ग्रामीण भारत मूल गिग-इकोनॉमी (परियोजना आधारित अर्थव्यवस्था) के मजदूर का घर है। उद्यमी ग्रामीण, खेतों की जुताई से दुकान चलाने, रोज घर-घर जाकर सामान बेचने तक पहुँच जाते हैं। सूक्ष्म-उद्यमों, ग्रामीण स्टार्ट-अप और भारत के ग्रामीणों की बदलती आजीविकाओं के नवीनतम रुझानों के बारे में पढ़ें।
आजीविका
सरगुजा पहाड़ियों में सामुदायिक स्कूल बने आशा की किरण
अपनी जमीन खनन कंपनियों को सौंप देने के बाद, आजीविका के अवसरों के ख़त्म होने के बावजूद भी, छत्तीसगढ़ के सुदूर सरगुजा पहाड़ियों के वंचित समुदाय को आदिवासी और दलित बच्चों के लिए स्कूल चलाने से रोका नहीं जा सका
पशुओं को चराने के लिए चरागाहों के घटने के साथ, महिला चरवाहों का प्रभुत्व कम हुआ है
खेती के तौर-तरीकों में बदलाव और जलवायु संकट के प्रभाव से कम होते पशुचारण के कारण, पारम्परिक खानाबदोश चरवाहे बसने लगे हैं। जैसे-जैसे वे दूसरे रोजगारों के लिए पलायन करते हैं, महिलाओं पर अतिरिक्त जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ जाता है
पाठ्यक्रम में डिजिटल तकनीक से, समृद्ध हुआ सहभागी शिक्षण
शिक्षकों को एप डिज़ाइन करने की क्षमता प्रदान करने और छात्रों को परियोजनाएं बनाने में मदद करने से, तकनीकी साधनों के उपयोग में सर्वोत्तम तरीके अपनाकर, सन्दर्भ-आधारित शिक्षण और इसके प्रयोग में उपयोगी हो सकती है
लौट कर आए प्रवासियों ने आजीविका के लिए अपनाई तस्करी
भारत - बांग्लादेश सीमा के नजदीक पश्चिम बंगाल के गाँवों में, लॉकडाउन के दौरान घर वापस आए प्रवासियों को आर्थिक सहारे के लालच में तस्करी में डाल दिया गया है
प्रवासी बच्चों को मिला शिक्षा जारी रखने का अवसर
ओडिशा सरकार की एक योजना से, प्रवासी श्रमिकों के बच्चों को गंतव्य स्थलों पर अपनी शिक्षा जारी रखने में मदद की, जिससे बाल श्रम रोकना और शिक्षा में निरंतरता सुनिश्चित हुआ
आवागमन को बेहतर बनाने के लिए, महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने अपनाई साइकिल
मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा), जो काम पर आने जाने के लिए अपने परिवार के पुरुषों पर निर्भर थी या रोज कई मील पैदल चलती थी, साइकिल चलाना सीखने के बाद समय की पाबंद और सक्षम हो गई हैं।
आदिवासी भाषाओं की पुस्तकों के द्वारा, मध्य भारत में स्कूली शिक्षा फिर से हुई जीवंत
मध्य प्रदेश के एक पिछड़े क्षेत्र में, आदिवासी बोलियों में किताबें तैयार करने की एक पहल, आदिवासी बच्चों को न केवल स्कूल में बेहतर सीखने में मदद कर रही है, बल्कि उन्हें उनकी मूल संस्कृति और परंपराओं के साथ जोड़ भी रही है।
वंचित ग्रामीण छात्रों के लिए सुलभ शिक्षा
राजस्थान में विकास के अभाव वाले ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित, राज्य सरकार द्वारा संचालित मॉडल स्कूल, सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुफ़्त प्रदान कर रहे हैं।
ग्रामीण भारत में हैंडलूम क्या केवल गरीबी बुनने में सक्षम हैं?
हमें इस बात पर विचार करने की जरूरत है, कि जो कभी ख़ुशियाँ, संस्कृति और आय बुनता था, वो हैंडलूम (हथकरघा) क्यों आज केवल गरीबी बुनता है? यदि कुछेक बाहरी तत्वों को छोड़ दें, तो यह क्यों हमारे ग्रामीण लोगों की आजीविका को बनाए रखने में असमर्थ है?