शिक्षा

कूड़ा बीनने वालों को पढ़ाने वाले स्कूलों से लेकर, आदिवासी युवाओं की करियर काउंसलिंग तक। ग्रामीण लड़कियों को प्रोग्रामिंग सिखाने से, रटने से दूर ले जाने वाले साक्षरता कार्यक्रम के बारे में। न केवल ग्रामीण शिक्षा, बल्कि सीखने के विषय में नवीनतम जानकारी पढ़ें।

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सौर आधारित कीट-जाल, रसायन मुक्त खेती की ओर एक कदम

कई अन्य किसानों की तरह, कर्नाटक के कोप्पल जिले में हुनासिहाल गाँव के, शिवपुत्रप्पा कुम्बार, कीट प्रकोप से निपटने के लिए, रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते थे। इसमें उनके न सिर्फ 5,200 रूपए प्रति फसल खर्च होते थे, बल्कि उससे उनकी जमीन की मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब होती थी।

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अपने गांव को बदलना चाहते हैं? – महिलाओं को बुलाओ!

महिलाओं को संसाधनों और ज्ञान से लैस करने से, न सिर्फ महिलाओं और उनके परिवारों, बल्कि पूरे समुदाय को लाभ होता है। इसका एक उदाहरण हंडानाकेरे की ‘चैंपियन महिला किसानों’ने प्रस्तुत किया है।

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दुधारू पशुओं में लिंग-चयनित गर्भाधान से मिला डेयरी को बढ़ावा

लिंग-चयनित वीर्य (सेक्स सॉर्टेड इनसेमिनेशन - एसएसएस) द्वारा गर्भाधान के नए तकनीकी हस्तक्षेप से डेयरी में बेहतर आनुवंशिकी प्राप्त की गई।

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कलिम्पोंग के किसानों के लिए बेस्वाद हुई काली इलायची

काली इलायची को सुनहरी फसल मानने वाले किसान, अब पौधों की बीमारियों से होने वाले नुकसान और आधुनिक खेती के तरीकों को अपनाने की अपनी अनिच्छा के कारण, दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं।

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“मैंने 1,400 से ज्यादा लोगों की जान बचाई है”

भारत की पहली महिला राफ्टर और जल-बचावकर्ता ने तीस्ता नदी के प्रचंड बहाव से सैकड़ों लोगों को बचाया है। जोखिम और उच्च स्तर के सुरक्षा उपकरणों की कमी के बावजूद, शांति राय समर्पण के साथ काम करती हैं, जिससे युवा लड़कियों को उनके नक्शेकदम पर चलने की प्रेरणा मिलती है।

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“बीज ग्राम” योजना से खेती बनी आर्थिक रूप से लाभकारी

मध्य प्रदेश सरकार से रियायती दरों पर प्राप्त, उच्च गुणवत्ता के ‘आधार बीजों’ से तैयार बीज वितरित करके किसानों ने लाभ कमाया।

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हेल्प डेस्क और परामर्श से जेंडर-आधारित हिंसा कम होती है

ओडिशा के दूरदराज के गांवों में, जेंडर-आधारित हिंसा (GBV) को कम करने के लिए, "GBV योद्धाओं" ने हेल्प डेस्क की स्थापना की, परामर्श सेवाएं प्रदान की और पीड़ितों को चिकित्सा और कानूनी सहायता प्रदान करने वाले, ‘सखी’ केंद्रों में भेजा।

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जन्म प्रमाण पत्र नहीं होने के जोखिम

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भारत में पांच साल से कम उम्र के 10 में से एक बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। इससे वे व्यवस्था के लिए अदृश्य हो जाते हैं, और सरकारी प्रावधानों का लाभ उठाने में असमर्थ हो जाते हैं। लेकिन ‘डेवलपमेंट फेलो’ सोहिनी ठाकुरता और स्मृति गुप्ता ने पाया है कि मध्य प्रदेश का एक जिला इस रुझान को कम करने की कोशिश कर रहा है।

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कालबेलिया परम्परा को संभाल कर रखना

दो बार बाल-वधू बनी, सुशीला नाथ, जो अब तीन बच्चों की एकल माँ हैं, पशु पालने और खेतिहर मज़दूर के रूप में काम करके अपना जीवन यापन करती हैं। लेकिन उनका जुनून अपने कबीले के कालबेलिया आभूषणों और नृत्य को संरक्षित करना और इसे व्यावसायिक रूप से टिकाऊ बनाना है।