जंगलों के कारण अलग हुए दूरदराज के गांवों, जिन्हें जोड़ने वाली सड़कें भी नहीं हैं, से अस्पतालों तक पहुँचना मुश्किल होता है। पहुँच की इस कमी को पाटते हुए, बाइक-एम्बुलेंस मरीजों को आपातकालीन चिकित्सा सुविधा प्रदान करती है
झारखंड
स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहा,
एक नया और अपेक्षाकृत गरीब राज्य है। उदाहरण के लिए, नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System-SRS) – 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, झारखण्ड में मातृ मृत्यु दर (MMR)
130 की राष्ट्रीय औसत के मुकाबले, 165 थी।
सार्वजनिक
स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे और मानव संसाधन की कमी भी चिंता का एक कारण है, खासतौर पर
ग्रामीण इलाकों में। राज्य में जहां 1,684 प्राथमिक
स्वास्थ्य केंद्र (PHCs) होने चाहिएं, वहां
केवल 330 हैं, और शीर्ष विशेषज्ञ
संस्थानों के प्रतिनिधित्व के रूप में सिर्फ तीन मेडिकल कॉलेज हैं।
राष्ट्रीय
दस्तावेजों के अनुसार,
2019 में PHC के स्तर पर, स्वीकृत 667 डॉक्टरों के पदों में से 331 पद खाली थे। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में, स्वीकृत
700 विशेषज्ञ डॉक्टरों में से 634 के
पद खाली थे।
आबादी
दूर-दूर तक फैली हुई है और वन क्षेत्रों के द्वारा अलग है। कुछ गाँव दूरदराज स्थित
हैं, जिससे स्वास्थ्य कार्यों सहित, विकास गतिविधियों की
पहुँच प्रभावित होती है। कुछ क्षेत्र वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित हुए हैं।
विभिन्न
समस्याओं से निपटते समय,
राज्य और जिला प्रशासन किफायती तरीके आजमाते हैं। चतरा जिले में,
बाइक एम्बुलेंस का उपयोग, आपातकालीन चिकित्सा
देखभाल तक पहुँच की एक पहल है, जहां युवा अधिकारी बदलाव लाने
की कोशिश कर रहे हैं।
पहुँच से बाहर अस्पताल
राज्य की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, चतरा में ग्रामीण गरीबी अधिक है और खाद्य सुरक्षा से संबंधित चिंताएं हैं।
ऐसी परिस्थितियों में, जीवन बचाने और स्वास्थ्य व्यवस्था को
बेहतर बनाने का हर प्रयास महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य तक व्यक्तिगत पहुंच में सुधार
के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है, खासतौर से आपातकालीन
स्थिति में।
ब्लॉक
स्तर के कुल छह पीएचसी और छह अतिरिक्त पीएचसी हैं। वे सिफारिश आबादी के मुकाबले कम
से कम दोगुनी आबादी के लिए काम करती हैं। पीएचसी और जिला अस्पताल के बीच की दूरी 12 से 85
कि.मी. तक है, औसतन लगभग 40 कि.मी.। जहां पीएचसी में ग्रामीणों की प्राथमिक स्वास्थ्य सम्बन्धी
बीमारियों का ईलाज होता है, वहीं उनकी जटिल स्वास्थ्य
समस्याओं या आपात स्थिति के लिए जिला अस्पताल एकमात्र उम्मीद है।
अपर्याप्त एम्बुलेंस सेवाएं
सभी मौतें आपातकालीन घटनाएं नहीं हैं, लेकिन उनमें से एक बड़ी संख्या है, और इसलिए प्रभावी
एम्बुलेंस सेवाओं जैसी सुविधाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। एम्बुलेंस मरीजों के लिए
सिर्फ एक परिवहन सुविधा ही नहीं हैं, बल्कि जीवन-रक्षक
इकाइयाँ हैं।
एक आदर्श एम्बुलेंस में जीवन रक्षक दवाएं, उपकरण और वे कर्मचारी होने चाहिए, जो जान बचाने के
लिए उपकरणों को संभालना जानते हों या मरीज को तब तक स्थिर और आराम से रख सकते हों,
जब तक वे बेहतर चिकित्सा सुविधाओं वाले किसी स्थान पर नहीं पहुंच
जाते।
इसलिए, जीवन को बचाने के लिए चार बातें महत्वपूर्ण हैं – दवाओं और उपकरणों से लैस
विशिष्ट वाहन, आपातकालीन चिकित्सा में प्रशिक्षित व्यक्ति,
रोगी के ईलाज के लिए एक विशेषज्ञ अस्पताल, और
रोगी, ड्राइवर, चिकित्सा-कर्मी एवं
अस्पताल के बीच संचार सुविधा।
समय
के साथ-साथ उपलब्ध,
बहु-आयामी संचार व्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण घटक है। यह एम्बुलेंस का
मार्गदर्शन करेगा कि कहाँ जाना है और रोगी को कहाँ ले जाना है और अस्पताल में
डॉक्टरों को रोगी की हालत, शुरुआती कदम और आगे की ज़रूरतों
के बारे में भी सूचना का माध्यम रहेगा।
लम्बा
प्रतिक्रिया-समय
किसी एम्बुलेंस व्यवस्था की योग्यता मापने का एक मापदंड ‘प्रतिक्रिया समय’ (Response Time) होता
है। देश भर में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अंतर्गत संचालित 108 एम्बुलेंस सेवा का औसत प्रतिक्रिया समय 20 से 25
मिनट बताया गया है।
वास्तव
में, भारत में प्रतिक्रिया-समय बहुत ही अधिक ऊपर-नीचे होता है और इसका कोई
आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। प्रतिक्रिया समय जितना लंबा होगा, उतनी ही अधिक मृत्यु दर और अयोग्य होगी। ऊपर चर्चित मापदंडों में से,
किसी में भी थोड़ा सा सुधार, प्रतिक्रिया समय
को कम कर देगा और जिससे अधिक जीवन बच जाएंगे।
एम्बुलेंस सेवाओं की हमेशा ही बहुत जरूरत होती है। लोग जानते हैं कि
सार्वजानिक एम्बुलेंस का इंतजार न करके, यदि स्वयं ही विशेषज्ञ-अस्पताल तक पहुँच सकें, तो
उनके अवसर बेहतर होंगे, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में।
प्रतिक्रिया समय, इंतजार करने के लिए बहुत लंबा हो सकता है।
कभी-कभी सेवा उपलब्ध नहीं होती या संपर्क से बाहर होती है।
आपातकालीन परिवहन
इस समय चतरा जिले में, NHM के
अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा 10 एम्बुलेंस दी गई हैं,
जिन्हें ‘108’ एम्बुलेंस के रूप में जाना जाता
है। राज्य सरकार ने छह स्वास्थ्य ब्लॉकों में एक-एक एम्बुलेंस प्रदान की है|
स्वास्थ्य ब्लॉक, प्रशासनिक ब्लॉक से अलग है,
जिनकी संख्या 12 है। ज्यादा जरूरत वाले
स्थानों के लिए, जिला खनिज निधि न्यास (District
Mineral Fund Trust- DMFT) से दो नई एंबुलेंस खरीदी गई हैं।
विशेष रूप से मातृ और बाल स्वास्थ्य देखभाल सम्बन्धी परिवहन और संबद्ध
गतिविधियों के लिए, 110 कॉन्ट्रैक्ट पर लिए गए वाहन हैं।
‘ममता’ कहे जाने वाले ये वाहन एंबुलेंस नहीं
हैं। लेकिन मरीजों की भारी मांग को पूरा करने के लिए एंबुलेंस की संख्या काफी कम
है।
बाइक एंबुलेंस
इस अंतर को पाटने के लिए, जिला
प्रशासन को मोटरसाइकिल या बाइक एम्बुलेंस का विचार आया। इस पायलट कार्यक्रम के
अंतर्गत 12 बाइक एम्बुलेंस चल रही हैं। बाइक एम्बुलेंस का
विचार सबसे पहले ब्रिटिश युद्ध इंजीनियरों द्वारा प्रथम विश्व युद्ध में पेश किया
गया था।
भारत
में विभिन्न स्थानों पर,
दो-एक बाइक एम्बुलेंस कार्यक्रम चल रहे हैं। करीमुल हक को 2017
में, पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में
हजारों रोगियों को अपनी मोटरसाइकिल से अस्पताल पहुंचा कर मदद करने के लिए, पद्मश्री पुरस्कार मिला।
वर्तमान में
चतरा की दो पीएचसी के कार्यक्षेत्रों में एक-एक एम्बुलेंस काम कर रही है। बाइक
एम्बुलेंस का एक लाभ यह है कि यह उन अंदरूनी क्षेत्रों तक पहुंच सकती है, जहाँ चार पहिया वाहन नहीं पहुँच सकते। जिले का 60% क्षेत्र
वनों से ढका है और बहुत से गाँव सड़कों से नहीं जुड़े हैं।
बाइक
में एक स्ट्रेचर,
मेडिकल किट, ऑक्सीजन सिलेंडर, सेलाइन-बॉटल होल्डर, सायरन, रिफ्लेक्टर,
आदि हैं। स्थानीय स्वास्थ्य कर्मचारियों और पंचायत के पास ड्राइवरों
के नंबर हैं। जब जरूरत होती है, तो वे ड्राइवर से संपर्क
करते हैं, जो चिकित्सा अधिकारी के मातहत काम करता है। ड्राइवर
प्राथमिक उपचार में प्रशिक्षित स्थानीय युवा हैं।
सकारात्मक पहल
पूर्व-निर्धारित दिशा-निर्देश न होने के कारण, चतरा की इस पहल के लिए धन जुटाने के लिए, जटिल नौकरशाही प्रक्रियाओं से निपटना शामिल था। भारत के दूसरे हिस्सों में
हुए पिछले प्रयास, स्थानीय प्रशासन द्वारा किए गए थे,
जिन्हें अपर्याप्त संसाधनों और स्वतंत्रता की सीमाओं में काम करना
पड़ता है।
शुरुआती
थोक खरीद, ‘सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS)’ फंड के
द्वारा की गई। वर्तमान में, इस पहल को रोगी कल्याण समिति
कार्यक्रम और कुछ DMFT फंड के ब्याज से जुटाए धन पर चलाया जा
रहा है।
पहल
को अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से,
टीम लगातार आंकड़े और अनुभव एकत्र कर रही है। आधारभूत लाइफ-सपोर्ट
सुविधा से लैस चौपहिया एम्बुलेंस के 13 लाख रुपये और
एडवांस्ड लाइफ-सपोर्ट सुविधाओं के साथ 25 लाख रुपये के
मुकाबले, बाइक एंबुलेंस की कीमत लगभग 2.4 लाख रुपये है।
कुछ
मापदंड हैं, जिनपर दोनों की तुलना नहीं की जा सकती है। इसके बावजूद, जब धन की कमी हो और अंदरूनी इलाकों में सेवाएं प्रदान करने की जरूरत हो,
तो बाइक एम्बुलेंस उपयोगी दिखाई देती हैं। दोनो मॉडल के एक दूसरे के
पूरक के तौर पर काम करने के उदहारण भी हैं। शुरू करने के कुछ महीनों के भीतर,
पायलट कार्यक्रम चरण में ही, बाइक एम्बुलेंस
ने एक हजार से अधिक रोगियों की मदद की है।
समुदाय की महत्वपूर्ण जरूरतों की पूर्ती के लिए चलाए गए ऐसे पायलट
कार्यक्रमों में काफी संभावनाएं हैं। यदि यह सफल होता है, तो इसका मिलते-जुलते भौगोलिक क्षेत्रों में विस्तार किया
और दोहराया जा सकता है। यह असफल भी हो जाते हैं, तो भी इससे
जानकारी में वृद्धि ही होगी। हर हाल में, सार्वजनिक
स्वास्थ्य के इस उपेक्षित पहलू पर किया गया कोई भी प्रयास उपयोगी ही होगा।
अभिजीत जाधव, विकासअण्वेष फाउंडेशन, पुणे के साथ काम करते हैं।
पहले वह टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई में
फैकल्टी थे। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?