Covid-19

COVID-19 महामारी समाप्ति से बहुत दूर है। बहुत से लोग अभी भी दूसरी लहर से जूझ रहे हैं, जबकि अन्य लोग तीसरी लहर के लिए तैयारी कर रहे हैं। यहाँ भारत के भीतरी इलाकों से नवीनतम COVID-19 समाचार प्रस्तुत हैं।

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शिशुओं को दागने की कुप्रथा से मुक्ति

एक अनोखा तरीका अपनाते हुए, ग्रामीण ओडिशा के स्वास्थ्य कर्मियों ने, ईलाज के लिए नवजात शिशुओं को गर्म लोहे से दागने की कुप्रथा को रोकने के लिए, दागने वाले ओझाओं की ही मदद ली।

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‘एक्सपोजर ट्रिप’ की शक्ति

चार साल पहले, कार्यक्रम अधिकारी, अंकिता गोयल आदिवासी महिलाओं के एक समूह की, गाँव से बाहर पहली यात्रा में उनके साथ गई थीं। उसे यह नहीं पता था कि यह "एक्सपोज़र विजिट" उसके लिए जीवन बदलने वाला अनुभव साबित होगी।

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मछली उनकी थाली में, और पैसा उनके बटुए में

ओडिशा के पिछड़े जिले, मयूरभंज में महिलाएं लगातार मछली पालन करती हैं, जिससे न सिर्फ उनको पैसा मिलता है, बल्कि उनके परिवार के लिए बेहतर पोषण भी सुनिश्चित होता है।

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“मैंने मिट्टी के बर्तनों को आकर्षक बनाने का फैसला किया”

जब कश्मीरी इंजीनियर साइमा शफी मीर ने अवसाद (डिप्रेशन) से निपटने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाना शुरू किया, तो उन्हें स्थानीय कुम्हारों की दुर्दशा के बारे में पता लगा, जो एक सदियों पुराने शिल्प बना रहे थे, जिसकी बहुत कम लोग परवाह करते हैं। इसलिए साइमा ने मिट्टी के बर्तनों को फिर से लोकप्रिय बनाने का फैसला किया। पढ़िए, उनका सफर उन्हीं के शब्दों में।

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महिलाओं के लिए बैंकिंग सुलभ बनाने का आनंद

बैंकों में महिलाओं की उपेक्षा को देखते हुए, स्थानीय बैंकर लखीमी बरुआ ने महिलाओं के लिए असम का पहला सहकारी बैंक शुरू किया, जिससे हजारों वंचित महिलाओं की वित्तीय साक्षारता और सशक्तिकरण के साथ बैंकों तक पहुंच सुनिश्चित हुई।

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बस्तर के आदिवासी बच्चों को तैयार करती एक स्कूल-संसद

छत्तीसगढ़ के दूरदराज के एक आदिवासी गाँव में, एक सरकारी स्कूल बच्चों के समस्या-समाधान और नेतृत्व कौशल का निर्माण करने के लिए, बाल संसद के माध्यम से पढ़ाई को दिलचस्प बनाने की पहल करता है।

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देशी बीजों के प्रसार से लाभ

बीज अकाल की संभावना के बारे में सुनकर, ओडिशा के सीमांत किसान सुदाम साहू ने देशी बीजों का संरक्षण शुरू कर दिया और अब वह उन बीजों के साथ जैविक खेती के चैंपियन हैं।

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भारत में टिकाऊ खेती की संभावनाओं का अभाव

हालांकि सरकार टिकाऊ कृषि की दिशा में छोटे-छोटे कदम उठा रही है, लेकिन भारत के कृषि कार्यबल से लेकर इसकी राजनीतिक अर्थव्यवस्था तक की कुछ चुनौतियाँ हैं, जिन्हें समझने और उनसे निपटने की जरूरत है।

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बंजर भूमि को हरी भरी बनाते – बिहार के ‘अमरूद-गुरू’

भारत के 'पहाड़-पुरुष (माउंटेन मैन)’' की प्रेरणादायक सलाह की बदौलत, कभी ‘गुरूजी’ पुकारे जाने वाले एक शिक्षक, सत्येंद्र मांझी अब बंजर भूमि को अमरूद के बागों में बदल रहे हैं।