Author: अरूप के. चटर्जी
क्या “फ़िल्मी गाँव” असली ग्रामीण भारत दिखाते हैं?
अतीत की फिल्मों के गाँव या तो मनोहर होते थे या फिर निराशाजनक। लेकिन आजकल की फ़िल्में ज्यादा यथार्थवादी हैं, जो शहरी और ग्रामीण दृष्टिकोण के बीच की खाई को पाटती हैं।
अतीत की फिल्मों के गाँव या तो मनोहर होते थे या फिर निराशाजनक। लेकिन आजकल की फ़िल्में ज्यादा यथार्थवादी हैं, जो शहरी और ग्रामीण दृष्टिकोण के बीच की खाई को पाटती हैं।