स्तन कैंसर के खतरे से अनजान हैं ग्रामीण महिलाएं
स्तन कैंसर को लेकर जानकारी का अभाव, भ्रांतियों, लज्जा और सामाजिक लांछन के कारण, विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं को जीवन गंवाना पड़ता है या दुष्कर जीवन जीना पड़ता है
बिहार के एक ग्रामीण इलाके की रहने वाली, कुसुमलता (बदला हुआ नाम) को स्तन कैंसर के कारण अपने स्तन हटवाने पड़े थे, क्योंकि उसकी जान पर बन आई थी। इस प्रक्रिया से उसकी ज़िंदगी तो बच गई, लेकिन उसका जीवन और भी नारकीय हो गया। स्तनों के हटने के बाद उसके पति ने उसकी परवाह करना छोड़ दिया, क्योंकि अब उसे अपनी पत्नी में आकर्षण नज़र नहीं आता था।
मुसीबत की इस घड़ी में उसका साथ देने की बजाए, ससुराल वालों ने उसका साथ छोड़ दिया| इतना ही नहीं, महिलाएँ भी उसे ताना देने लगीं, क्योंकि अब वह उनकी नज़र में एक महिला नहीं रह गई थी। बिहार के दूसरे सबसे बड़े शहर मुज़फ्फरपुर के ही ग्रामीण इलाके में रहने वाली महिलाओं ने बताया कि उन्होंने स्तन कैंसर के बारे में सुना है| यह महिलाओं को होने वाली सबसे भयंकर बीमारी है, जिसमें स्तनों को हटवाना पड़ता है| इसके बाद पति या शौहर दूर हो जाते हैं और ज़िंदगी बीमारी से कहीं अधिक बद्तर हो जाती है।
स्तन एवं स्त्रीत्व
ग्रामीण इलाकों में स्तन कैंसर को लेकर जागरूकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महिलाएं स्तनों से ही स्वयं को पूर्ण स्त्री मानती है। स्तन कैंसर के बारे में जानकारी और इसकी शुरुआती जांच के सवाल पर ही वहां मौजूद महिलाएं शरमा गईं, क्योंकि उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि स्तनों के मुद्दे पर खुलकर बात होनी चाहिए। इन क्षेत्रों में आज भी महिलाओं से जुड़ी बिमारियों या समस्याओं पर बात तक करना बुरा समझा जाता है। यहां तक कि महिलाएं आपस में भी इन मुद्दों पर बात करने से परहेज़ करती हैं।
यही कारण है कि शहरों की अपेक्षा देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं से जुड़ी बीमारियां अधिक जानलेवा होती हैं। दरअसल महिलाओं को स्तन के शुरुआती जांच और लक्षण की जानकारी नहीं होती है। इस अभाव में वह किसी भी प्रकार की गांठ या अन्य लक्षणों को पहचान नहीं पाती हैं, जो आगे चलकर उनके लिए जान का खतरा तक बन जाता है।
जागरूकता का अभाव
शुरुआती जांच और लक्ष्ण से जुड़े सवाल पर एक ग्रामीण महिला ने अपनी झिझक तोड़ते हुए बताया, कि उसकी ननद की बगल में गांठें बनना शुरू हो गई थी, जिसे सबने नजरअंदाज कर दिया। धीरे-धीरे गांठ बढ़ने लगी और उसके स्तन कठोर हो गए। यहां तक कि उनमें से खून आने लगा। मगर इसके बावजूद किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया और घरेलू इलाज करते रहे। इसी लापरवाही का परिणाम है, कि आज उसकी ननद उनके बीच नहीं है।
स्तन की जांच को लेकर ग्रामीण महिलाओं के बीच अनेक भ्रांतियां भी हैं| उन्हें लगता है कि किसी पराए इंसान के द्वारा उनके अंगों को हाथ लगाना उनकी बदनामी का कारण बन जाएगा। इसलिए जांच के लिए उन्हें किसी के पास जाने में भी असहजता महसूस होती है। यह केवल किसी एक कस्बे की स्थिति नहीं है। जितना ही इस विषय पर गहराई में जाएंगे, उतनी ही दुखद स्थिति सामने आएगी।
पटना के प्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ, डॉ. अभिषेक आनंद ने बताया – “इस बीमारी के प्रति ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता का अभाव बहुत ज्यादा है। कैंसर के इलाज के लिए आने वाले रोगियों में ग्रामीण महिलाओं की संख्या अत्यंत कम है| औसतन 10 महिलाओं में से केवल 2 महिलाएं ही ग्रामीण क्षेत्रों से होती हैं।”
स्तन कैंसर की व्यापकता
ग्रामीण इलाके से आने वाली महिलाएं कैंसर के अंतिम चरण में जांच के लिए आती हैं, जिस कारण उनके स्वस्थ होने का आंकड़ा बेहद कम होता है। डॉ. आनंद का कहना है – “करीब 90 प्रतिशत महिलाओं को स्वयं स्तन की जांच करनी नहीं आती है। जिस कारण उन्हें अधिक दिक्कत उठानी पड़ जाती है।”
ग्रामीण महिलाओं द्वारा स्तनों की जांच नहीं करवाने का एक बड़ा कारण गांठों में दर्द का नहीं होना भी है| शुरुआती लक्षणों में गांठों का बनना शुरू होता है, जो दर्द रहित होती हैं| इसलिए महिलाएं इन्हें सामान्य लक्षणों के तौर पर लेती हैं। धीरे-धीरे इन गांठों का फैलना शुरू होता है, जिससे यह ट्यूमर बन जाता है| यदि ट्यूमर को शुरुआती दौर में ही हटा दिया जाए, तो कैंसर को रोका जा सकता है।
‘पॉपुलेशन ब्रेस्ट कैंसर रजिस्ट्री’ के अनुसार, भारत में हर साल करीब 1.44 लाख स्तन कैंसर के नए मामले सामने आ रहे हैं। दरअसल इसके असल कारकों के बारे में ज्यादा जानकारी सामने नहीं आती है। हालांकि विशेषज्ञों का मत है कि जिन महिलाओं को मासिक धर्म जल्दी शुरू होता है और देर से खत्म होता है, उनमें स्तन कैंसर की संभावना ज्यादा देखी जाती हैं।
इंटरनेशनल रिसर्च एजेंसी, ‘ग्लोबल केन’ में सामने आया है कि भारत में साल 2012 में लगभग 1,44,937 महिलाएं स्तन कैंसर के जांच के लिए सामने आई थीं। वहीं, उसी साल लगभग 70,218 महिलाओं ने स्तन कैंसर के कारण जान गँवाई। इस रिपोर्ट के अनुसार, हर साल इससे लगभग 2 लाख महिलाओं की मृत्यु हो रही है। वर्ष 2025 तक, स्तन कैंसर के मामले 4.27 लाख तक पहुँचने का अनुमान लगाया गया है।
आर्थिक कारण
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए, ग्रामीण महिलाओं में स्तन कैंसर के प्रति जागरुकता फैलाने की आवश्यकता है, ताकि महिलाएं शुरुआती जांच करवाने के लिए स्वयं आगे आएं। बहुत सी ग्रामीण महिलाएं आर्थिक कारणों से भी अपनी बीमारी को छुपाना चाहती हैं| उन्हें लगता है कि यदि उन्होंने इलाज करवाया तो उनके काफी पैसे खर्च हो जाएंगे और परिवार को आर्थिक परेशानी उठानी पड़ जाएगी।
हालांकि अब देश में कुछ ऐसे संस्थान हैं, जहां कम खर्च में कैंसर का इलाज किया जाता है। इसके अलावा केंद्र सरकार के साथ-साथ कई राज्य सरकारें भी कैंसर के मरीज़ों को इलाज के लिए सहायता राशि उपलब्ध करवाती हैं। केंद्र की ओर से जहां आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत मदद दी जाती है, वहीं बिहार में कैंसर के मरीज़ों को “मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष” से 80 हजार से एक लाख रूपये तक की मदद की जाती है।
सकारात्मक सम्भावनाएँ
विशेषज्ञों का कहना है कि स्तन कैंसर में स्तन केवल उसी अवस्था में हटाया जाता है, जब कैंसर अंतिम चरण में हो। जागरूकता की कमी के कारण ग्रामीण महिलाओं को परेशानी उठानी पड़ती है। लेकिन लगातार हो रही रिसर्च और वैज्ञानिक खोज के चलते, अब ऐसी तकनीक आ गई हैं, जिनसे कैंसर का इलाज आसान हो गया है।
टार्गेटेड थेरेपी, हार्मोनल थेरेपी और इम्युनो थेरेपी में नयी-नयी दवाइयाँ उपलब्ध हैं, जिनसे कैंसर का इलाज अब काफी हद तक कष्ट-रहित हो गया है। इसके अलावा बचाव के भी कुछ तरीके हैं, जिनसे स्तन कैंसर से बचा जा सकता है।
यह बेहद महत्वपूर्ण है कि 40-45 की उम्र पार करते ही नियमित तौर पर मैमोग्राफी करवाई जाए, सही समय पर बच्चों का जन्म हो, स्तनपान पर जोर दिया जाए, मोटापे पर नियंत्रण रखा जाए, आदि। वहीं शरीर की कोशिकाओं में BRCA म्युटेशन का कैंसर से सम्बन्ध होने के कारण, नियमित तौर पर स्वयं स्तनों की जांच के द्वारा कोशिकाओं में होने वाले बदलावों पर नज़र रखी जा सकती है।
सामाजिक दृष्टिकोण
यह तथ्य स्पष्ट है कि जागरूकता ही स्तन कैंसर से एकमात्र बचाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को वर्जनाओं के विरुद्ध स्वयं आगे आना होगा, ताकि उन्हें स्वस्थ जीवन मिल सके। जो समाज महिलाओं के अंतर्वस्त्र खुले में सूखते देख असहज महसूस करने लगता हो, वहां महिलाओं के स्तनों को लेकर सोच का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
लेकिन घूंघट और शर्म के साथ-साथ, अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही को पीछे छोड़ते हुए महिलाओं को अपने लिए आगे आना होगा, क्योंकि यह उनके जीवन का और जीवन की गुणवत्ता का मामला है। इस दिशा में अनदेखी भारी पड़ सकती है| समय आ गया है, कि परिवार भी अपनी सोच में बदलाव लाए, और महिलाओं को हिम्मत और उनका साथ देने की दिशा में पहल करनी चाहिए| क्योंकि महिलाएं ही परिवार की नींव होती हैं।
सौम्या ज्योत्सना, चरखा फीचर्स के साथ एक लेखिका हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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