प्रतिबद्ध प्रयासों से बनेंगे प्रगतिशील गाँव

जोश के साथ, मिलकर काम करके, विकास संगठन और सरकारें ग्रामीण भारत में व्याप्त चुनौतियों से निपट सकती हैं और सकारात्मक बदलाव ला सकती है

ग्रामीण भारत के लिए समाधान विकसित और वितरित करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों और सरकारों के साथ काम करने वाली, ट्रांसफॉर्मिंग रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) द्वारा एक सप्ताह तक चलने वाला ऑनलाइन कार्यक्रम ‘भारत ग्रामीण संवाद’ (इंडिया रूरल कोलोक्वि) आयोजित किया गया। संवाद में चुनौतियों एवं समाधानों और अब से 10 साल बाद ग्रामीण भारतीय परिदृश्य की कल्पना के बारे में चर्चा हुई।

अधिकार एवं उत्तरदायित्व

ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (TRIF) की सलाहकार परिषद (Advisory Council) के एक सदस्य और टाटा ट्रस्ट के पूर्व कार्यक्रम निदेशक, संजीव फंसलकर का कहना था कि अनुभवी बुजुर्गों की संगति में युवा बहुत कुछ सीखेंगे, और बुजुर्गों को उनकी संगति में खुशी और तृप्ति के क्षण प्राप्त होंगे। इससे दोनों को फायदा होगा।

देश में व्याप्त क्रियाशील अराजकता, जैसा कि उन्होंने इसके लिए कहा, विकास के लिए अत्यधिक हानिकारक थी। उन्होंने कहा कि हम भारतीयों को हर समय शिकायत करने की आदत है और हर समय विक्टिम कार्ड (सताए गए होने की अभिव्यक्ति) खेलना अच्छा लगता है। वह कहते हैं – “एक राष्ट्र के रूप में, हमारे देश में हर किसी को लगता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है, इसलिए वह हर समय रोना रोता रहता है।”

एक और चीज जिसने सारे विकास को पीछे खींचा है, वह थी हमेशा अपने अधिकारों के बारे में बात करने की हमारी आदत और यह पूरी तरह भूल जाना कि हमारे कर्तव्य भी हैं। उन्होंने कहा कि जिम्मेदारी की भावना के साथ अधिकार सही राष्ट्रवादी दृष्टिकोण होना चाहिए।

ग्रामीण युवा

टीआरआई की सलाहकार परिषद की एक और सदस्य और PwC इंडिया की पूर्व मार्केट लीडर, भारती गुप्ता रमोला ने 2030 में ग्रामीण भारत के अपने सपने की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि वे एक ऐसे ग्रामीण भारत की कल्पना करती हैं, जिसमें पक्की सड़कें, घर और एक विशेष तौर पर महिलाओं के लिए, अच्छी स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था हो।

उन्होंने कहा कि ग्रामीण भारत के युवाओं के लिए उनके कुछ खास सपने हैं, जिन्हें वह साझा करना चाहती हैं। अगले एक दशक में वे एक चौथाई समय में ग्रामीण युवाओं को कॉलेजों में, दूसरी चौथाई में कौशल क्षेत्र में काम करते, तीसरी चौथाई में उच्च शिक्षा प्राप्त करते और चौथी चौथाई में अपने बड़ों के साथ कृषि कार्यों में शामिल होते देखने की कल्पना करती हैं।

सरकारी नौकरी पाने के लिए भारतीय युवाओं के जुनून की बड़ी आलोचक थीं। उनका कहना था कि यह उनके विकास के लिए अत्यधिक विनाशकारी है। वह कहती हैं – “हमें अपने युवाओं में इस मानसिकता को हतोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि सरकारी नौकरियां बहुत कम हैं; और जब एक युवक नौकरी पाने में विफल रहता है, तो पूरा आत्मविश्वास खो देता है और खुद पर असफलता का लेबल लगा देता है। इसकी बजाय हमें उन्हें उद्यमशीलता का दृष्टिकोण अपनाना सिखाना चाहिए और उनके कैनवास को बढ़ाना चाहिए।”

नियोजित विकास

2030 में, रमोला के सपनों के भारतीय गांवों में अच्छी शैक्षिक सुविधाएं, स्वास्थ्य देखभाल, और पर्यावरण का सक्रिय प्रबंधन, सभी पूर्ण सामंजस्य में होंगे। उन्होंने कहा कि भले ही यह ‘एल डोराडो’ (ख़याली दुनिया) हो, लेकिन उनका दिल उसे सच मानना ​​चाहता है।

उन्होंने सभी से ग्रामीण भारत के उनके सपने का हिस्सा बनने की कोशिश करने और इसके कम से कम एक हिस्से को सच करने की दिशा में काम करने का आग्रह किया। हालांकि उनका मानना था कि निकट भविष्य में महिलाओं और दलितों की असमानताओं को शायद समाप्त न किया जा सके। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें स्कूल स्तर पर ही इन सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए काम करना शुरू करना चाहिए, जब दिमाग को आसानी से ढाला जा सके।

गांवों का विकास इस तरह होना चाहिए कि वे अनियोजित शहर न बन जाएं (छायाकार – चारु चतुर्वेदी, ‘अनस्प्लैश’)

रमोला ने बेतरतीब ढांचागत विकास के बारे में चेतावनी दी और कहा कि गांव का आधुनिकीकरण करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए। उन्हें अनियोजित शहरों में नहीं बदल जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ जैसे कुछ नियोजित शहरों को छोड़कर, बाकी शहर अनियोजित थे और इसलिए आँख की किरकिरी बन गए। उनका कहना था कि ग्रामीण क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए संसाधनों का सावधानी और सटीकता से उपयोग किया जाना चाहिए।

समतामूलक समाज

टीआरआई में सलाहकार परिषद के एक सदस्य और टाटा ट्रस्ट्स के पूर्व मैनेजिंग ट्रस्टी, आर. वेंकटरमन ने कहा – “1.4 अरब के देश द्वारा ओलंपिक में मुट्ठी भर पदक काफ़ी नहीं हैं, हमें खेलों के माध्यम से ग्रामीण युवाओं को बड़ा गेम चेंजर बनने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी एक समकारक (बराबर करने वाली) है और समाज में व्याप्त असमानताओं को नष्ट करने में मदद करती है। उनका कहना था कि अच्छा प्रशिक्षण हमारे युवाओं को, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है। उनका विचार था कि नेटवर्कों का उच्च सहयोग तेजी से बदलाव लाने में सहायक होगा।

वेंकटरमन का कहना था कि केवल असमानता ही नहीं, बल्कि असंवेदनशीलता को भी दूर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में छलांग ने असमानताओं को ही बढ़ाया है। एक उदाहरण के हवाले से उन्होंने कहा कि वेबिनार उन लोगों तक सीमित हैं, जिनकी प्रौद्योगिकी तक पहुँच है।

प्रतिबद्धता और जोश

द ब्रिजस्पैन ग्रुप के पार्टनर, सौमित्र पांडे द्वारा संचालित चर्चा के दौरान, पैनल सदस्यों ने ग्रामीण समुदाय की आकांक्षाओं पर विस्तार से चर्चा की और कि कैसे किसी लैंगिक पूर्वाग्रह के बिना गांव की आबादी को विकास के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों मने चहुंमुखी विकास सुनिश्चित हो सके।

महामारी के बाद के वैश्विक समाज में, अर्थव्यवस्था और टेक्नोलॉजी अवसरों को और ज्यादा प्रभावित करने वाले हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में कई वर्षों के अनुभव के साथ, पैनल सदस्यों ने उन रास्तों के बारे में बात की, जिन पर ग्रामीण भारत के पुरुषों और महिलाओं को अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए चलना पड़ता है।

विशेषज्ञों का कहना था कि पितृसत्ता और जाति व्यवस्था जैसी चुनौतियां बहुत बड़ी हैं, जिनसे लगातार और संयुक्त प्रयासों से ही निपटा जा सकता है। ग्रामीण भारत का एक बेहतर परिदृश्य तराशने के लिए, सभी हितधारकों को एक साथ आना होगा।

टीआरआई में लीड टीम के हिस्से के रूप में, अनीश कुमार ने अपने स्वागत भाषण में कहा था कि उन्होंने अगस्त को संवाद के लिए इसलिए चुना, क्योंकि यह क्रांति का महीना है, हमारे देश की आजादी का महीना है और इसमें मित्रता दिवस (फ्रेंडशिप डे) भी आता है। उन्होंने कहा कि बड़े बदलाव तभी संभव हैं, जब हम उत्साह प्रतिबद्धता और जोश के साथ मिलकर काम करें।

कुलसुम मुस्तफा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह रिपोर्ट पहली बार ‘Jubilee Post’ में प्रकाशित हुई थी|