आजीविका

ग्रामीण भारत मूल गिग-इकोनॉमी (परियोजना आधारित अर्थव्यवस्था) के मजदूर का घर है। उद्यमी ग्रामीण, खेतों की जुताई से दुकान चलाने, रोज घर-घर जाकर सामान बेचने तक पहुँच जाते हैं। सूक्ष्म-उद्यमों, ग्रामीण स्टार्ट-अप और भारत के ग्रामीणों की बदलती आजीविकाओं के नवीनतम रुझानों के बारे में पढ़ें।

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पारंपरिक फड़ सिंचाई व्यवस्था के चैंपियन को श्रद्धांजलि

महाराष्ट्र की एक पारम्परिक सिंचाई प्रबंधन व्यवस्था, फड़, अस्त-व्यस्त हो गई। एक विकास कर्मी सुनील पोते ने इसे पुनर्जीवित किया, जिससे अनेक किसान अपनी भूमि की सिंचाई कर सके और उनकी आय में वृद्धि हुई

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दही के उपयोग से, जमीनी स्तर के नवाचार के माध्यम से बिहार में खेती की लागत कम हुई

वैज्ञानिक रूप से अभी मान्य ने होने के बावजूद, तांबे के साथ दही का एक मिश्रण, उत्तरी बिहार के कई हिस्सों में लोकप्रिय हो गया है, क्योंकि इससे बहुत से छोटे और सीमांत किसानों की पैदावार बढ़ाते हुए, खेती की लागत में कटौती की है

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लॉकडाउन से, मिलकर पार होना सीख रहे हैं परिवार

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ग्रामीण माता-पिता अपने बच्चों की भावनात्मक भलाई सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, आजीविका संबंधी चिंताओं को दूर रखकर, स्थानीय संसाधनों के साथ उपयोगी रूप से व्यस्त रखने के लिए, उनके साथ काम करना सीख रहे हैं।

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बंगाल की महिलाओं ने टर्की में पाई एक व्यवाहरिक आजीविका

बाधाओं और स्व-रोजगार की परियोजनाओं की विफलता पर काबू पाते हुए, महिला स्व-सहायता समूहों के सदस्यों ने दृढ़ता से काम जारी रखा और टर्की पालन को अपनाकर एक सफल आजीविका के लिए रुझान हासिल किया

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कॉकरोचों और डिजिटल स्वास्थ्य दस्तावेजों के लिए

भले ही डिजिटल स्वास्थ्य नीति और स्वास्थ्य दस्तावेजों का प्रस्तावित डिजिटल-करण कागज पर अच्छा दिखता हो, लेकिन इसके प्रभावी होने के लिए, बुनियादी ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को का ठीक काम करना जरूरी है

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आर्थिक लोकतंत्र के बारे में महात्मा गांधी की अवधारणा से सबक

ग्राम स्वराज पर महात्मा गांधी की सोच और रचनात्मक स्थानीयकरण के माध्यम से आर्थिक लोकतंत्र पर उनके विचार, ग्रामीण समाज और अर्थव्यवस्था के सतत विकास का अधिक जीवंत मॉडल तैयार के लिए, नया लॉन्च पैड साबित हो सकते हैं।

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मध्यप्रदेश के किसान लैंटाना के हमले से निपटने के लिए हुए एकजुट

भारत की 4% भूमि पर कब्ज़ा कर चुकी घुसपैठिया प्रजाति, लैंटाना से अपनी भूमि को छुटकारा दिलाने के लिए पूर्वी मध्य प्रदेश के गांव एक साथ आ गए, और बाजरे और तिलहन की खेती करके, अपने खेतों को बहाल कर लिया

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महिलाओं को शिक्षा पूरी करने का मिला दूसरा मौका

स्कूल पहुंच से बाहर होने और जल्दी शादी के कारण, जिन लड़कियों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी, उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए एक कार्यक्रम में दाखिला लिया

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असम की महिलाएं फली-फूली, मूल्य-वर्द्धित उद्यान-उत्पादों से

अपने आंगन में उगाए ताजे फल और सब्जियों से बने, मूल्य-वर्द्धित उत्पादों की आपूर्ति करके, असम के नागांव जिले के गांवों की महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हुई