महिलाओं को शिक्षा पूरी करने का मिला दूसरा मौका

चित्तौड़गढ़ और बारां, राजस्थान

स्कूल पहुंच से बाहर होने और जल्दी शादी के कारण, जिन लड़कियों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी, उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए एक कार्यक्रम में दाखिला लिया

चित्तौड़गढ़ जिले के बिलिया गाँव की रहने वाली, 35 वर्षीय उदी बाई अपनी दसवीं कक्षा की परीक्षा देने के लिए उत्साहित थी। शादी हो जाने के कारण, 23 साल पहले उसे स्कूल छोड़ना पड़ा था। उसके दो बच्चे हैं । उसका परिवार खेतीबाड़ी  करता है।

ममता सोलंकी (24) और उसकी विधवा मां मीना कंवर (43), बारां जिले के किशनगंज गांव की निवासी हैं। उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (NIOS) के अंतर्गत, दसवीं कक्षा की परीक्षा के लिए अपना नामांकन भरा है।

उदी बाई और सोलंकी उन सैकड़ों महिलाओं में से हैं, जिन्हें उनके हालात के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा था। अब उन्होंने एक शिक्षा कार्यक्रम में दाखिला लिया है, ताकि वे अपनी मैट्रिक की पढ़ाई और परीक्षा पूरी कर सकें।

महिला साक्षरता

शिक्षा के मामले में भारत 128 देशों में से, 105 वें स्थान पर है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, साक्षरता दर 2001 में 64% से बढ़कर 2011 में 74.04% हो जाने के बावजूद, देश भर में शिक्षा और रोजगार के ज्यादातर सूचकों में महिलाएं पीछे हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% थी। राजस्थान की महिला साक्षरता दर 52.12 थी, जो देशभर में सबसे कम है। राजस्थान का लिंग-अनुपात भी असंतुलित है।

मीना कंवर और उनकी बेटी ममता सोलंकी, ग्रामवासियों द्वारा उन्हें चिढ़ाए जाने की परवाह किए बिना, कई सालों के बाद पढ़ाई कर रही हैं (फोटो – मंजरी फाउंडेशन के सौजन्य से)

राजस्थान की ग्रामीण साक्षरता दर, 2011 की जनगणना के अनुसार 61.44% थी, जिसमें ग्रामीण पुरुषों की दर 76.16% और ग्रामीण महिलाओं की दर 45.8% थी। शहरी पुरुषों की साक्षरता दर 87.91% और शहरी महिलाओं की दर 70.73% थी।

स्कूल छोड़ने वाले

संयुक्त राष्ट्र ‘वीमेन’ के सहयोग से, ‘सेकंड चांस’ (दूसरा मौका) शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत, बारां, चित्तौड़गढ़ और जैसलमेर जिलों में किए गए एक नवीनतम बेस-लाइन अध्ययन के अनुसार, प्राथमिक विद्यालय स्तर पर 7.06%, उच्च प्राथमिक स्तर पर 5.17% और उच्च शिक्षा के दौरान 15.25% लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ी।

स्कूलों तक पहुँच का अभाव, गरीबी, माता-पिता की अशिक्षा, जल्दी शादी और घर की जिम्मेदारियां कुछ ऐसे कारण हैं, जो युवा लड़कियों को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं। अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समुदायों की छात्राओं की पढ़ाई छोड़ने की दर, कार्यक्रम के सभी जिलों में अधिक है।

राजस्थान में ग्रामीण समुदायों में अब भी यह धारणा है, कि लड़कियों की शादी 18-19 वर्ष की आयु तक हो जानी चाहिए। राजस्थान में, 2011 की जनगणना के अनुसार, 4% लड़कियों की शादी 10 साल की उम्र में, 20% की 10 से 15 के बीच और 63% की शादी 16 से 18 साल के बीच होती है, जो कि राष्ट्रीय औसत की तुलना में बहुत अधिक है।

स्कूल को वापसी

दो बच्चों की माँ, विधवा मीना कंवर, मिड-डे मील केंद्र में खाना पकाने का काम करती हैं, जिसके लिए उन्हें 2,000 रुपये महीना मिलता है। मीना सातवीं कक्षा से आगे अपनी शिक्षा जारी नहीं रख सकीं। अब कंवर और उनकी बेटी ममता सोलंकी ने ग्रामवासियों के मजाक उड़ाने की परवाह किये बिना, छात्रों के रूप में दाखिला लिया है।

प्रमिला करमाकर (24), जिन्होंने तब स्कूल छोड़ा था, जब वह पांचवीं कक्षा में थी, ने अब दसवीं कक्षा में दाखिला लिया है। वह 5,000 रुपये महीना वेतन पर एक नौकरानी के रूप में काम करती है, और अपनी विधवा माँ की देखभाल करती है।

बेहतर भविष्य की प्रेरणा, प्रमिला करमाकर जैसी युवा महिलाओं को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए उत्साहित करती है (फोटो – मंजरी फाउंडेशन के सौजन्य से)

कंवर, सोलंकी और करमाकर की तरह, सात महीने में, 919 युवा महिलाओं और लड़कियों ने अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए दाखिला लिया है। जिन्होंने दाखिला लिया है, उनमें अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति वर्ग की महिलाओं का बहुमत हैं।

शिक्षा से दूर रहने का यह अंतराल दो साल से लेकर 23 साल तक होता है। कार्यक्रम के कार्यान्वयन की एक भागीदार, मंजरी फाउंडेशन के नामांकन और एनआईओएस (NIOS) के पंजीकरण आंकड़ों के अनुसार, जो 3 से 5 साल के अंतराल के बाद फिर से शुरू करती हैं, उनकी भरपाई सबसे अधिक होती है, जिनकी संख्या 28.51% है।

सेकंड चांस (दूसरा मौका)

सेकंड चांस एजुकेशन (SCE) और व्यावसायिक शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत के साथ महिलाओं का दाखिला शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य युवा लड़कियों और महिलाओं सशक्तिकरण और उन्हें शिक्षा प्रणाली से पुन: जोड़ना है।

SCE परियोजना चार राज्यों, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान के चुने हुए क्षेत्रों में कार्यान्वित की जा रही है। यूनाइटेड नेशन वीमेन (इंडिया) SCE कार्यक्रम की फंडिंग पार्टनर है। स्वैच्छिक संस्थाएं इसे कार्यान्वित करने में पार्टनर हैं।

परियोजना कार्य योजना के अनुसार, NIOS और दूसरे उपलब्ध तरीकों से महिलाओं का नामांकन शुरुआती बिंदु है, ताकि महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। खुले शिक्षा मंच (ओपन एजुकेशन प्लेटफार्म), ऑनलाइन पाठ्यक्रम, आवश्यकता के आधार पर क्षतिपूर्ति (रेमेडियल) कक्षाओं आदि की पहचान उसके बाद की गतिविधियां हैं।

प्रेरणा

दाखिले के बाद जब अध्ययन किट मिली, तो प्रमिला करमाकर भावुक हो गई। उसने कहा कि बेहतर भविष्य के लिए पढ़ाई की प्रेरणा उसे उत्साहित करती है। उसे आशा है कि वह सफल होगी। अपनी दोस्तों को देखकर, 16 साल की मुस्कान ने भी दाखिला लिया।

जिन महिलाओं ने अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए दाखिला लिया है, उन्हें आशा है कि वे आत्मविश्वासी और कुशल बनेंगी (फोटो – मंजरी फाउंडेशन के सौजन्य से)

जैसा कि आंकड़ों से जाहिर है, महिलाएं अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए उत्सुक हैं। लेकिन सरकार और अन्य हितधारकों द्वारा अधिक सकारात्मक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। शिक्षण गुणवत्ता से समझौता, उच्च विद्यालयों और महाविद्यालयों तक पहुंच सीमित होना, शीघ्र विवाह और शिक्षा प्राप्त करने का सामर्थ्य, ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है। उपयुक्त समय का निर्धारण और आर्थिक बाधाओं को दूर करने से भी महिलाओं को मदद मिलेगी।

जागरूकता अभियान और अभिभावकों के साथ बैठकों के माध्यम से, स्कूल छोड़ने वाली महिलाओं और लड़कियों को जुटाया गया| वे अपनी शिक्षा जारी रखने की इच्छुक थी और मैट्रिक पास के रूप में पहचानी जाना चाहती थी।

महिलाओं का मानना ​​है कि वे नए कौशल सीख पाएंगी। महिलाओं ने कहा कि शिक्षित होने के साथ, वे घर में और साथ ही समुदाय में, निर्णय प्रक्रिया में भाग लेने में सक्षम होंगी। उन्होंने कहा कि वे नौकरी कर सकती हैं। उन्हें विश्वास ​​है कि शिक्षा उन्हें आत्मविश्वासी और साहसी बनाती है।

नरेश नैन मंजरी फाउंडेशन में कार्यक्रम निदेशक हैं, और उदयपुर में स्थित हैं। वैगनिंगन विश्वविद्यालय, नीदरलैंड में विकास-अध्ययन पूरा करने के बाद, विकास क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।