एक मौन सेना ग्रामीण भारत को गरीबी और असमानता से बाहर निकालने के लिए अथक प्रयास कर रही है। अपनी लेखनी और समर्पण परे, वे न वर्दी पहनते हैं, न ही हथियार रखते हैं। वे विकास जगत के पैदल सैनिक हैं। क्षेत्र के सम्बन्ध में लिखे उनके लेख पढ़ें।
क्षेत्र पत्रिका
कहानी पवन चक्कियों और महिलाओं की
पवन चक्की संयंत्र आमतौर पर अक्षय ऊर्जा का एक लाभकारी स्रोत होते हैं। लेकिन क्या होता है, जब वे प्राचीन आदिवासी भूमि से हो कर गुजरते हुए, आजीविका और पहचान के खो जाने का डर पैदा करते हैं? ‘इंडिया फेलो’, अनीश मोहन पता लगाते हैं।
खरपतवार युद्ध – घुसपैठिए पौधे समाधान
बेहद आक्रामक पौधों की प्रजातियां, भारत के वनों और जैव विविधता को नष्ट कर रही हैं। श्रीधर अनंत और संजीव फणसळकर इस मुद्दे की व्यापकता के बारे में लिखते हैं और संभावित समाधानों पर चर्चा करते हैं।
हाथी और मधुमक्खी: क्या मेघालय और त्रिपुरा के लिए कुछ सबक हैं?
मधु मक्खियों, हाथियों और रबड़ के बागानों से बना एक वातावरण, आदिवासी परिवारों को अतिरिक्त आय कमाने में सक्षम बना रहा है। यहां के. शिवामुथुप्रकाश और संजीव फणसळकर उस आकर्षक परियोजना का वर्णन करते हैं, जो इस वातावरण की सुविधा प्रदान करती है।
गाय के मूत्राशय से
जैसा विकास अण्वेष फाउंडेशन के संजीव फणसळकर ने करीब से देखा, गाय के मल मूत्र के अक्लमंदी से इस्तेमाल पर आधारित प्राकृतिक खेती, आंध्र प्रदेश में जीवन बदल रही है।
‘एक्सपोजर ट्रिप’ की शक्ति
चार साल पहले, कार्यक्रम अधिकारी, अंकिता गोयल आदिवासी महिलाओं के एक समूह की, गाँव से बाहर पहली यात्रा में उनके साथ गई थीं। उसे यह नहीं पता था कि यह "एक्सपोज़र विजिट" उसके लिए जीवन बदलने वाला अनुभव साबित होगी।
भारत में टिकाऊ खेती की संभावनाओं का अभाव
हालांकि सरकार टिकाऊ कृषि की दिशा में छोटे-छोटे कदम उठा रही है, लेकिन भारत के कृषि कार्यबल से लेकर इसकी राजनीतिक अर्थव्यवस्था तक की कुछ चुनौतियाँ हैं, जिन्हें समझने और उनसे निपटने की जरूरत है।
असम का ग्रामीण रंगमंच: पर्दे उठे या गिरे?
नेटफ्लिक्स और यूट्यूब से प्रतिस्पर्धा के बावजूद, असम के छोटे रंगमंच मंडलियों को एक निष्ठापूर्ण संरक्षण प्राप्त है। फिर भी अभिनय उनकी मुख्य आजीविका होने के कारण, कलाकारों को महामारी के समय अनिश्चितता का सामना करना पड़ा।
ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमी असफल क्यों होते हैं?
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्रामीण उद्यमिता के महत्व की चर्चा काफी समय से होती रही है, लेकिन ग्रामीण उद्यमी के सामने आने वाली बाधाओं और चुनौतियों को समझने और उस पर काम करने का शायद यह सही समय है।
कलेर डाबी – एक आदर्श ‘बदलाव दीदी’
कलेर डाबी ने बदलाव दीदी के रूप में, कल्याण योजनाओं का लाभ ग्रामीण वंचित वर्ग तक प्रभावी रूप से पहुंचा कर एक अनुकरणीय मिसाल स्थापित की है।