जेंडर

यह विलेज स्क्वायर की 2016 में शुरुआत से, 2021 में पुनः लॉन्च होने तक की जेंडर-संबंधित अंतर्दृष्टिपूर्ण कहानियों का एक संग्रह है। जेंडर से सम्बंधित हाल की कहानियों के लिए “उसका जीवन” अनुभाग देखें।

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10 लाख प्रति हेक्टेयर!

खेत के अनुसार योजना, पोलीहॉउस, ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग विधि और सब्जी-फल मिश्रण के द्वारा 5 से 7 वर्षों में खेती से दस लाख रूपए प्रति हेक्टेयर आय संभव है। झारखण्ड में किए गए प्रयासों की सफलता दिखाती है, कि खेती से विमुख हो रहे युवाओं को वापिस लाना संभव है।

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किशोरों ने लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई सुनिश्चित की

जब भारत 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने जा रहा है, हम उन बहुत से सामाजिक रूप से जागरूक ग्रामीण किशोरों के जज्बे से भरे काम पर प्रकाश डालते हैं, जिन्होंने महामारी के समय गाँव के बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना समय और ऊर्जा प्रदान की।

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कलेर डाबी – एक आदर्श ‘बदलाव दीदी’

कलेर डाबी ने बदलाव दीदी के रूप में, कल्याण योजनाओं का लाभ ग्रामीण वंचित वर्ग तक प्रभावी रूप से पहुंचा कर एक अनुकरणीय मिसाल स्थापित की है।

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देसी गुलाब लाया सफलता की मीठी सुगंध

अपनी तेज सुगंध और अनुष्ठानों एवं उत्सवों में उपयोग के लिए प्रसिद्ध "देसी गुलाब" की खेती और रचनात्मक बिक्री की बदौलत, महाराष्ट्र का कभी सूखाग्रस्त रहा गांव, आज "लखपतियों" से भरा हुआ है।

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निर्दयी नदी बनी कुम्हारों की आजीविका के लिए खतरा

माजुली द्वीप के कुम्हारों की 500 साल पुरानी विरासत खतरे में है, क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी धीरे-धीरे उनकी जमीन को निगल रही है। विडंबना यह है कि अगली पीढ़ी की कला में रुचि की कमी की तो बात ही क्या, कटाव रोकने के उपाय भी कुम्हारों के संकट को बढ़ा रहे हैं।

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धूप में सुखाई गई सब्जियां, कश्मीरी रसोई का पसंदीदा “स्वाद” हैं

कठोर सर्दियों में ताजा फसलों की कमी को पूरा करने के लिए, प्राचीन कश्मीरी रिवाज से धूप में सुखाई गर्मियों की सब्जियाँ अपने खास स्वाद और बार-बार सर्दियाँ जल्दी शुरू होने के कारण, अभी भी मांग में हैं।

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नक्सलियों के गढ़ में महिलाएँ सीताफल से आय कमा रही हैं

बस्तर के नक्सल-गढ़ में आदिवासी महिलाएं सीताफल उगाती हैं और उससे निकाले गूदे से भारत के शहरों और विदेशी बाजारों की बढ़ती मांग को पूरा करके, बढ़िया आय कमाती हैं।

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पर्यटन पर निर्भर द्वीपवासी गुजारे के लिए संघर्षरत हैं

एलीफेंटा द्वीप के ग्रामीण COVID-19 लॉकडाउन के बाद, पर्यटन के फिर से शुरू होने पर आशा से भरे हुए थे। लेकिन तीसरी लहर के डर और कम पर्यटकों के आने से उनका नया साल आशंकाओं के साथ शुरू हुआ।

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हाथी के मुँह पर सरसों फेंको

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से अनाज उपलब्ध होने के कारण, ‘मानस नेशनल पार्क’ के नजदीक के किसानों को धान उगाने की कोई जरूरत नहीं लगती, और हाथियों द्वारा फसल उजाड़ने से बचाव के लिए उन्होंने सरसों की खेती की ओर रुख किया है।