उन्हें समुदाय को एकजुट करने, कच्चा माल प्राप्त करने, तैयार वस्तुओं को पैक करने
और इससे जुड़ी दूसरी गतिविधियों को करने की जरूरत है।”
प्रशिक्षण के बाद, महिलाएं
बैंक-संबंधी कार्य करने में सक्षम हैं। प्रियंका सिंह के अनुसार – “उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। उन्हें लगता है कि समुदाय का उनके प्रति सम्मान
अधिक है।” वे खुश हैं कि उनके घरेलू उद्यम, पर्यावरण-परक वस्तु की मदद से जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए उनकी शक्ति
बढ़ा रहे हैं।
अब्दुल गनी
गुवाहाटी में स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?