ग्रामीण भारत मूल गिग-इकोनॉमी (परियोजना आधारित अर्थव्यवस्था) के मजदूर का घर है। उद्यमी ग्रामीण, खेतों की जुताई से दुकान चलाने, रोज घर-घर जाकर सामान बेचने तक पहुँच जाते हैं। सूक्ष्म-उद्यमों, ग्रामीण स्टार्ट-अप और भारत के ग्रामीणों की बदलती आजीविकाओं के नवीनतम रुझानों के बारे में पढ़ें।
आजीविका
‘यूथ हब’ – विलेज स्क्वेयर में नई गूँज
‘विलेज स्क्वेयर’ ने उत्साह के साथ अपनी नई ‘यूथ हब पहल’ शुरू की है - बेहतर भारत के निर्माण के लिए, भारत के शहरी और ग्रामीण युवाओं को विचारों के संवाद, जांच और सक्रियता के लिए एक मंच।
भारत युवा संवाद – परिवर्तन बनें!
‘विलेज स्क्वेयर’ ने अपनी नई यूथ हब पहल (‘यूथ हब इनिशिएटिव’) के अंग के रूप में, चर्चाओं की एक श्रृंखला ‘भारत युवा संवाद’ (‘दि भारत यूथ डायलॉग’) शुरू की है, जो एक बेहतर भारत के लिए, युवा विचारों के संवाद, जांच और परिवर्तन को सक्रिय करने की दिशा में गतिशील स्थान प्रदान करता है।
पनीर बनाना – आशा की एक किरण
शकीला जफर को अपनी दो गायों का दूध बेचकर गुजारा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। जब उनके पति की बीमारी के कारण उनका दुख और बढ़ गया, तो पनीर आपूर्ति का एक ऑर्डर आशा की किरण बन गया, जो एक सफल पनीर बनाने के व्यवसाय में बदल गया है। प्रस्तुत है उसकी कहानी।
जैविक दुग्ध पदार्थों के प्रति बढ़ते लगाव ने दिया कुटीर उद्योग को बढ़ावा
घर के बने, जैविक दुग्ध उत्पादों की बढ़ती मांग ने कश्मीरी ग्रामीणों को प्रोत्साहन दिया है, जो कभी दूध को तरल रूप में ही बेचकर अपनी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करते थे। अब दही, मक्खन और पनीर का कारोबार फलफूल रहा है।
अपनी संस्कृति तराशती नागा जनजातियाँ
नागा गांवों के सलीके से तराशे लकड़ी के प्रवेश द्वार कभी पूर्वजों को प्रसन्न करते थे। आज जो थोड़े से बचे हैं, वे प्राचीन उम्मीदों और आकांक्षाओं के प्रतीक हैं। एक विरासत, जिसे कई कारीगर संरक्षित करने के इच्छुक हैं।
जलवायु कार्रवाई का लाभ उठाकर ग्रामीण गरीबों की मदद
यदि जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए विकेंद्रीकृत, समुदाय-केंद्रित कार्यक्रमों का उपयोग किया जाए, तो यह भारत के सबसे ज्यादा हाशिए पर रहने वाले ग्रामीण गरीबों के जीवन को बदल सकता है।
“वॉशरूम के लिए गुहार लगाई, तो हमें अपमानित किया गया”
विजी पालिथोडी केरल के कोझीकोड की कार्यकर्ता बनी एक दर्जी हैं, जो कार्यस्थलों पर महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। विडंबना यह है कि उनके पिता द्वारा किए गए उत्पीड़न ने ही उनमें सक्रिय कार्यकर्ता की चिंगारी जलाई। प्रस्तुत है उनकी कहानी उन्हीं के शब्दों में।
छोटे जल-श्रोत (नमभूमि) उपेक्षित हैं
जहां बड़े जल-श्रोतों को संरक्षित और बहाल किया जा रहा है, वहीं ग्रामीणों के लिए उपयोगी छोटे जलाशयों की अनदेखी और यहां तक उनका अतिक्रमण किया जा रहा है।
लगातार बारिश के कारण आई भावनाओं की बाढ़
भारत में जैसे-जैसे मानसून में तेजी आती है, थोड़ी सी बारिश तक से चिंता और भय पैदा होना आम बात है। जबकि हर किसी की प्रतिक्रिया अलग होती है, इससे निपटने के लिए पेशेवर लोग के सुझाव हैं।