एक मौन सेना ग्रामीण भारत को गरीबी और असमानता से बाहर निकालने के लिए अथक प्रयास कर रही है। अपनी लेखनी और समर्पण परे, वे न वर्दी पहनते हैं, न ही हथियार रखते हैं। वे विकास जगत के पैदल सैनिक हैं। क्षेत्र के सम्बन्ध में लिखे उनके लेख पढ़ें।
क्षेत्र पत्रिका
एक मजदूर की आवाज
मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाला एक ग्रामीण, जिसे जीवन यापन के लिए कई काम करने पड़ते हैं, एक विकास प्रबंधन छात्र को साहसी और न्यायपूर्ण होने के लिए प्रेरित करता है। शीर्ष तस्वीर में फील्ड विजिट के दौरान ग्रिष्मा और उनकी मित्र को दिखाया गया है।
घूंघट से उसकी दृष्टि धूमिल नहीं होगी
विकास प्रबंधन की एक छात्र, एक मजबूत और साहसी पूर्व महिला पंचायत नेता से प्रेरित है, जिन्होंने एक मॉडल गांव विकसित करने के लिए, एक बेहद पितृसत्तात्मक समाज की सभी बाधाओं को पार कर लिया।
“हैलो साथी ” हेल्पलाइन पर माहवारी पर बेरोकटोक बातचीत
माहवारी यानि मासिक धर्म के बारे में खुलकर बात करना चाहते हैं? माहवारी संबंधी स्वास्थ्य समूह,‘अनइन्हिबिटेड’ की क्रन्तिकारी योजना, "हैलो साथी " हेल्पलाइन आज़माएं। उसके दो चिकित्सकों की रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना ने दो साल से भी कम समय में 150,000 लोगों की मदद की है।
जब शादी का उपहार, भारी ब्याज वाला ऋण बन जाए
विकास पेशेवर संजना कौशिक को पता चलता है कि कभी उदारता और एकता की एक सुंदर संस्कृति, ‘नोत्रा’ परम्परा, जिसमें भील जनजाति में हर कोई शादियों की मेजबानी में मदद करता था, कैसे पैसे उधार देने का एक दुष्चक्र बन गया है।
सौर आधारित कीट-जाल, रसायन मुक्त खेती की ओर एक कदम
कई अन्य किसानों की तरह, कर्नाटक के कोप्पल जिले में हुनासिहाल गाँव के, शिवपुत्रप्पा कुम्बार, कीट प्रकोप से निपटने के लिए, रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते थे। इसमें उनके न सिर्फ 5,200 रूपए प्रति फसल खर्च होते थे, बल्कि उससे उनकी जमीन की मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब होती थी।
अपने गांव को बदलना चाहते हैं? – महिलाओं को बुलाओ!
महिलाओं को संसाधनों और ज्ञान से लैस करने से, न सिर्फ महिलाओं और उनके परिवारों, बल्कि पूरे समुदाय को लाभ होता है। इसका एक उदाहरण हंडानाकेरे की ‘चैंपियन महिला किसानों’ने प्रस्तुत किया है।
“बीज ग्राम” योजना से खेती बनी आर्थिक रूप से लाभकारी
मध्य प्रदेश सरकार से रियायती दरों पर प्राप्त, उच्च गुणवत्ता के ‘आधार बीजों’ से तैयार बीज वितरित करके किसानों ने लाभ कमाया।
जन्म प्रमाण पत्र नहीं होने के जोखिम
भारत में पांच साल से कम उम्र के 10 में से एक बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। इससे वे व्यवस्था के लिए अदृश्य हो जाते हैं, और सरकारी प्रावधानों का लाभ उठाने में असमर्थ हो जाते हैं। लेकिन ‘डेवलपमेंट फेलो’ सोहिनी ठाकुरता और स्मृति गुप्ता ने पाया है कि मध्य प्रदेश का एक जिला इस रुझान को कम करने की कोशिश कर रहा है।
ताइक्वांडो मास्टर की आत्मविश्वास-किक
विकास प्रबंधन की छात्रा शाशवी ठाकुर एक भावुक और प्रगतिशील ताइक्वांडो ब्लैकबेल्ट से प्रेरित हैं, जो मध्य प्रदेश में हाशिए पर पड़े बेदिया समुदाय के युवा लड़कियों और लड़कों को प्रशिक्षित करती हैं।