स्थानीय किसानों ने पैदा की फलों की नई किस्में
क्या आपने कभी कामना की है कि आप साल भर आम, कम बीज वाले सीताफल (शरीफा) या जंबो अंगूर प्राप्त कर सकें? अब आप कुछ नवाचारी, स्व-शिक्षित किसानों की बदौलत ऐसा कर सकते हैं।
क्या आपने कभी कामना की है कि आप साल भर आम, कम बीज वाले सीताफल (शरीफा) या जंबो अंगूर प्राप्त कर सकें? अब आप कुछ नवाचारी, स्व-शिक्षित किसानों की बदौलत ऐसा कर सकते हैं।
भारत में आप जब सेब के बारे में सोचते हैं, तो आप कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के बारे में सोचते हैं। दोनों सेब के पर्याय हैं, जिसे अपने पेड़ों पर फूल आने और फल लगने के लिए ठंडे-गर्म जलवायु की जरूरत होती है। आप भारत के गर्म मैदानों या उष्णकटिबंधीय जंगलों के बारे में नहीं सोचते। लेकिन खेती के नवाचारों की बदौलत, सेब अब मैदानी इलाकों की गर्म जलवायु में भी उगाए जाते हैं।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बात छोड़िये, आमतौर पर ‘भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान’ या ‘केंद्रीय उप-उष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान’ फसलों या फलों की नई किस्में विकसित करते हैं।
लेकिन ऐसे स्थानीय किसानों की संख्या बढ़ रही है, जिन्होंने बिना किसी औपचारिक शिक्षा के, फलों की ऐसी नई किस्में विकसित की हैं, जो न केवल ऊंची पैदावार वाली और कीट-प्रतिरोधी हैं, बल्कि अलग अलग वातावरण में उगाई जा सकती हैं। कल्पना कीजिए कि साल में तीन बार पैदा होने वाला आम, सभी इलाकों में पैदा होने वाला सेब, कम बीज वाला सीताफल और जंबो अंगूर।
भारत के मैदानी इलाकों में सेब उगाना
आजकल महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में सेब की खेती की जाती है, जहां वे नहीं उगाए जाते थे। सभी इलाकों में उगने लायक सेब की यह HRMN-99 किस्म, हिमाचल प्रदेश के हरिमन शर्मा द्वारा विकसित की गई है।
अपने बाग-नर्सरी में फलों के पेड़ों से घिरे शर्मा कहते हैं – “पहले किसी को भी विश्वास नहीं होता था कि सेब मैदानी इलाकों में, समुद्र तल से 700 मीटर ऊपर गर्म तापमान में उगेंगे।”
यह किस्म आम बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है और इसे 40-45 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। शर्मा ने अब तक देश भर में 3 लाख से ज्यादा पौध वितरित की हैं।
शर्मा कहते हैं – “मैंने ‘नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन’ द्वारा प्रायोजित, 29 राज्यों में सेब की 15,000 पौध लगाई हैं। 15 राज्यों में पेड़ों ने फल देना शुरू कर दिया है।”
उनके पास पौधे प्रजनन अधिकार (‘प्लांट ब्रीडर्स राइट्स) भी हैं, जो ब्रीडर को नई किस्म के, बीज और कटिंग सहित प्रचार, और कटे हुए फूल और फलों पर विशेष नियंत्रण प्रदान करता है।
साल भर आम के फल
फलों का राजा आम, भारत के गर्मियों के सबसे लोकप्रिय फलों में से एक है। लेकिन यदि वे दूसरे मौसमों में भी उपलब्ध होते तो कैसा होता? राजस्थान में उगाया जाने वाला, श्री किशन सुमन का “सदाबहार” आम ऐसी ही किस्म है।
2000 में सुमन का सामना अपने पारिवारिक बाग में एक आम के पेड़ से हुआ, जो मार्च से जुलाई के मौसम के बजाय, तीन मौसमों में खिलता था। सुमन का मानना है कि उनका ‘सदाबहार’ आम दुनिया का एकमात्र ऐसा आम है, जो साल में तीन बार फलता है। उनकी आम की किस्म, जो कि पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ़ प्लांट वेरायटीज एंड फार्मर्स राइट्स एक्ट – PPV&FR Act) के अंतर्गत पंजीकृत है।
गैर-मौसमी किस्म होने के कारण, ‘सदाबहार’ ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आम प्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया है, जो उनके खेत में आते हैं।
एक सरकारी संस्थान, ‘नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया’ (NIF) के राष्ट्रीय जमीनी नवाचार एवं उत्कृष्ठ पारम्परिक ज्ञान (नेशनल ग्रासरूट इनोवेशन एंड आउटस्टैंडिंग ट्रेडिशनल नॉलेज) अवार्ड पाने वाले, सुमन कहते हैं – “क्योंकि मांग में वृद्धि हो रही है, इसलिए मैंने ज्यादा पेड़ उगाने के लिए और भूमि ले ली है।”
ज्यादा गूदेदार, पीले सीताफल के लिए रास्ता बनाओ
वर्ष 2011 में, प्रजनक किसान, नवनाथ कस्पाटे ने सीताफल की NMK-1 (गोल्डन) किस्म शुरु की, जिसमें बीज कम, गूदा अधिक है और पकने पर उसमें कम दरार पड़ती हैं।
सीताफल की बुवाई का मौसम शुरू होने के कई महीने पहले, संभावित उत्पादकों को आकर्षित करने के लिए कस्पाटे स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापन देते हैं। महाराष्ट्र की उनकी 14-एकड़ की सीताफल नर्सरी देखने सैकड़ों किसान आते हैं। किसान पौधों का ऑर्डर करते हैं और इस किस्म की खेती से जुड़ी जानकारी देने के लिए आयोजित दो घंटे की कार्यशाला में भाग लेते हैं।
मुख्य रूप से सूखी भूमि वाले क्षेत्रों में उगाए जाने वाले इस सुनहरे-पीले रंग के फल की पैदावार, 12 टन प्रति एकड़ तक हो सकती है। हरी किस्म की पैदावार 6 से 8 टन होती है।
वर्ष 2015 में कस्पाटे को PPV&FRA से प्लांट जीनोम सेवियर अवार्ड मिला। वह अब तक 33 लाख पौध बेच चुके हैं और अपने 40 एकड़ के खेत में पैदा फलों की बिक्री से करीब 1 करोड़ रुपये कमाते हैं।
किशमिश और निर्यात बाजार के लिए लंबे अंगूर
क्योंकि अंगूर के एक स्वास्थ्य परक नाश्ते से लेकर, शराब और किशमिश बनाने तक कई उपयोग हैं, महाराष्ट्र की “अंगूर बेल्ट” के किसानों ने लगभग एक दर्जन नई किस्में विकसित की हैं।
दत्ताराय एन. काले एक क्रमिक नवचारकर्ता हैं, जिनके नाम चार किस्में हैं। उनकी शुरू की गई नवीनतम किस्म, ‘किंग बेरी’ लगभग 45-50 मिमी लम्बे अंगूर की किस्म है, जिसके बारे में उनका कहना है कि इससे ऊंची कीमत की किशमिश बनती है।
जहां भारत का बाजार बढ़ रहा है, वहीं निर्यात बाजार भी मजबूत है।
‘नवाचार एवं उद्यमिता उत्सव (FINE)-2019’ में आम आदमी के नवाचारों की पहचान करने वाले ‘जमीनी नवाचार (ग्रासरूट इनोवेशन) अवार्ड’ प्राप्तकर्ता, काले कहते हैं – “यह किस्म चीन, हांगकांग और मलेशिया जैसे नए निर्यात बाजारों में जा सकती है। यह ज्यादा पैदावार देने वाली, मौसम-प्रतिरोधी और ऊंचे दाम प्राप्त करने वाली किस्म है।”
नवाचारों के बावजूद चुनौतियां बनी हुई हैं
भारत में नवाचारी-किसान शब्द नया है। गत वर्षों में, NIF ने छोटे शहरों और गांवों के नवाचार करने वालों की पहचान की है, उन्हें मान्यता और बढ़ावा दिया है।
NIF-इंडिया के वैज्ञानिक, हरदेव चौधरी ने VillageSquare.in को बताया – “कृषि विश्वविद्यालयों या भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा उचित जाँच और सत्यापन के बाद, हम नवाचारी लोगों को पंजीकरण में सहायता करते हैं।”
लेकिन अन्य नवाचारों की तरह, नवाचारी किसान भी नक़ल के खिलाफ एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं।
सुमन कहते हैं – “हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये नर्सरी हमारी कीमत पर पैसा कमाती हैं, बल्कि इससे कि खरीदारों को धोखा दिया जा रहा है।”
उदाहरण के लिए, शर्मा की नर्सरी से ग्राफ्ट किए गए सेब के पौधे की कीमत 80 रुपये है, जबकि उसकी नकल की कीमत 1,000 रुपये है।
शर्मा कहते हैं – “धोखा खाए लोग मुझे फोन करते हैं, क्योंकि बिना ग्राफ्ट के पौधे फलने की संभावना नहीं होती।”
सीताफल के आविष्कारक, कस्पाटे उन चंद लोगों में से हैं, जिन्होंने नक्कालों के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू की है। उन्होंने नकली पौध बेचने में लगे 221 महाराष्ट्र नर्सरी मालिकों के खिलाफ दीवानी मामले दर्ज कराए हैं।
किसान-प्रजनक समुदाय, कस्पाटे के दीवानी मुकदमे पर एक अनुकूल निर्णय का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, क्योंकि इससे उन्हें अन्य जालसाजों से निपटने के लिए मजबूती देगा।
हिरेन कुमार बोस महाराष्ट्र के ठाणे में स्थित एक पत्रकार हैं। वह सप्ताहांत में किसान के रूप में काम करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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