आजीविका

ग्रामीण भारत मूल गिग-इकोनॉमी (परियोजना आधारित अर्थव्यवस्था) के मजदूर का घर है। उद्यमी ग्रामीण, खेतों की जुताई से दुकान चलाने, रोज घर-घर जाकर सामान बेचने तक पहुँच जाते हैं। सूक्ष्म-उद्यमों, ग्रामीण स्टार्ट-अप और भारत के ग्रामीणों की बदलती आजीविकाओं के नवीनतम रुझानों के बारे में पढ़ें।

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महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त गाँव में, मोती की खेती से आया धन

सूखा प्रभावित मराठवाड़ा में फसल उगाना बेहद मुश्किल है, लेकिन मोती की खेती किसानों के लिए आय का एक वैकल्पिक और व्यवहार्य स्रोत बन गई है।

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मणिपुर में बांस की घटती आपूर्ति से कारीगरों को नुकसान

शहरीकरण एक अन्य प्राचीन उद्योग, बाँस कारीगरी को लील रहा है, क्योंकि विशाल निर्माण कार्यों का मतलब न सिर्फ बाँस की मात्रा कम होना है, बल्कि मचान बनाने वालों की ओर से बाँस की मांग बढ़ना गुरविंदर सिंहभी है।

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मणिपुर के लोक-रॉक बैंड ने पकड़ा सही सुर

उखरुल का एक स्वदेशी संगीत बैंड ‘फेदरहेड्स हाओकुई’, अपने लोक-रॉक संगीत के माध्यम से तांगखुल नागा समुदाय की अनूठी संस्कृति और मौखिक परम्पराओं को बढ़ावा देता है।

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चित्र में: पंजाब के एक गांव में ‘यीशु का लंगर’

पंजाब में अमृतसर के एक गांव में, क्रिसमस के दिन का मतलब है स्वादिष्ट भोजन, निस्वार्थ सेवा, नृत्य और ढेर सारी मस्ती। यह अनोखा क्रिसमस उत्सव सच्चे बहुसांस्कृतिक भारत को दर्शाता है, जहाँ हर कोई अपने धर्म, जाति और वर्ग से बेपरवाह, त्योहार मनाने के लिए एक साथ आता है।

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मामूली झाड़ू ने ओडिशा के कोरापुट की आदिवासी बस्तियों से मिटाई गरीबी

ज्यादातर आदिवासी महिलाओं द्वारा बनाई गई साधारण घरेलू झाड़ू एक ऐसी खास हस्तशिल्प है, जो आय उत्पन्न कर रही है तथा कई परिवारों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने तथा अपने वनों की रक्षा करने में सशक्त बना रही है।

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इन पारम्परिक व्यंजनों के बिना दक्षिणी तमिलनाडु में क्रिसमस का क्या मतलब?

तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में, दूसरों को अजीब लग सकने वाली दो पारम्परिक मिठाइयों, ‘मुंधिरी कोथु’ और ‘विविक्कम’ के बिना क्रिसमस का जश्न अधूरा है।

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लद्दाख के वीणा निर्माता ने ‘ड्रान्येन’ को दिया नया जीवन

लेह में रहने वाले शिल्पकार, त्सेरिंग अंगचुक ने छह तारों वाले पतले संगीत वाद्ययंत्र को पुनर्जीवित करने में मदद की है, जो कभी ‘जंगथांग खरनाक’ के ऊंचे इलाकों के खानाबदोशों का पर्याय था।

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फोटो निबंध: नानकमत्ता के मौसमी मछुआरे

हवा के टकराने से टूटती अस्थायी झोपड़ियों में रहने से लेकर मच्छरों से जूझने तक, उत्तराखंड के नानकसागर बांध पर डेरा डाले एक मौसमी मछुआरे का जीवन कठिन है। लेकिन चुनौतियों के साथ कुछ ईनाम भी मिलते हैं।

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बौबे जंग: कश्मीर में चिल्ला-ए- कलां के शुरू होने का जश्न दोस्ताना पटाखे फेंक कर मनाया जाता है

सदियों पुरानी एक परम्परा के अनुसार, डल झील के आसपास के इलाकों में लोग, पानी के पार एक-दूसरे पर पटाखे फेंकते हैं, जो 21 दिसंबर को शीतकालीन संक्रांति का प्रतीक है, और 40 दिनों की कठोरतम सर्दी की शुरुआत है।