बेहद ख़राब मौसम की घटनाओं के कारण हिमाचल के सेब के बाग नष्ट हुए
बेमौसम बारिश, बर्फबारी और ओलावृष्टि ने सेब के लाखों पेड़ों को नुकसान पहुंचाया, जिससे शिमला के प्रसिद्ध फल बर्बाद हो गए हैं। इससे बाग मालिकों की आय और सरकार के राजस्व में कमी आई है
बेमौसम बारिश, बर्फबारी और ओलावृष्टि ने सेब के लाखों पेड़ों को नुकसान पहुंचाया, जिससे शिमला के प्रसिद्ध फल बर्बाद हो गए हैं। इससे बाग मालिकों की आय और सरकार के राजस्व में कमी आई है
भारत की फलों की टोकरी के रूप में पहचान वाले हिमाचल प्रदेश के किसान और बाग-मालिक बेहद खराब मौसम की घटनाओं का खामियाजा भुगत रहे हैं। शिमला क्षेत्र में पिछले दो महीनों में हुई बेमौसम बारिश, हिमपात और ओलावृष्टि के कारण राज्य के बागों, विशेषकर सेब को भारी नुकसान हुआ है।
अप्रैल और मई में गलत समय पर हुई बर्फ़बारी और ओलावृष्टि के साथ-साथ कोविड-19 की दूसरी घातक लहर के कारण किसानों और बाग मालिकों की चिंता दोगुनी हो गई।
एप्पल काउंटी
हिमाचल प्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा सेब उत्पादक राज्य है। राज्य के बागवानी विभाग द्वारा जारी एक आंतरिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में 1.13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 368, 603 मीट्रिक टन सेब उगाए जाते हैं।
राज्य में सेब की 100 से ज्यादा किस्में उगाई जाती हैं। नई किस्मों के आने के साथ, कम ऊंचाई वाले गर्म क्षेत्रों में भी सेब की बागवानी शुरू की गई है। सबसे ज्यादा सेब का उत्पादन शिमला जिले में होता है, जो राज्य के कुल उत्पादन में लगभग 65% योगदान देता है।
सेब की पट्टी के रूप में मशहूर, शिमला के इस क्षेत्र में ठियोग, नारकंडा और कोटखाई शामिल हैं। सेब की बागवानी किन्नौर, मंडी, कुल्लू, चंबा और लाहौल-स्पीति के क्षेत्रों में भी की जाती है। हिमाचल प्रदेश बागवानी विभाग के अनुसार, राज्य का बागवानी से सालाना कारोबार 4,000 से 5,000 करोड़ रुपये है।
बेहद खराब मौसम की घटनाएं
COVID-19 की घातक दूसरी लहर के अलावा, अप्रैल और मई में इस क्षेत्र में बर्फबारी और ओलावृष्टि हुई, जिससे सेब किसानों और बाग मालिकों की चिंता बढ़ गई।
राज्य सरकार द्वारा लागू लॉकडाउन बंदिशों के कारण, बाग मालिकों को मजदूरों को लेकर गंभीर संकट का सामना करना पड़ा, क्योंकि बागों में काम करने वाले ज्यादातर मजदूर दूसरे राज्यों से आते हैं। इसके अलावा, बाग मालिक दूर के बगीचों में आ जा नहीं जा पा रहे थे।
बागवानी विभाग द्वारा मई 2021 में किए गए एक आंतरिक आंकलन सर्वेक्षण में, यह पाया गया कि 55,515 पेड़ नष्ट हो गए, जबकि 20,07,000 पेड़ों को आंशिक रूप से नुकसान हुआ और इससे 60,000 किसान और बाग मालिक प्रभावित हुए।
विभाग ने अप्रैल में हुई बर्फबारी और ओलावृष्टि से बागवानी में 254 करोड़ रुपये का नुकसान दर्ज किया। हालांकि किसानों और बाग मालिकों के एक संघ, किसान सभा ने इस नुकसान को 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान लगाया है।
गंभीर प्रभाव
इस नुकसान के गंभीर प्रभाव हैं। हिमाचल प्रदेश आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, कृषि-बागवानी क्षेत्र राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 13% योगदान देता है। सेब बागवानी, जो राज्य की आर्थिक रीढ़ है, का इसमें सबसे बड़ा हिस्सा है।
हिमाचल प्रदेश के बागवानी विभाग के निदेशक जे सी शर्मा का कहना था कि शिमला में सबसे ज्यादा सेब के बाग मालिकों को नुकसान हुआ है। कई जगह सेब के पूरे पौधे और पेड़ उखड़ गए हैं।
ठियोग के एक सेब उत्पादक रोहित शर्मा कहते हैं – “ओलावृष्टि इतनी हुई कि सेब के ओलों से बचाव के लिए हमने जो जाल लगाया था वह भी फट गया। बहुत ज्यादा बर्फ़बारी के कारण हमारे पौधे भी उखड़ गए।”
ओलावृष्टि से सेब के पौधे उखड़ गए, जिससे क्षेत्र के बहुत से बाग तबाह हो गए हैं। इससे बाग मालिक अगले पांच से दस साल तक फसल नहीं ले पाएंगे। शर्मा आगे कहते हैं कि ओलावृष्टि से सबसे ज्यादा नुकसान शिमला जिले के ठियोग, नारकंडा, खड़ा पत्थर, बागी और मटियाना इलाकों में हुआ है।
राजस्व की हानि
प्रशांत सेहता एक सेब उत्पादक हैं और युवा एवं संगठित उत्पादक संघ (यंग एंड यूनाइटेड ग्रोवर्स एसोसिएशन) के महासचिव हैं, जो सेब बागवानों के कल्याण के लिए काम करता है। सेहता का मानना है कि अप्रैल के खराब मौसम के कारण बगीचों को हुआ नुकसान, 31 मई की ओलावृष्टि से दोगुना हो गया है।
बेहद खराब मौसम की घटनाओं के कारण फसल आधी रह गई। उन्होंने कहा – “बाकी सेब भी खराब हो गए और फलों को बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलेगी। सेब की एक पेटी, जो आमतौर पर 2,000 रुपये में बिकती है, दाग के कारण 900 से 1,000 रुपये बिकेगी।”
हिमाचल प्रदेश बागवानी विभाग के अनुसार, 2019 में सेब के 3.20 करोड़ बक्से उत्पादन हुआ था। इस बार भी बागवानी विभाग ने 3.50 करोड़ बक्से उत्पादन का अनुमान लगाया था। लेकिन अप्रत्याशित रूप से भारी ओलावृष्टि ने इन अनुमानों को बदल दिया है; और इस साल उत्पादन कम होने की आशंका है।
सेब की पौध तैयार करने वाली बागवानी नर्सरी को ओलावृष्टि से 30 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इस नुकसान का देश भर में सेब की कीमतों पर अप्रत्यक्ष और प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित, हिमाचल के किसान और बाग मालिक हैं। ठियोग के एक बाग मालिक, गौरव सेमटा कहते हैं – “भारी ओलावृष्टि के कारण मेरे बाग में 70% नुकसान हो गया है। फूल आने के समय पर, मुझे इस साल अच्छी फसल की उम्मीद थी, लेकिन मौसम में अचानक आए बदलाव ने मुझे तबाह कर दिया है।”
सेमटा ने आगे कहा – “मैं अपने परिवार की आजीविका को लेकर लगातार चिंतित हूं।” गौरव सेमटा और रोहित शर्मा दोनों ने मांग की है कि सरकार उन्हें उनके नुकसान के लिए मुआवजा दे।
रोहित पराशर शिमला स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
यह कहानी पहली बार ‘101 Reporters’ में प्रकाशित हुई थी।
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