व्यापक रूप से परीक्षण, प्रभावितों का इलाज, और कुपोषण से मुक्ति के लिए भोजन सम्बन्धी आदतों के बारे में जागरूकता के कारण महिलाओं में एनीमिया के प्रसार में कमी और स्वास्थ्य में सुधार हुआ है
उत्तर बस्तर
कांकेर जिले के नरहरपुर प्रशासनिक ब्लॉक के मसुलपानी गाँव की, 22 वर्षीय गणिता कोमरा ने बताया – “मैं हमेशा इतनी थकी
हुई और कमजोर महसूस करती हूं। मुझसे न तो घर पर और न ही खेत में कोई काम हो पाता
है। मुझे बताया गया है कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि मेरे खून
में केवल 7 ग्राम हीमोग्लोबिन है।” वर्तमान में परिवार संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं की अनदेखी करते हैं,
जब तक कि वह बहुत गंभीर न हो जाए।
लालिमा एक ऐसी परियोजना है, जिसका उद्देश्य कुपोषण के एक प्रमुख सूचक, एनीमिया से निपटना है। इसका उद्देश्य एनीमिया के बारे में महिलाओं और
किशोरियों (14-49 वर्ष) को जागरूक बनाना है, जो जिले में बहुत गंभीर है और एनीमिया से गंभीर रूप से प्रभावित महिलाओं
और लड़कियों का तुरंत इलाज करना है।
महिलाओं में
कुपोषण
छत्तीसगढ़ में, विभिन्न सामाजिक और आर्थिक कारणों से किशोरियों,
महिलाओं और बच्चों में कुपोषण व्यापक रूप से पाया जाता है। एनीमिया,
जो रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी और कुपोषण के प्रमुख सूचकों में से
एक है, किशोर लड़कियों और महिलाओं में बहुत आम है।
छत्तीसगढ़ में, लगभग 40% ग्रामीण महिलाओं में
खून की कमी है। वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य
सर्वेक्षण-4 (NFHS-4) के अनुसार, उत्तर
बस्तर कांकेर जिले में इसका प्रसार बहुत ज्यादा है, और 67.7%
ग्रामीण लड़कियाँ और महिलाएँ एनीमिक हैं।
महिलाओं और लड़कियों को पता नहीं होता कि वे एनीमिक/बेहद एनीमिक हैं और यह उनकी थकान, मासिक धर्म संबंधी जटिलताएं, कमजोरी, आदि अनेक समस्याओं का कारण है। यह तब सामने आया, जब प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन (PRADAN) और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने विभिन्न अवसरों पर महिलाओं और किशोरियों के साथ बातचीत की।
जागरुकता की
कमी
यह पाया गया कि 20% से भी कम गैर-गर्भवती महिलाओं को उनके हीमोग्लोबिन
(एचबी) स्तर के बारे में पता था और बाकियों को इसके बारे में कुछ पता नहीं था। कुछ
ने कहा कि जब उन्हें गंभीर समस्या हुई, तो उन्होंने
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में परीक्षण कराया। उन्होंने बिना कारण समझे डॉक्टर
द्वारा बताई गई दवाई ले ली।
एक आंगनवाड़ी सुपरवाइजर, पोया कहती हैं – “हमारे गांव
में, गर्भवती महिलाओं को छोड़कर, ज्यादातर
महिलाएँ और लड़कियाँ हीमोग्लोबिन जाँच और इसके महत्व के बारे में नहीं जानती।
कमजोरी या मासिक धर्म जैसी समस्या के लक्षणों के लिए वे शायद ही कभी डॉक्टरों से
मिलती हैं।”
पोया ने बताया – “यहाँ न तो परिवार और न ही महिलाएँ किसी महिला के
स्वास्थ्य और भलाई को महत्वपूर्ण समझती हैं। इसके अलावा जाँच के लिए गांव में
सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। महिलाएं इस तरह की स्वास्थ्य स्थिति को अपना भाग्य
मानकर हालात को स्वीकार कर लेती हैं और उसके अनुसार ढल जाती हैं।”
केंद्र सरकार के एक पोषण कार्यक्रम, ‘पोषण अभियान’ के अंतर्गत,
नरहरपुर ब्लॉक में, महिलाओं के समूह की
सदस्यों से बात करते हुए, 15 महिलाओं और किशोरियों में से
केवल पांच को अपने हीमोग्लोबिन की मात्रा के बारे में जानकारी थी। उनका अधिकतम
हीमोग्लोबिन 10 ग्राम था और बाकि का 7 से
10 ग्राम के बीच था। बीस गांवों की प्रतिभागियों में से केवल
नौ महिलाएं ऐसी थीं जिनका 12 ग्राम या उससे अधिक था।
बैठकों के दौरान यह पता चला कि जिन महिलाओं
को समस्या हुई और उन की जाँच की गई, तो उनका हीमोग्लोबिन 7
ग्राम से कम पाया गया। इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रही महिलाओं
में से ज्यादातर को अपने हीमोग्लोबिन स्तर का पता नहीं था, क्योंकि
उनका परीक्षण नहीं हुआ था। प्रत्येक किशोरी और महिला का हीमोग्लोबिन जाँच बहुत
महत्वपूर्ण लग रहा था।
योजनाओं के
बीच अंतर
बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए, सरकार की योजनाएं हैं, जैसे कि
नियमित जाँच, पूरक आहार, एकीकृत बाल
विकास सेवाएं (ICDS), गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए
पोषण पुनर्वास केंद्र और फुलवारी योजना, जिनके अंतर्गत तीन
वर्ष से कम उम्र के बच्चों और उनकी माताओं को गर्म भोजन दिया जाता है। लेकिन सबसे
कमजोर, किशोर लड़कियों और दूसरी महिलाओं को छोड़ दिया गया है।
प्रदान ने, नाहरपुर ब्लॉक की 14 से 49 वर्ष
आयु वर्ग की प्रत्येक महिला की हीमोग्लोबिन जाँच करके और इस स्थिति को सुधारने के
लिए उन्हें संवेदनशील बनाकर, इस मुद्दे को उजागर करने का
निर्णय लिया। एक नागरिक समाज संगठन के लिए उस पैमाने तक पहुंचना मुश्किल था।
लालिमा
परियोजना
जिला प्रशासन, एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट फेलो और स्वास्थ्य विभाग के
साथ इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के बाद, जिले में इसका डिजाइन
और कार्यान्वयन किया गया। इसके बाद प्रथम चरण में, मई 2019
में, उत्तर बस्तर कांकेर जिले के नरहरपुर और
भानुप्रतापपुर खण्डों में, ‘लालिमा-लोहा ले एनीमिया से’
परियोजना शुरू की गई।
ज्ञान-भागीदारों ने कुपोषण, विशेष रूप से एनीमिया के बारे में, समुदाय के नेताओं और महिलाओं के समूहों की सदस्यों के अलावा, स्वास्थ्य विभाग और ICDS के कर्मचारियों को तकनीकी
प्रशिक्षण प्रदान किया। स्वास्थ्य विभाग ने महिलाओं का एनीमिया और सिकल सेल
एनीमिया के लिए परीक्षण किया और प्रभावितों का इलाज किया गया।
परीक्षण प्रक्रिया के दौरान, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, शशिकला
मरकम ने कहा – “हम पिछले एक हफ्ते से हीमोग्लोबिन
परीक्षण कर रहे हैं| मुझे बुरा लग रहा है, कि 10 में से सात महिलाएं एनीमिक हैं।”
परीक्षण के नतीजों से समस्या की व्यापकता
का पता चला और प्रशासन ने उत्तर बस्तर कांकेर जिले के सभी सात प्रशासनिक खण्डों
में परियोजना को लागू करने का फैसला ले लिया।
जिले में किए गए 1,44,372 परीक्षणों में से 77,238 एनीमिक पाई गई, जिनमें हीमोग्लोबिन 7 से 10 ग्राम था; और 7 ग्राम से भी कम के साथ, 8,513 गंभीर रूप से एनीमिक
पाई गई। गंभीर रूप से एनेमिक महिलाओं को आयरन-सुक्रोज इंजेक्शन और परामर्श प्रदान
किया गया।
सफल
हस्तक्षेप
बॉडी मास इंडेक्स (BMI) और मध्य-ऊपरी बाजु परिधि (MUAC) परीक्षणों के अलावा, एक व्यवहार में टिकाऊ बदलाव
लाने के लिए, विभिन्न एजेंसियों द्वारा भोजन की आदतों और
पोषण के बारे में प्रशिक्षण और स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) और ग्राम संगठन (वीओ)
के स्तर पर किचन गार्डन का प्रचार-प्रसार किया गया।
एक ग्राम संगठन की सदस्य, कचरी नेताम ने बताया – “तीन
साल पहले, हमारी एसएचजी या वीओ की बैठकों में स्वास्थ्य
संबंधी मुद्दों पर चर्चा नहीं की जाती थी। अब हमने अपनी बैठकों में इस पर चर्चा
शुरू कर दी है, क्योंकि हम महिलाओं के स्वास्थ्य के महत्व को
समझते हैं।”
जाँच के एक वर्ष के बाद, गंभीर रूप से एनीमिक 8,513 महिलाओं के लिए, जून 2020 में, दोबारा जाँच किया गया। एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ था – जिले में
केवल 841 महिलाएं गंभीर रूप से एनीमिक पाई
गई। पूरे इलाज और आगे सुधार के लिए, उनके साथ काम जारी है।
मोहिनी साहा PRADAN
के साथ एक डेवलपमेंट प्रोफेशनल के रूप में काम करती हैं। उन्होंने
विकास प्रबंधन में विशेषज्ञता प्राप्त की है। विचार व्यक्तिगत हैं।
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