समुदाय की चुनौतियों से निपटने के लिए, समूहों ने किया महिलाओं का सशक्तिकरण
स्व-सहायता समूहों के गठन में विरोध से लेकर, पीने के पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने तक, गाँव की महिलाएँ सामूहिकता के सकारात्मक प्रभावों को दर्शाती हैं
अमुल्लाखुर्द गांव में रहने वाली किशोरी, वर्षा अपने गांव के स्व-सहायता समूह में शामिल होना चाहती थी। उनके पति ने उन्हें शामिल होने से रोक दिया। वह बताती हैं – “मेरे पति यह नहीं समझ पाए कि समूहों का गठन किया क्यों जा रहा था। उन्हें लगा कि यह कुछ गलत है और इसका फैसला लेने की आजादी मुझे नहीं दी जानी चाहिए।”
प्रिया को आठवीं कक्षा से आगे की पढ़ाई जारी रखने नहीं दी गई, क्योंकि उसके परिवार को लगता था कि लड़कियों के लिए अकेले गाँव से बाहर जाना सुरक्षित नहीं है। खाकनगर तहसील के अमुल्लाखुर्द गाँव में वर्षा और प्रिया जैसे बहुत से मामले हैं।
आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम (इंडिया) की एक सामुदायिक श्रोत व्यक्ति, ललिताबाई याद करती हैं कि कैसे महिलाओं ने एकजुट होकर, वर्षा के पति को उसे स्व-सहायता समूह की सदस्य बनने की इजाजत देने के लिए समझाने की कोशिश की थी, हालांकि वह उन्हें गलियां दे रहा था।
अमुल्लाखुर्द की महिलाओं को एक साथ लाने, उन्हें और उनके परिवारों को समझाने और स्व-सहायता समूह (एसएचजी) बनाने में लंबा समय लगा। जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, महिला सदस्य धीरे-धीरे आर्थिक आजादी और सामाजिक दायित्वों के प्रति नए कौशल से सशक्त हो रही हैं।
आजीविका का नया विकल्प
क्योंकि अमुल्लाखुर्द की वर्षा और प्रिया जैसी महिलाओं पर घर की जिम्मेदारी थी, इसलिए उनके पास पति की आमदनी में योगदान करने के लिए, पैसे कमाने का कोई तरीका नहीं था। आर्थिक पिछड़ेपन ने हालात और बिगाड़ दिए थे और महिलाओं को तनावग्रस्त कर दिया, क्योंकि कइयों को खाने की जरूरी चीजें खरीदने के लिए उधार लेना पड़ा था।
महिलाओं को आय-सृजन के लिए किसी विकल्प की जरूरत महसूस हो रही थी। पड़ोसी गाँव, नवरा के समूह के साथ हाथ मिलाकर, महिलाओं ने सिलाई मशीनें खरीदीं और एक प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया, ताकि महिलाएँ सिलाई सीख सकें। प्रशिक्षण केंद्र पंचायत कार्यालय में स्थित है।
केंद्र में नवरा और अमुल्लाखुर्द के समूहों की सदस्य प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं। स्व-सहायता समूह के माध्यम से शुरू की गई बचत और पशुपालन के काम के साथ-साथ, सिलाई से उन्हें उतना कमाने में मदद मिल जाती है, कि उन्हें अब भोजन खरीदने के लिए कर्ज़ नहीं लेना पड़ेगा। यहाँ तक कि कुछ अब अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी खुद उठा रही हैं।
स्वास्थ्य सुविधा
इन गांवों को जाने वाली सड़कों की हालत ख़राब है, जिस कारण रोजाना के आवागमन में दिक्कत होती है। सार्वजनिक परिवहन सेवाएं बहुत सीमित हैं| गांवों तक आने या उससे होकर गुजरने वाली कोई नियमित बस नहीं है। मानसून के दौरान हालात बदतर हो जाते हैं, क्योंकि सड़कों में बारिश का पानी इकठ्ठा हो जाता है और गांवों तक पहुंचने का रास्ता बंद कर देता है। आमतौर पर पानी उस पुल के ऊपर से बहता है, जिसे पार करके गांवों तक पहुंचा जाता है।
इन हालात में ग्रामवासियों को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचने में दिक्कत का सामना करना पड़ता था। समूह की सदस्यों में से एक, मन्दा ने बताया – “पांच किलोमीटर दूर, हैदरपुर गांव में एक अस्पताल है, लेकिन उसमें कोई कर्मचारी नहीं होता था। ग्रामवासियों को घरेलु ईलाज पर निर्भर रहना पड़ता था। प्रसव या आपात स्थिति में हमें तहसील जाना था।”
तहसील अस्पताल हालाँकि 20 किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन सड़कों की हालत खराब होने के कारण, ग्रामवासियों को वहां पहुँचने के लिए 45 मिनट से अधिक समय लगता था। स्व-सहायता समूह की महिलाएं बार-बार अधिकारियों से मिलीं। उनकी कोशिशों के परिणामस्वरूप, हैदरपुर गांव के अस्पताल में सुविधाओं और कर्मचारियों की ठीक से व्यवस्था कर दी गई है।
सामुदायिक कल्याण
अमुल्लाखुर्द गांव में चालू हालत में तीन हैंड पंप थे, जो 1,400 की आबादी वाले पूरे गांव की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं थे। महिलाओं ने इस मुद्दे को सुलझाने का फैसला किया, क्योंकि उनकी आजीविका को बनाए रखने के लिए पानी की जरूरत थी।
सुनीता याद करती हैं – “एक ऐसा समय आया, जब सिर्फ दो हैंडपंपों से पानी आता था, लेकिन पानी निकालने के लिए कोई भी अपनी बारी का इंतजार नहीं करता था। इस तरह जो पहले पानी निकालते थे, उन्हें ज्यादा पानी मिलता था, और हमें कम पानी से काम चलाना पड़ता था या लम्बे समय तक हैंडपंप के नीचे दोबारा पानी इकठ्ठा होने का इंतजार करना पड़ता था।”
महिलाओं ने पंचायत के सामने यह मुद्दा रखा। जब पंचायत ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उन्होंने उच्च अधिकारियों से इसकी शिकायत की। उसके बाद, अपनी दुर्दशा प्रदर्शित करने के लिए, उन्होंने खाली बर्तनों के साथ एक जलूस निकाला। स्व-सहायता समूह की सदस्यों में से एक, नंदा ने बताया – “हमें दूसरे गांवों के मुकाबले ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा। खाना पकाने से लेकर, अपने पशुओं के लिए पानी पानी लाने तक, यह एक बेहद मूलभूत जरूरत है, जिसका समाधान हमने ढूंढ लिया है।”
अधिकारियों के पास इस मुद्दे को उठाने की, महिलाओं की पहल के परिणाम दिखाने के लिए, आज नौ हैंड पंप हैं। पंचायत ने एक बोरवेल पर मोटर लगा दी है। दो खुले कुएँ, जिनका इस्तेमाल ठीक से नहीं हो रहा था, उन्हें भी अब ठीक कर लिया गया है।
पलक गोसाई विलेज स्क्वायर (Village Square) का प्रबंधन करती हैं और पुणे के विकास अण्वेश फाउंडेशन में एक शोधकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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