आजीविका

ग्रामीण भारत मूल गिग-इकोनॉमी (परियोजना आधारित अर्थव्यवस्था) के मजदूर का घर है। उद्यमी ग्रामीण, खेतों की जुताई से दुकान चलाने, रोज घर-घर जाकर सामान बेचने तक पहुँच जाते हैं। सूक्ष्म-उद्यमों, ग्रामीण स्टार्ट-अप और भारत के ग्रामीणों की बदलती आजीविकाओं के नवीनतम रुझानों के बारे में पढ़ें।

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पूरक शिक्षण से छात्रों के समग्र विकास में मदद मिलती है

सरकारी स्कूलों में छात्रों के उम्र के अनुरूप अध्ययन पर लक्षित, गतिविधि-आधारित कार्यक्रम से व्यापक प्रगति सुनिश्चित करने के अलावा, उनके शैक्षणिक प्रदर्शन में भी सुधार हुआ है।

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अवसरों का लाभ उठाते हुए आदिवासी महिलाएं बनी सूक्ष्म उद्यमी

सही सहयोग की बदौलत, खूंटी की महिलाएं चुनौतियों से निपटते हुए, उद्यमी के रूप में उभरी हैं। महामारी के समय प्रत्येक महिला का सूक्ष्म कारोबार उसके परिवार का आर्थिक आधार रहा है

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जागरूकता से ग्रामीणों में टीके का डर धीरे-धीरे कम हुआ

गांवों के विभिन्न प्रभावशाली लोगों को परामर्श देने और आश्वस्त करने, और युवा स्वयंसेवकों को अपने अभियान के प्रति प्रोत्साहित करने से, समुदायों में टीकाकरण के लिए फैली अफवाहों और आशंकाओं को दूर करने में मदद मिली है।

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ग्रामीण भारत तीसरी लहर के लिए कैसे तैयारी करे

झारखंड का अनुभव साबित करता है कि स्थानीय प्रशासन, सामुदायिक समूह और नागरिक समाज संगठनों के तालमेलपूर्ण प्रयास, गाँवों को COVID-19 की तीसरी लहर से निपटने में मदद कर सकते हैं।

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कश्मीर के चेरी किसानों को महामारी के प्रभाव का सामना करना पड़ा है

तंगमर्ग के चेरी किसान, जो पर्यटकों को सीधे चेरी बेचना लाभदायक पाते हैं, उलझन में हैं, क्योंकि महामारी के कारण लोकप्रिय पर्यटन स्थलों को बंद कर दिया गया है

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विकेन्द्रीकरण से स्थानीयकरण: समूह एवं स्थानीय विकास

स्थानीय प्रशासन के साथ काम करने वाले सामुदायिक समूहों ने महामारी की स्थिति को उलट दिया और आजीविका सहयोग सुनिश्चित किया है। आपस में जुड़े प्रक्रियात्मक उपायों से बना तालमेल महामारी के बाद भी जारी रह सकता है

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जब COVID-19 पहाड़ी क्षेत्रों की कमजोर जनजातियों तक पहुँचा

सरकार के प्रयासों के बावजूद, जाँच और अलगाव के प्रति अनिच्छा, और COVID-19 सम्बन्धी सुरक्षा नियमों का पालन न करने के कारण, ओडिशा के विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों में संक्रमण में वृद्धि हुई है।

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बेहतर स्वास्थ्य देखभाल के लिए समुदाय ने उपकेंद्र स्थापित किया

आंगनबाडी के साथ तंग जगह में बने स्वास्थ्य उपकेन्द्र में सुविधाओं का अभाव था। ग्रामवासियों ने मिलकर एक बड़े परिसर में एक उपकेंद्र खोला, जिससे मातृ देखभाल और COVID-19 टीकाकरण संभव हो सका

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COVID-19 संबंधी आपात स्थितियों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को दरकिनार कर दिया गया

सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था पर निर्भर ग्रामीण महिलाएं, मातृ स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त नहीं कर पाई, क्योंकि अस्पतालों का ध्यान कोविड-19 संकट पर काबू पाने पर है