Author: संजीव फंसालकर
पैसा और पुरुषत्व: ग्रामीण परिवारों में बदलती लैंगिक भूमिकाएँ
बढ़ते कृषि तनाव और अनिश्चित आय के समय में, गाँवों में महिलाएँ भी पुरुषों की तरह ही परिवारों की प्रदाता बन रही हैं, लेकिन पितृसत्ता की बुरी पकड़ ढीली होने से इनकार कर रही है।
खेत-समृद्धि को गति देता एक बस ड्राइवर
मिलिए एक बस ड्राइवर अमोल कदम से, जो अपने गांव में खेती में मदद कर रहे हैं।
सरकारी हस्तक्षेपों को आदिवासी परिवार कैसे देखते हैं?
इस आम राय के विपरीत, कि जनजातियाँ उपेक्षित हैं, वे न केवल अपने कल्याण की विभिन्न सरकारी योजनाओं से अवगत हैं, बल्कि उनके कार्यान्वयन के बारे में खुश हैं।
मूक क्रांति: आशा और सम्भावना का दिन
अग्रणी विकास विशेषज्ञ, संजीव फणसळकर, अस्सी लाख महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आठ करोड़ साठ लाख परिवारों को प्रभावित करने वाले सामाजिक कार्यक्रम, दीन दयाल उपाध्याय अन्त्योदय योजना से अभिभूत हैं।