COVID-19 महामारी समाप्ति से बहुत दूर है। बहुत से लोग अभी भी दूसरी लहर से जूझ रहे हैं, जबकि अन्य लोग तीसरी लहर के लिए तैयारी कर रहे हैं। यहाँ भारत के भीतरी इलाकों से नवीनतम COVID-19 समाचार प्रस्तुत हैं।
Covid-19
लवणता से निपटने के लिए तटीय किसानों ने अपनाए नवाचार उपाय
तटीय तमिलनाडु के किसान वर्षा जल संचयन और पारम्परिक जैविक खेती के तरीकों को पुनर्जीवित करके, सूखे और भूजल स्तर में गिरावट के कारण होने वाली लवणता का मुकाबला कर रहे हैं।
मराठवाड़ा किसानों ने जलधाराओं का जल एकत्र कर प्राप्त की भरपूर पैदावार
महाराष्ट्र के सूखा संभावित मराठवाड़ा क्षेत्र के किसानों ने, बारिश के जल को जलधाराओं की तालाब जैसे खंडों में जल संग्रहित करके कृषि को लाभकारी बनाया है, जिससे भूजल पुनर्भरण भी हो रहा है।
सामाजिक, आर्थिक चुनौतियों का सामना करते नेगामाम के बुनकर
तमिलनाडु की प्रसिद्ध नेगामाम सूती साड़ियों के पारम्परिक हथकरघा बुनकरों की संख्या घट रही है, क्योंकि वे बदलते सामाजिक मानदंडों और सस्ते उत्पादों की आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
अफ्रीकी दौरों से राजस्थानी ग्रामीण महिलाओं ने तोड़े सामाजिक बंधन
शायद ही अपने राज्य से कभी बाहर गई राजस्थानी महिलाएं, पश्चिम अफ्रीका के माली की यात्रा से सम्मान अर्जित करती हैं और वहां की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के अलावा, रोटी बनाना और साड़ी पहनना सिखाती हैं।
“तुम एक लड़की हो। खेल पोशाक में बाहर कैसे जा सकती हो?”
जल- क्रीड़ाओं के प्रति अपने जुनून के कारण किशोरावस्था के दौरान, रूढ़िवादियों द्वारा ताने और फटकार का सामना करने वाली बिलकिस मीर की माँ के उत्साहवर्धक शब्दों ने उन को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। अब 33-वर्षीय खिलाड़ी न केवल कश्मीर में एक घरेलू नाम और युवा आइकन है, बल्कि एक विश्वसनीय कोच और अंतरराष्ट्रीय जज भी है।
बीज बमबारी करने वाले पर्यावरण-गुरिल्ला ने छेड़ा ग्रामीण ओडिशा के हरित आवरण के लिए युद्ध
प्रकृति प्रेमियों के परिवार में पले-बढ़े पत्रकार और डॉक्यूमेंट्री-मेकर शुभ्रांशु सत्पथी को पर्यावरण में गिरावट हमेशा परेशान करती थी। अब स्व-प्रशिक्षित पर्यावरणविद एक प्राचीन जापानी तकनीक से ग्रामीण ओडिशा की हरियाली बढ़ाने के मिशन पर हैं।
कभी ‘बोझ’ रहा लद्दाख का दो कूबड़ वाला ऊँट, आज बेशकीमती
एक समय बोझ समझे जाने वाला और लद्दाख के दूरदराज के हिस्सों में सिर्फ सामान ढोने के लिए इस्तेमाल होने वाला, दो कूबड़ वाला ऊंट अब इस क्षेत्र के कई परिवारों के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत है।
आदिवासी माताओं के काम में सहायक शिशुगृह
आदिवासी बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाने और महिलाओं को अपने छोटे बच्चों की चिंता किए बिना वनोपज इकट्ठा करने में मदद करने के लिए, ओडिशा सरकार ने बच्चों के लिए शिशुगृह (क्रेश) शुरू किए हैं।
झारखंड की आदिवासी महिलाओं के प्राकृतिक कप और दोने का कोई खरीदार नहीं
सैकड़ों महिलाएं पर्यावरण-अनुकूल, साल के पत्ते के कप और दांत साफ करने वाली दातून बेचती हैं, लेकिन मुश्किल से 70 रुपये प्रतिदिन कमा पाती हैं। फिर भी, कठिन जीवन के बावजूद उनकी मुस्कुराहट बनी रहती हैं।