ग्रामीण भारत मूल गिग-इकोनॉमी (परियोजना आधारित अर्थव्यवस्था) के मजदूर का घर है। उद्यमी ग्रामीण, खेतों की जुताई से दुकान चलाने, रोज घर-घर जाकर सामान बेचने तक पहुँच जाते हैं। सूक्ष्म-उद्यमों, ग्रामीण स्टार्ट-अप और भारत के ग्रामीणों की बदलती आजीविकाओं के नवीनतम रुझानों के बारे में पढ़ें।
आजीविका
ग्रामीण प्रस्तावित मरीना के खिलाफ क्यों हैं
पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए, सरकार का अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक मरीना (छोटी जल विहार बंदरगाह) विकसित करने का प्रस्ताव है। तटीय गाँवों के निवासी, अपनी आजीविका और पर्यावरण पर प्रभाव की आशंका से इसका विरोध कर रहे हैं
बाधाएं, जो किसानों को समृद्ध बनने से रोकती हैं
भूमि-जोत का आकार, पानी की उपलब्धता, धन और बाजार, किसानों की आय को प्रभावित करते हैं। चार-खंड श्रृंखला का यह दूसरा भाग, कृषि समृद्धि के लिए मिश्रित खेती की बाधाओं और व्यवहार्यता की जाँच करता है
सौर ऊर्जा ने बिजली कटौती के समय चिकित्सा सेवा प्रदान करने में सहायक है
टिकाऊ सौर ऊर्जा के साथ, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रोगियों का बिना बाधा के इलाज करने, आपातकालीन सुविधाएं प्रदान करने, जनरेटर के लिए डीजल खर्च को कम करने में सक्षम है और एक मॉडल के रूप में काम करती है।
COVID-19 सहायता से ग्रामीणों को मिली पैर जमाने में मदद
ओडिशा आजीविका मिशन के आर्थिक सहायता ने, बहुत से कमजोर ग्रामीण परिवारों, विशेष रूप से महिला उद्यमियों को महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के आर्थिक झटके से उबरने में सक्षम बनाया है।
जंगल-जंगल घूम सकेंगे छत्तीसगढ़ के वन्यजीव, तैयार होगा हरा-भरा वन गलियारा
छत्तीसगढ़ में 121 वन्यजीव गलियारों को चिन्हित किया गया है। इनमें से 14 गलियारों को विशेष तौर पर चुना गया है। ये गलियारे एक जंगल को दूसरे से जोड़ेंगे ताकि वन्यजीव आसानी से आवागमन कर सकें। इस काम को मुंबई स्थित एक गैर लाभकारी संस्थान की मदद से किया जा रहा है। प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद बाघ के अलावा दूसरे वन्यजीव भी निर्भिक होकर जंगल-जंगल घूम सकेंगे।
किशोरी बालिकाओं में बढता कुपोषण: स्वस्थ भारत के अस्वस्थ युवाओ की कहानी बताता हुआ
कोरोना महामारी के इस दौर में ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं, जो मानव जीवन को धीरे धीरे अपना शिकार बना रही हैं। महामारी के दौर में ऐसी समस्याओं पर सरकार एवं समाज का ध्यान कम ही जा रहा है| ऐसी ही एक व्यापक समस्या कुपोषण को है, जो युवाओं विशेषकर किशोरी बालिकाओं में काफी पाया जा रहा है। ऐसी ही परिस्थिति राजस्थान के ग्रामीण अंचलो में धीरे धीरे बढती जा रही है| इसके लिए सामाजिक रीती-रिवाज़ एवं जागरुकता की कमी के साथ साथ सरकारी कार्यक्रमों की पहुँच जिम्मेदार है|
बारिश की बूंद बचाकर हजारों परिवार ने पाई लोहे तक को गला देने वाले पानी से निजात
राजस्थान के सांभर झील के नजदीक के क्षेत्र में भूजल में खारापन इतना अधिक है कि हैंडपंप भी गल जाते हैं। एक स्थानीय संस्था के दावे के अनुसार इस क्षेत्र के पानी में टीडीएस की मात्रा 5562 है और इसे पीने वालों को तमाम रोग होते रहते हैं।
मछली पकड़ने का अधिकार, जीने की लड़ाई
“हमारी नाव ज़ब्त क्यों की जाती है और हमें पेट पर लात क्यों मारा जाता है?”
गोमूत्र एवं मानव-मल: आस्था, लोककथाएँ और विज्ञान
जबकि चमत्कारी सामग्री के रूप में गोमूत्र पर लोकगीतों की एक झलक है, अन्य मवेशियों और मनुष्यों का अपशिष्ट, जो भरोसेमंद संसाधन भी हैं, उन्हें प्रभावकारिता के लिए जाँचना चाहिए