जेंडर

यह विलेज स्क्वायर की 2016 में शुरुआत से, 2021 में पुनः लॉन्च होने तक की जेंडर-संबंधित अंतर्दृष्टिपूर्ण कहानियों का एक संग्रह है। जेंडर से सम्बंधित हाल की कहानियों के लिए “उसका जीवन” अनुभाग देखें।

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प्राचीन ‘मयूरभंज छऊ’ नृत्य पुनरुद्धार की ओर

एक पूर्व शाही परिवार के संरक्षण और सरकारी सहयोग की बदौलत, 19वीं सदी का नाटकीय मार्शल आर्ट पर आधारित मयूरभंज छऊ नृत्य पुनरुद्धार की ओर बढ़ रहा है।

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आखिर विकास का यह विचार किसका है?

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दो विकास पेशेवरों का एक विस्थापित गांव का दौरा, विकास को लेकर व्यापक प्रश्नों की एक श्रृंखला को जन्म देता है। विकास को कैसे माना जाता है और कैसे इसका अभ्यास किया जाता है, इसे लेकर वे अपनी दुविधाएं साझा करती हैं।

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साझा रसोई – केरल में क्या पक रहा है?

समय के साथ काम और प्रतिबद्धताओं की होड़ में, खाना पकाने का समय नहीं निकल पाता। जो दो दम्पत्तियों की जरूरत से शुरू हुआ, उससे पूरे केरल में "साझा रसोई" बन रही हैं।

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फोटो निबंध: फटक्सिंगु – कारगिल की खूबानी “चमत्कारिक पेय”

लद्दाख के कारगिल क्षेत्र में सूखे खुबानी से बना एक पेय फटक्सिंगु अविश्वसनीय रूप से सभी आयु समूहों के बीच लोकप्रिय है। फोटो निबंध में, मैं इसकी उग्र लोकप्रियता के कुछ कारणों में तल्लीन हूं।

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गाय के मूत्राशय से

जैसा विकास अण्वेष फाउंडेशन के संजीव फणसळकर ने करीब से देखा, गाय के मल मूत्र के अक्लमंदी से इस्तेमाल पर आधारित प्राकृतिक खेती, आंध्र प्रदेश में जीवन बदल रही है।

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ग्रामीण रंगमंच ने टीके के लिए हिचकिचाहट की दूर

टीके को लेकर झिझक की भ्रांतियों को खत्म करने के बनाए मंच से, सटीक सन्देश की ताकत को साबित करते हुए, आदिवासी नृत्य और रंगमंच प्रस्तुतियों ने राजस्थान के उन लोगों को समझाने में सफलता पाई, जिन्होंने टीके नहीं लगवाए थे।

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क्या डिजिटल योजना भारत के गांवों के लिए कारगर है?

प्रशासनिक योजना को डिजिटल बनाने और संसाधनों का अधिक पारदर्शी आवंटन सुनिश्चित करने के सरकार के अभियान में, भारत के गाँव सबसे आखिर में आते हैं। लेकिन डिजिटल पर यह जोर कितना कारगर है? विकास क्षेत्र के कार्यकर्ता, जितेंद्र पंडित ने अपनी फील्ड रिपोर्ट में इसका समाधान निकाला है।

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उत्तरी नदी के लुप्तप्राय छोटे कछुओं की निगरानी

निगरानी में प्रजनन के बाद सुंदरबन के प्राकृतिक मैन्ग्रोव आवास में छोड़े गए उत्तरी नदी के लुप्तप्राय छोटे कछुओं की बारीकी से निगरानी की जाती है। यह भारत के पहले ‘जीपीएस टैगिंग और ट्रैकिंग’ कार्यक्रम की बदौलत संभव हुआ।

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कभी तस्करी का शिकार हुए युवा, बाल शोषण के विरुद्ध चलाते हैं साइकिल

कभी बाल श्रम के लिए मजबूर हो चुके युवा बिहारी, बाल तस्करी की भयावहता के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए साइकिल चलाते हैं, क्योंकि आर्थिक जरूरतों के कारण परिवारों को, बेहतर आजीविका के झूठे वादों पर अपने बच्चों को भेजना पड़ता है।