सामाजिक संबंधों की मजबूती के लिए और बुजुर्गों को स्वास्थ्य कार्ड के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच प्रदान करने वाले, किसी भी प्रयास की सफलता बुजुर्गों की प्रभावी देखभाल का रास्ता दिखाती है
वर्ष 2050 तक, भारत में वरिष्ठ नागरिकों की आबादी लगभग 30
करोड़ हो जाएगी, जो कुल आबादी का 20% हिस्सा होगा। भारत में आज लगभग 13 करोड़ लोग 60
वर्ष से अधिक आयु के हैं। उनमें से बहुतों को भावनात्मक देखभाल,
दुर्व्यवहार से सुरक्षा और चिकित्सा देखभाल की जरूरत है।
बढ़ती उम्र की आबादी, आज भारत की जनसँख्या सम्बन्धी सबसे विशेष घटनाओं में
से एक है। वर्तमान में, भारत में बुजुर्गों की पूरी देखभाल
की मुख्य भूमिका परिवार की ही है, और यही विवादों का एक
मुख्य कारण भी है। प्रमाणित सबूतों से पता चलता है कि आमतौर समाज को, और विशेष रूप से सरकार को, बुजुर्गों की शिकायतों के
शीघ्र निवारण के लिए कदम उठाना पड़ता है।
बुजुर्गों
की अपेक्षाएं
टाटा ट्रस्ट्स – सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरु के एक कार्यक्रम के हिस्से के अंतर्गत,
2018- 19 में मेदक, चंद्रपुर और यादगीर जिलों
के ग्रामीण क्षेत्रों में किए गए एक आधारभूत सर्वेक्षण के अनुसार, 60 साल से अधिक आयु के बुजुर्गों में संभावित अवसाद (डिप्रेशन) और उच्च
रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) या मधुमेह (डायबिटीज) बहुत अधिक है। निरक्षरता और आर्थिक
निर्भरता की दर ऊँची है।
एकल बुजुर्ग महिलाएं, पुरुषों की तुलना में अधिक असुरक्षित प्रतीत हुई।
टाटा ट्रस्ट्स और सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट, पुणे द्वारा 2018
की शुरुआत में किए गए एक बेसलाइन सर्वेक्षण के अनुसार, शहरी कार्य क्षेत्र भुवनेश्वर में, अवसर मिलने पर एक
तिहाई से अधिक बुजुर्ग काम करने के इच्छुक थे। सर्वेक्षण में शामिल 35% बुजुर्गों के पास उत्पादक कार्य के लिए कुछ न कुछ कौशल था।
सर्वेक्षण में शामिल तीन चौथाई से अधिक
बुजुर्ग, अपने इलाके में एक
बहु-गतिविधि केंद्र के लिए इच्छुक थे। लगभग 50% जवाब देने
वाले, अपने कौशल में सुधार के लिए, गतिविधि
केंद्र में दोबारा प्रशिक्षण पाने के लिए तैयार थे। यह दर्शाता है कि शहरी इलाकों
में बुजुर्ग, स्वतंत्र और गरिमापूर्ण जीवन जीने के अवसर
तलाशने के इच्छुक हैं।
ग्रामीण
स्वास्थ्य देखभाल
भारत में लगभग 70% बुजुर्ग ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। स्वास्थ्य
सेवाओं का एक केंद्रित दृष्टिकोण, गांवों के बुजुर्गों की
तत्काल जरूरतों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्गों की स्वास्थ्य
संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए, केंद्र सरकार की एक
योजना, बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय
कार्यक्रम (NPHCE) बनाया गया है।
अक्टूबर 2017 में, टाटा ट्रस्ट्स ने ग्रामीण और शहरी इलाकों में,
बुजुर्गों की जरूरतों को पूरा करने की एक अवधारणा को प्रमाणित करने
के लिए एक कार्यक्रम बनाया| इसके अलावा, इसने दो क्षेत्रों को चुना, जो बुजुर्गों के लिए
समग्र वातावरण को प्रभावित कर सकते हैं।
बुजुर्गों के लिए प्राथमिक स्तर की
स्वास्थ्य देखभाल के महत्व पर ध्यान वापस लाने के लिए, टाटा ट्रस्ट्स ने महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले,
कर्नाटक के यादगीर और तेलंगाना के मेडक जिले में, राज्य सरकारों के बुजुर्ग देखभाल कार्यक्रमों का सहयोग किया।
इन जिलों में, बुजुर्गों में गैर-संक्रमण रोगों का जल्द पता लगाने,
स्वास्थ्य के मुद्दों पर जागरूकता फैलाने, और
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) स्तर पर प्रशिक्षित चिकित्सा अधिकारियों
द्वारा, वृद्धों के लिए समर्पित साप्ताहिक क्लीनिक के माध्यम
से इन बीमारियों के इलाज में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया गया था। सार्वजनिक
स्वास्थ्य कर्मचारियों के क्षमता निर्माण, कार्यक्रम का एक
महत्वपूर्ण हिस्सा है।
हेल्थ कार्ड
NPHCE के सहयोग के लिए बने
ग्रामीण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, गांवों के बुजुर्ग
सदस्यों के लिए एक विस्तृत हेल्थ कार्ड जारी किया गया था। कार्ड में बुजुर्गों के
रोग का ब्यौरा, ब्लड-शुगर, ब्लड प्रेशर
रीडिंग और दवाओं के विवरण के साथ-साथ, एक अवधि का मेडिकल और
सर्जिकल इतिहास शामिल हैं।
विस्तृत हेल्थ-कार्ड, सामुदायिक चिकित्सा विभाग, सेंट
जॉन मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरु और राज्य एवं केंद्र सरकार के
स्वास्थ्य विभागों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया था।
बुजुर्ग लाभार्थियों में से एक ने बताया – “मुझे खुशी है कि मैंने नाम दर्ज कराया और
उन्होंने मुझे यह कार्ड दिया, जिससे जांच कराना और दवा मिलना
जल्दी और आसान हो गया। मुझे इंतजार नहीं करना पड़ता और यह कार्ड दिखाने पर वे हमसे
चेकअप के लिए पैसे भी नहीं लेते हैं।”’
लॉकडाउन की शुरुआत से, हेल्थ कार्ड बुजुर्गों के लिए आशा की किरण बन गए।
उन्होंने बताया कि या तो वे वृद्धावस्था आउट-पेशेंट विभाग में निर्धारित दिन आते
थे या उनके परिवार का कोई भी सदस्य कार्ड दिखाकर जरूरी दवाएं ले लेता था।
गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं वाले और जो यात्रा
नहीं कर सकते, ऐसे लोगों के लिए PHC
कर्मचारी बिना किसी शुल्क के दवाइयाँ उनके घर पहुँचाते हैं। इसके
अलावा, पंचायत की मदद से, किराने के
सामान और पेंशन जैसी दूसरी जरूरी चीजें भी बुजुर्गों को उनके घर पर उपलब्ध कराई जा
रही हैं।
गतिविधि
केंद्र
बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल में
सामुदायिक भागीदारी बहुत जरूरी है। सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं
द्वारा चलाए जा रहे ग्राम गतिविधि केंद्र, पंचायत और ग्राम
स्वयंसेवकों के सहयोग से, इस जागरूकता के लिए महत्वपूर्ण
भूमिका निभा सकते हैं। केंद्र बुजुर्गों को सक्रिय होने और विभिन्न सामाजिक
गतिविधियों का आनंद लेने के लिए एक अवसर प्रदान करते हैं।
यह उनके जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार
करने में मदद करता है। पंचायत, सामुदायिक हॉल, या स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र के स्थान का इस्तेमाल करके, कार्यक्षेत्र के जिलों में इस तरह के 67 केंद्र
स्थापित किए गए, जिनमें से 52 महाराष्ट्र
में, 12 तेलंगाना में और तीन कर्नाटक हैं। केंद्र सप्ताह में
3-4 दिन, रोज 2-3 घंटे के लिए खुलते हैं और इन्हें स्वयंसेवक या आशा कार्यकर्ता चलाते हैं।
एक गतिविधि केंद्र में एक बुजुर्ग व्यक्ति
ने बताया – “यहाँ आने से मुझे दोस्तों
के साथ गपशप करने और अन्य लोगों से मिलने का मौका मिलता है, घर
पर रहने से मुझे निराशा महसूस होती है। केंद्र में मैं प्रार्थना और व्यायाम जैसी
विभिन्न गतिविधियों में भाग लेता हूं। इससे ताजगी का अहसास होता है और मूड हल्का
होता है।”
क्षमता और
बुनियादी ढांचे में सुधार
जारी महामारी के चलते, सामाजिक दूरी, सीमित घूमना
फिरना, अलगाव, ग्रामीण क्षेत्रों में
बेरोजगारी, आदि ने बुजुर्गों को न सिर्फ स्वास्थ्य के लिहाज
से, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी प्रभावित किया है। उन्हें
अपनी सामान्य दिनचर्या में अधिक विनम्र सहारे की जरूरत होती है।
मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, उन्हें बुजुर्गों के अनुकूल बनाने की प्रक्रिया,
सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मचारियों के क्षमता निर्माण, दवाओं की नियमित आपूर्ति और बुजुर्गों को केंद्र तक लाने के लिए परिवहन
सुविधा में सुधार की गुंजाइश है। इन सब के लिए धन की भी जरूरत है।
राज्य के स्वास्थ्य विभागों की मदद से, निजी और परोपकारी संगठनों को, प्राथमिक
वृद्धावस्था स्वास्थ्य सेवा से निचले स्तर पर देखभाल तक, संस्थागत
क्षमतावर्द्धन और समुदाय में बुजुर्गों के मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करने
के लिए कदम उठाने की जरूरत है ।
शहरी
बहु-गतिविधि केंद्र
सबसे आम मुद्दों में से एक है बुजुर्गों
द्वारा अकेलेपन का सामना करना। शहरी क्षेत्रों में बुजुर्ग आबादी की शुभ और स्वस्थ
आयु वृद्धि को शहरों में बहु-गतिविधि केंद्रों के माध्यम से सुनिश्चित किया जा
सकता है, गांवों के गतिविधि केंद्र
की तरह।
इन स्थानों पर योग, साधना, स्वास्थ्य जांच, अंतर-पीढ़ी संबंध और दूसरी भागीदारी पूर्ण गतिविधियों का आयोजन किया जा
सकता है। बहु-गतिविधि केंद्र एक ऐसी जगह बनने की क्षमता रखते हैं, जहां बुजुर्ग एक-दूसरे से मिल सकते हैं, और इकट्ठे
होकर अपनी राय, भावनाओं और जज्बात को एक दूसरे से बाँट सकते
हैं और इस तरह खुश और तनाव मुक्त हो सकते हैं।
हस्तक्षेप के अंतर्गत, ऐसे बहु-गतिविधि केंद्र हैदराबाद में मौजूद हैं,
जहाँ बुजुर्ग अपने आप से पुनर्मिलन (rediscover) का भाव प्राप्त कर रहे हैं। कुछ ने अपने जीवन में पहली बार चित्रकारी और
पेंटिंग की और यह जानकर हैरान रह गए कि वे इसे इतनी आसानी से कर सकते हैं। दूसरों
ने अपने नृत्य करने और योग टीचर बनने का सपना पूरा किया, वगैरह।
लॉकडाउन के समय, गतिविधियों के नाम पर, अपने या
परिवार के किसी सदस्य के स्मार्ट फोन का उपयोग करना रह गया था। बुजुर्गों के लिए
स्थान के प्रति दृष्टिकोण ने, उनके समग्र कल्याण में
गुणात्मक बदलाव का प्रदर्शन किया है। शहर की योजनाओं में हर वार्ड में, ऐसे स्थान स्थापित करने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय
हेल्पलाइन
तेलंगाना सरकार और टाटा ट्रस्ट्स के सहयोग
से विजयवाहिनी चैरिटेबल फाउंडेशन द्वारा स्थापित, 14567 हेल्पलाइन की तरह, भारत भर में वरिष्ठ नागरिकों के
लिए, ग्रामीण इलाकों सहित, एक समर्पित
हेल्पलाइन की जरूरत है।
एक संपर्क केंद्र और फील्ड टीम की मदद से, हेल्पलाइन बुजुर्गों के मुद्दों का निदान करती है और
बुजुर्गों की काउंसलिंग, बुजुर्गों की देखभाल से संबंधित
जानकारी प्रदान करने, कानूनी और पेंशन संबंधी मुद्दों पर
मार्गदर्शन, बेघर बुजुर्गों और दुर्व्यवहार से पीड़ितों के
लिए फील्ड स्तर का सहयोग, जैसी सेवाएं प्रदान करती है।
हेल्पलाइन में, सामने आ रही विभिन्न सेवाओं को जोड़ने, और हर कॉल को ट्रैक करने और सही समाधान प्रदान करने की बेहतरीन क्षमता है।
इससे प्राप्त ज्ञान और जानकारी, बुजुर्गों के लिए मौजूदा
कार्यों और योजनाओं में बदलाव और संशोधन करने का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।
सूचना मंच
बुजुर्गों के लिए विभिन्न मंचों के अलावा, एक डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करने की जरूरत है,
जो इस्तेमाल करने में आसान और विश्वसनीय हो, और
जिसे केवल बुजुर्ग और उनके देखभाल करने वाले उपयोग कर सकें। डिजिटल तकनीकों के आने
से, यह मंच खुशहाल उम्र-वृद्धि से संबंधित सभी सूचनाओं के
एकमात्र श्रोत के रूप में उभरेगा।
COVID -19 के काल में या
किसी भी अप्रत्याशित महामारी जैसी स्थितियों में, डिजिटल मंच
का उपयोग अप्रत्यक्ष (वर्चुअल) गतिविधियों के लिए किया जा सकता है – जिससे
मेलमिलाप की नई संभावनाएं पैदा होती हैं। सही प्रकार की सामग्री के साथ, और बुजुर्गों को डिजिटल संसार के करीब लाना, उन्हें
जुड़ने, भाग लेने और समाज का एक सक्रिय हिस्सा बनने में
सहायक होगा।
उम्र-वृद्धि के मुद्दों पर अधिक ध्यान देना और उम्र दराज होते समाज के
मुद्दों से निपटने के लिए अभिनव कार्यक्रम तैयार करना समय की जरूरत है। सार्वजनिक
एवं निजी संस्थानों और नागरिक समाज को बुजुर्गों के जरूरी मुद्दों के समाधान के
प्रयास में शामिल किया जाना चाहिए।
सुगन्धि बालिगा टाटा ट्रस्ट्स के जेरिएट्रिक
प्रोग्राम की प्रमुख हैं। उनका कॉर्पोरेट और विकास क्षेत्रों में दो दशकों से अधिक
का अनुभव है। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?