तरबूज लाया किसानों के जीवन में लालिमा
रबी और खरीफ फसल के बीच गर्मी के तीन महीनों में खाली पड़ी जमीन में तरबूज की खेती ने छोटे किसानों के जीवन-संघर्ष को आसान बना दिया।
धार जिले की मनावर तहसील में जोत का औसत आकार 4 एकड़ है। ज्यादातर छोटे व सीमांत किसान खरीफ में मक्का/धान/कपास और रबी में गेहूं/चना/मक्का की फसल के बाद जायद मौसम में जमीन खाली छोड़ देते हैं। ब्लॉक में 35 हजार हैक्टेयर से अधिक सिंचित भूमि है, परंतु सिंचाई की सुविधा होते हुए भी, सही जानकारी के अभाव में जायद मौसम में केवल 117 हैक्टेयर में ही फसल लगाई जाती है। इस कारण खेती से अधिक आय नहीं हो पाती, जिसके फलस्वरूप गर्मी के मौसम में अधिकांश सीमान्त किसान आसपास के शहरों में मजदूरी के लिए पलायन करते हैं।
खंडलई गाँव के शिव कन्या स्वयं सहायता समूह की सदस्य, गोरा बाई भी ऐसे ही छोटे किसानों में से एक हैं। बरसों से अपने खेत में एक या दो फसल की ही खेती कर पाती थीं। खेती में लगातार उत्पादन में कमी, बढ़ते खर्चों व फसल का उचित मूल्य न मिलने के कारण घर में अक्सर ऋण लेने की नौबत आ जाती थी।
तरबूज द्वारा कायाकल्प
गोरा बाई का शिव कन्या समूह आजीविका मिशन के श्री हरि ग्राम संगठन से जुड़ा हुआ है, जो अपने सदस्यों को आजीविका के बेहतर अवसर प्रदान करने के प्रयास में लगा है। इन्हीं प्रयासों की कड़ी में एक प्रयास ने गोरा बाई का जीवन बदल दिया। इसके तत्वावधान में गोरा बाई को ट्रांसफॉर्मिंग रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) द्वारा आयोजित तरबूज की खेती का प्रदर्शन प्लॉट देखने का मौका मिला।
इससे प्रभावित होकर, गोरा बाई ने अपने पति टन्टू भाई के साथ मिलकर 3 बीघा (लगभग डेढ़ एकड़) में तरबूज की खेती शुरू की। कुल खर्चे काटने के बाद, उन्हें कुल रु. 4 लाख से अधिक की कुल आमदनी हुई। उन्होंने किसी भी फसल से इतनी कम लागत में इतनी आमदनी कभी प्राप्त नहीं की थी। इस आय से वे अपना लगभग 4 साल पुराना कर्ज चुका सकी।
गोरा बाई ने VillageSquare.in को बताया – “प्रदर्शन के द्वारा मिली जानकारी के तरीके से तरबूज की खेती करने पर कम लागत में अधिक उत्पादन हुआ और गर्मी के मौसम में खेती का काम किया जा सका। हमारे गाँव के दूसरे बहुत से परिवार भी इस खेती को करेंगे और सभी किसान भाई बहन एक बीघा या ज्यादा में तरबूज की खेती करके सामूहिक रूप से इसे बेचने का प्रयास करेंगे।”
तरबूज ही क्यों
मध्य प्रदेश राज्य के पूर्वी निमाड़, बुरहानपुर, पश्चिमी निमाड़, बड़वानी एवं शहडोल जिलों में तरबूज की खेती अधिक की जाती है। तरबूज ऐसे सभी स्थानों पर उगाया जा सकता है, जहां सिंचाई की सुविधा हो और मौसम गर्म तथा सूखा रहता हो। मनावर ब्लाॅक में पिछले कुछ समय से तरबूज की फसल सफलतापूर्वक ली जा रही है।
तरबूज को यदि ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग का उपयोग करके उगाया जाए, तो इससे 150-200 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन मिल सकता है, और लगभग 1 लाख से 1.25 लाख तक की आमदनी हो सकती है। वर्तमान में इसकी बहुत ज्यादा खेती नहीं होने से बाजार मूल्य भी अधिक मिलने के आसार हैं। टीआरआईएफ द्वारा ऐसे क्षेत्रों का चयन किया गया, जहां पानी की उपलब्धता थी और मिट्टी तथा जलवायु भी अनुकूल थे।
क्षेत्र एवं किसानों का चयन
मनावर ब्लाॅक का उत्तरी भाग, जहां के किसान जायद में अपने खेत खाली छोड़ देते थे, का चयन किया गया। क्योंकि इस क्षेत्र के लिए यह नई फसल थी, अतः किसान इसे अपनाने में हिचक रहे थे। ऐसे किसानों का चयन आवश्यक था जिनके पास ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग का साधन हो और जो जोखिम उठाकर नवाचार के लिए तैयार हों। वर्ष 2019 में 5 किसान ही तरबूज लगाने के लिए तैयार हुए।
शुरू करने के लिए लगभग 2000 वर्गमीटर (1 बीघा) क्षेत्र में एक प्रदर्शन प्लॉट तैयार किया गया। इसका स्थान ऐसा था, जहां अधिक से अधिक किसान आते जाते फसल को देख सकें और वहां परिवहन की सुविधा भी हो। प्रदर्शन का लागत, उपज, बाजार मूल्य और शुद्ध मुनाफा, आदि से सम्बंधित लेखा-जोखा रखा गया, ताकि यह पता चल सके कि तरबूज से वास्तव में क्या लाभ होता है।
तरबूज की खेती का विस्तार
विस्तार की दिशा में सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम था, प्रशिक्षण। TRIF संस्था के कृषि विशेषज्ञ मनावर ब्लाॅक में पदस्थ हैं, जिन्होंने चयनित 10 किसानों को तरबूज फसल के बारे में जानकारी प्रदान की। उन्हें किस्मों का चयन, पौध तैयार करने, बीजोपचार, कतार और पौधों की दूरी, फर्टीगेशन, फसल संरक्षण, पके फल की पहचान और तुड़ाई के तरीके पर प्रशिक्षण दिया गया। इसके अतिरिक्त जिन किसानों ने पहले तरबूज लगाए थे, उनसे संपर्क भी कराया गया।
विशेषज्ञों ने फसल की पौध तैयार करने, कीट एवं बिमारी से बचाव, खाद और उर्वरक की मात्रा और समय, बाजार में उचित मूल्य दिलाने आदि में भी सहायता की। संस्था ने उपयुक्त प्रजाति का बीज और कुछ खाद दवाई भी उपलब्ध कराई, जबकि किसानों ने खेत की तैयारी, सिंचाई, निदाई-गुड़ाई, तुड़ाई आदि जैसे दूसरे काम किए।
उत्पादन एवं आय
वर्ष 2019 में 5 प्रदर्शन खेत तैयार किए गए थे, जिनमें से 4 किसानों ने एक बीघा से एक लाख से अधिक का शुद्ध लाभ प्राप्त किया। एक किसान की फसल खराब हो गई, क्योंकि उनके बोरवेल में अचानक पानी समाप्त हो गया और वो सिंचाई नहीं कर सके। पांचों किसानों का विवरण निम्न है –
क्रमांक | किसान का नाम | गांव का नाम | लागत | बाजार मूल्य | शुद्ध लाभ |
1 | गोरा बाई पति टंटू भाई | खंडलई | 17550 | 162000 | 144450 |
2 | गीता पति कैलाश | साला | 15950 | 144000 | 128050 |
3 | अशोक पिता खड़क सिंह | राजूखेड़ी | 7550 | 0 | -7550 |
4 | छोटूलाल देवड़ा | बालीपुर | 17350 | 142720 | 125370 |
5 | नानूराम पिता श्रवण | लुन्हेरा | 16950 | 136960 | 120010 |
निष्कर्ष
इस प्रयोग से एक महत्वपूर्ण बात यह सामने आई, कि छोटे और सीमांत किसानों के लिए की गई पहल में उनकी मिट्टी की जाँच, उसमें मौसम एवं क्षेत्र के अनुसार क्या-क्या उगाया जा सकता है, किन उत्पादों के लिए उपयुक्त बाजार आसानी से उपलब्ध हैं, किन फसलों की बहुतायत में पैदावार के बावजूद उसके लिए वाजिब दाम प्राप्त हो सकेंगे। उसी के अनुसार फसलों का चयन होना चाहिए। इस पहल से जहाँ यह स्पष्ट हुआ, कि इस क्षेत्र में तरबूज की खेती से किसान की आय में वृद्धि हो सकती है, वहीं यह पक्ष में महत्वपूर्ण रहा, कि किसानों को नई फसल से जुड़े पूरे ज्ञान और प्रारंभिक सहयोग की आवश्यकता होती है। इसमें प्रशिक्षण, उचित बीज, बीजोपचार,सिंचाई, खाद, कीटों से बचाव और विभिन्न गतिविधियों के लिए सही समय शामिल हैं।
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