हाथी के मुँह पर सरसों फेंको

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से अनाज उपलब्ध होने के कारण, ‘मानस नेशनल पार्क’ के नजदीक के किसानों को धान उगाने की कोई जरूरत नहीं लगती, और हाथियों द्वारा फसल उजाड़ने से बचाव के लिए उन्होंने सरसों की खेती की ओर रुख किया है।

डचेस बच्चे के चेहरे पर काली मिर्च फेंकती, गुस्से से बात करती और “जब वह छींकता, तो उसे पीटती, क्योंकि उसे काली मिर्च बहुत पसंद थी, लेकिन केवल चिढ़ाने के लिए चीखता था।” यह थी ‘एलिस इन वंडरलैंड’ की काल्पनिक कहानी। यहाँ चिरांग जिले के दूरदराज के गाँवों में, किसान ऐसा ही करने की कोशिश करते हैं। लेकिन गणेश का शुक्र है कि ऐसा बच्चों के साथ नहीं करते, बल्कि स्वयं गणेश (हाथियों) के साथ करते हैं!

मेघालय की पहाड़ियों के पास रहने वाले राभा लोग असल में ही काली मिर्च उगाते हैं, क्योंकि यह हाथियों को पके हुए केले और कटहल से भरे पिछवाड़े में अंधाधुंध नुकसान करने से रोकती है। यहाँ चिरांग में वे सरसों उगाते हैं! 

(पढ़ें: काली मिर्च राभा लोगों को हाथियों के साथ रहने में मदद करती है। Pepper helps Rabhas to live with tuskers)

लेकिन गंभीरता से देखें, तो यह असम में एक ‘राष्ट्रीय उद्यान’ के करीब रहने वाले छोटे किसानों के समस्या से निपटने की कहानी है।

मैंने असम के ‘बोडो जनजातीय स्वायत्त जिले’ (BTAD) क्षेत्र के चिरांग जिले के बोराबाजार प्रशासनिक ब्लॉक के एक गांव बरपाथर का दौरा किया। हम महिलाओं के एक समूह से मिले, जिन्होंने गाँव में सरसों उगाने वालों का एक “उत्पादक समूह” बनाया था। जब मैं अपने मेजबान के साथ गाँव पहुँचा, तो मुझे उसके स्थान की जानकारी नहीं थी।

जैसा कि ऐसे मौकों पर करने की आदत है, मैंने अदरक के स्वाद वाली “लाल चा” (चाय का काढ़ा) की चुस्की लेते हुए, इन निर्माता समूह के सदस्यों से उनके जीवन और आजीविका के बारे में बात की। मैंने उनसे उनकी सरसों की फसल के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि उन्होंने इसे चार सप्ताह पहले ही बोया था। मुझे काफी हैरानी हुई। तसल्ली करने के लिए मैंने उनसे बुआई की तारीख पूछी।

जिन गांवों में हाथी अक्सर आते हैं, वहां सरसों किसानों की पसंदीदा फसल बन रही है (छायाकार – यापी कोप)

रजनी राय (बदला हुआ नाम), जिस घर की महिला के बरामदे में हम बातें कर रहे थे और जिसकी खातिरदारी का मैं आनंद ले रहा था, उसने कहा कि उसने इस साल दिवाली से तीन दिन पहले, 1 नवंबर को सरसों बोई थी।

यहां असम में खरीफ में उगाए जाने वाले धान को आमतौर पर दिसंबर में काटा जाता है और अगली फसल के लिए खेत दिसंबर के अंत तक तैयार हो पाता है। इसलिए मैं थोड़ा हैरान हुआ और पूछा कि उसने इतनी जल्दी ऐसा कैसे कर लिया? क्या उसने धान की कटाई उससे पहले कर ली थी? उसने धान कब बोया और उसकी किस्म कौन सी थी?

उन्होंने हैरान होकर मुझे देखा और कहा – “क्या आप नहीं जानते कि हम धान नहीं उगाते हैं?” मुझे हैरानी हुई और मैंने पूछा – “क्या? असम में खरीफ़ में धान नहीं उगाते?”

तब यह साफ हुआ। ‘भोजन का अधिकार’ अधिनियम और राशन की दुकानों के माध्यम से सस्ते खाद्य पदार्थों की आपूर्ति से उन्हें काफी राहत मिली। पिछले 20 महीनों से मुफ्त भोजन ने बोझ को और कम कर दिया है। इसलिए, वे राशन की दुकानों से मिलने वाले अनाज के अलावा जरूरी अनाज खरीद सकते हैं।

‘मानस नेशनल पार्क’ से लगातार और बार-बार हाथियों के झुंडों के हमले, उस पर और ज्यादा अड़ियल जंगली सूअर ने खेती को बहुत समस्याग्रस्त बना दिया था। इसलिए उन्होंने गैर-धान फसलों की ओर रुख कर लिया।

खरीफ में वे तुरई उगाने लगे, क्योंकि इसकी फसल सिर्फ चार महीने में तैयार हो जाती है। उगाई जाने वाली फसल की मुख्य कसौटी कुछ ऐसा अपनाना था, जिसे हाथी खाना न चाहें। कारण कुछ भी हो, लेकिन हाथी सरसों के पौधे नहीं खाता। इसलिए सरसों को अपनाना काफी सही है। इन हाथियों को हल्दी भी पसंद नहीं है, इसलिए किसान हल्दी भी अपना सकते हैं।

बिजली की बाड़ हाथियों को खेतों में घुसने से रोकती है (छायाकार – यापी कोप)

हाल के वर्षों में, राष्ट्रीय उद्यान के चारों ओर बिजली की बाड़ लगाई गई है। तारों में दिन के समय करंट नहीं छोड़ा जाता है, लेकिन शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक इनमें करंट रहता है। हाथियों के हमले आमतौर पर रात में हुआ करते थे। यह बिजली की बाड़ हाथियों को रोकती है, क्योंकि तारों में करंट होने से उन्हें बिजली के झटके लगते हैं।

रजनी राय कहती हैं – “लेकिन सूअर अभी भी बहुत तकलीफदेह है। यह करंट वाली तारों से बचकर घुस सकता है और एक सूअर पौधों को खाने से ज्यादा, उन्हें उखाड़ कर नुकसान पहुंचाता है।”

पिछले काफी समय से पूरा गांव सरसों उगा रहा है, क्योंकि इससे उनकी आय हाथी के हमलों से होने वाले नुकसान से बच जाती है। मानस उद्यान के चारों ओर के दूसरे गांवों के किसानों ने भी ऐसा ही किया है। ये गांव अब सरसों के बड़े उत्पादक बन गए हैं।

खरीफ में वे सभी सब्जियां उगाते हैं, जिनकी कटाई अक्टूबर के अंत तक हो जाती है। इस तरह वे बाजार अर्थव्यवस्था के साथ ज्यादा समन्वित हो गए हैं।

इसके सकारात्मक या नकारात्मक नतीजे कुछ भी हों, यहां एक अच्छी बात यह हुई है कि स्थानीय बियर बनाने का प्रचलन बहुत हद तक कम हो गया है। शराब की महक हाथियों को चुम्बक की तरह खींच लेती है और उसके लिए उनकी जोशीली तलाश सिर्फ बिजली के झटकों से नहीं रुक सकती!

यापी कोप असम स्थित ‘सेवन सिस्टर्स डेवलपमेंट असिस्टेंस’ (SeSTA) में एक विकास कार्यकारी हैं।